भगवान सूर्य और छठी मैया को समर्पित छठ पर्व का चौथा और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य के रूप में मनाया जाता है । छठ पूजा के चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इसके बाद दूसरे दिन खरना होता है। तीसरा दिन संध्या अर्घ्य होता है और चौथे दिन को ऊषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ पूजा की जाती है। छठ का पर्व बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश की कुछ जगहों पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूजा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी ऊषा को समर्पित होती है ।
गुरुग्राम के शीतला माता मंदिर के छठ घाट पर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देती व्रती


पारंपरिक रीति रिवाज के साथ तीन दिनों तक व्रती महिलाओं ने छठ मइया का पूजन किया। चौथे दिन उन्होंने उगते सूर्य को आखिरी अर्घ्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि की मनोकामना की। गाजियाबाद के मुरादनगर के गंगनहर घाट पर छठ पर पूजा करते व्रती
बरेली में भी पारंपरिक रीति रिवाज के साथ तीन दिनों तक व्रती महिलाओं ने छठ मइया का पूजन किया। चौथे दिन उन्होंने उगते सूर्य को आखिरी अर्घ्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि की मनोकामना की। इसके बाद परंपरागत रीति रिवाज से अनुष्ठान कर प्रसाद ग्रहण करके व्रत परायण किया। रामगंगा घाट, रुहेलखण्ड विवि शिव मंदिर, धोपा मन्दिर, इज्जतनगर मन्दिर, सुभाषनगर, सिद्धार्थनगर अन्य इलाकों में स्थित मंदिर पर सामूहिक आयोजन से पूर्वांचल की छटा दिखाई दी।