संसद के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन गत बुधवार को लोकसभा में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर परोसे जा रहे कंटेंट को लेकर सवाल उठाया गया। रामानंद सागर के सीरियल रामायण से फेमस हुए कलाकार एवं भारतीय जनता पार्टी के सांसद अरुण गोविल ने सदन में सवाल उठाया कि वर्तमान में ओटीटी प्लेटफॉर्म के कंटेंट परिवार के साथ बैठ कर देखने लायक नहीं हैं। भाजपा सांसद अरुण गोविल ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव से पूछा कि उनके मंत्रालय के पास सोशल मीडिया के माध्यम से अश्लील और सेक्स से संबंधित कंटेंट को रोकने के लिए क्या तंत्र है? उन्होंने इसके लिए सख्त नियम की भी मांग की।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने दिया ये जवाब
सांसद अरुण गोविल के सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री ने स्वीकार किया कि सोशल मीडिया और ओटीटी के युग में प्रेस की स्वतंत्रता के नाम पर संपादकीय निगरानी के अभाव में ये प्लेटफॉर्म अनियंत्रित अभिव्यक्ति के स्थान भी बन गए है जिसमें कई ऐसी सामग्री है जो भारत की सांस्कृतिक संवेदनशीलता के लिहाज से अशोभनीय होती है। इस पर और सख्त कानून बनाने के लिए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसदीय स्थायी समिति से इस अति महत्तवपूर्ण मुद्दे को प्राथमिकता के तौर पर लेने का आग्रह भी किया। लेकिन इंटरनेट के जरिए ओवर-द-टॉप मिलने वाली इस मीडिया सेवा पर ये सवाल आज से नहीं बल्कि बहुत वक्त से उठते आ रहे हैं।
सेंसर की कैंची चले बिना मिलती रही सब सामग्री
इंटरनेट के दौर में पारिवारिक, सामाजिक मुद्दों पर आधारित किस्सों और कहानियों पर बने टीवी शो और फिल्में बहुत पीछे छूटती गईं। डिजिटल युग में लोगों को हाई टेक्नॉलॉजी, बड़े स्टार्स, हॉलिवुड-बॉलिवुड स्टाइल की सामग्री पूरे तड़के के साथ जिसमें सेक्स, गाली, हिंसा सब बिना सेंसर की कैंची चले मिलने लगा। खास बात ये कि इन वेब सीरीज को देखने के लिए अब टीवी स्क्रीन पर ही निर्भर रहना जरूरी नहीं रहा। मोबाइल फोन पर भी ये सब देखने की सुविधा मिलने लगी।
अमेरिका से शुरू हुए ऑन द टॉप प्लेटफॉर्म की लहर साल 2008 में भारत में चली। शुरूआत रिलाइंस एंटरटेनमेंट के देश के प्रथम ओटीटी “बिगफ्लिक्स” से हुई। अब मनपसंद फिल्म या वेब शो के लिए डीटीएच कनेक्शन की जगह इंटरनेट कनेक्टिविटी से वो वेब सीरीज, फिल्में या डॉक्यूमेंटरी उस कंटेंट के साथ मिलने लगे, जो किसी और प्लेटफॉर्म पर मौजूद नहीं होते। मनपसंद वेब सीरीज या फिल्में देखने के लिए किसी समय या दिन का इंतजार किए बिना वो एक साथ उपलब्ध रहने लगी। वक्त के साथ ऑल्ट बालाजी, वूट, अमेजन प्राइम, सोनी लिव, नेटफ्लिक्स और हॉट स्टार समेत कई ओटीटी प्लेटफॉर्म की बाढ़ सी आ गई। जिन पर वेब सीरिज, रियलिटी शो, फिल्में, खेल सब मौजूद, वो भी अपनी पसंद के हिसाब से देखने की स्वतंत्रता के साथ। इन सब सुविधाओं के साथ साथ लोगों में ओटीटी प्लेटफॉर्म का क्रेज बढ़ने का एक और सबसे बड़ा कारण रहा भारतीय परिवार की संस्कृति का एक अहम हिस्सा रहे उन दायरों को दरकिनार कर लोगों तक सॉफ्ट पोर्न पहुंचाना। गाली-गलौज, हिंसा और सॉफ्ट पोर्न ओटीटी प्लेटफॉर्म के ज्यादातर वेब सीरीज का हिस्सा बन गया।
2016 से ओटीटी पर काफी तेजी से बढ़ा अश्लील कंटेंट
मनोरंजन के नाम पर दर्शकों तक पहुंचने वाले ये कंटेंट बड़ी तेजी से अपना जाल फैलाने लगा। एक सर्वे के मुताबिक भारत में 2016 से 2020 के दौरान ओटीटी पर ये अश्लील कंटेंट 1200% प्रतिशत तक बढ़ा। ये ही नहीं इस बीच इन बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्म के इरोटिक कंटेट के बहाने पोर्न बेचने वाले छोटे-छोटे प्लेटफॉर्म की भी मौजूदगी दिखाई देने लगी। इस बीच सरकार ने इन पर सख्ती बरतते हुए कई ओटीटी एप्स को बैन भी किया। लेकिन ये ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही रहा। 2020 में कोविड महामारी में लगे लॉकडाउन में लोगों को वक्त काटने के लिए ओटीटी बेहतर साधन लगा। ये वो वक्त था जब कई बड़े ओटीटी एप पर बोल्ड कंटेंट की बाढ़ सी आ गई। परिवार में ज्यादातर सदस्यों के पास अपने स्मार्ट फोन होने के चलते ये सब अकेले देखने की सुविधा से भी इनकार नहीं किया जा सकता। पॉपुलरिटी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि लॉकडाउन के पहले दो महीने में ही ULLU एप की ग्रोथ 250% प्रतिशत बढ़ गई, क्योंकि इस एप ने जमकर बोल्ड कंटेंट उपलब्ध करवाया। ऑल्ट बालाजी और एमएक्स प्लेयर भी इस दौड़ में शामिल रहे।
नियमों और चेतावनी की हुई अनदेखी
संयुक्त परिवार हो या एकल, इन एप्स की पहुंच लगभग हर घर में हो गई। वक्त के साथ इसका खराब असर खासतौर से युवाओं और बच्चों में दिखाई देने लगा। ग्लैमराज तरीके से वल्गैरिटी, न्यूडिटी और हिंसा को परोसने के तरीके इंप्लसिवनेस और साइकोलॉजिकल डिसऑडर्स की समस्या को बढ़ावा देते है। वहीं खत्म होते सोशल मॉरल वैल्यूज के पीछे भी इन ओटीटी प्लेटफॉर्म की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है।
लेकिन जैसे बिग स्क्रीन पर दिखाई जाने वाली फिल्मों के कंटेंट को रेगुलेट करने के लिए सीबीएफसी है, वैसे ही ओटीटी के कंटेंट का रेगुलेशन मिनिस्ट्री ऑफ इनफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट के तहत इंडियन ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल फाउंडेशन करता है। 2020 में ओटीटी सेल्फ रेगुलेशन कोड जो खुद कुछ ओटीटी फ्लेटफॉर्म्स ने मिल कर बनाया, जिसमें कुछ पाबंदियां लगाने के नियम भी बनाए। सरकार ने इस रेगुलेशन कोड को मानने से इनकार कर दिया। कुछ प्लेटफॉर्म पर बी ग्रेड के बोल्ड कंटेंट के कारण न्यायपालिका ने इन प्लेटफॉर्म को चेतावनी भी दी, बावजूद इसके बार-बार उन नियमों और चेतावनी की अनदेखी की गई।
पूरी तरह कस नहीं पा रहा शिकंजा
समय-समय पर सरकार भी इन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नकेल कसने की कवायद करती रही। 2021 में सरकार ने सेल्फ रेगुलेशन नियम बनाया। 2023 को इन प्लेटफॉर्म्स को खुद अपने कंटेट का रिव्यू करने की सलाह दी। 2023 के अंत में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस मुद्दे को लेकर “ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज बिल” पेश किया, जिसके अनुसार ओटीटी प्लेटफॉर्म कंटेंट इवैल्यूएशन कमेटी द्वारा सर्टिफाइड कंटेंट को टेलिकास्ट कर सकते हैं। वहीं सरकार ने कई ओटीटी प्लेटफॉर्म बैन भी किए। ये ही नहीं इन ओटीटी प्लेटफॉर्म से निपटने के लिए सरकार ने अपना ओटीटी प्लेटफॉर्म “Waves”भी लांच कर दिया है, लेकिन सवाल ये ही है कि क्या सरकार बिना कड़े नियमों के क्रिएटिविटी के नाम पर समाज को कुछ भी परोसने वाले इन ओटीटी प्लेटफॉर्म की मनमानी पर अपना शिकंजा पूरी तरह से कस पाएगी?