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Thursday, July 31, 2025

अफसरशाही की मनमानी: कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल नंदी का CM योगी को खुला पत्र

लखनऊ, 8 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश की सियासत में उस वक्त हलचल मच गई, जब कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल नंदी ने अपनी ही सरकार के अफसरों पर गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा। यह पत्र न केवल अफसरशाही की मनमानी को उजागर करता है, बल्कि सरकार के भीतर पनप रहे असंतोष की एक झलक भी दिखाता है।

मंत्री की व्यथा: फाइलें दबाने का खेल

नंद गोपाल नंदी ने अपने पत्र में साफ कहा कि उनके विभाग के कुछ वरिष्ठ अधिकारी न सिर्फ उनके आदेशों की अनदेखी कर रहे हैं, बल्कि नीतियों को ताक पर रखकर कुछ लोगों को अनुचित लाभ पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने खुलासा किया कि कई महत्वपूर्ण फाइलें डेढ़-दो साल से लंबित पड़ी हैं। हैरानी की बात यह है कि मुख्यमंत्री योगी के 29 अक्टूबर 2024 को दिए गए सख्त निर्देशों के बावजूद, 6 महीने बीत जाने के बाद भी ये फाइलें सामने नहीं आईं। कुछ फाइलें तो भेजी गईं, लेकिन बाद में कहा गया कि वे “गायब” हो गईं। फिर, अचानक दिसंबर 2024 में नई फाइलें बनाकर पेश कर दी गईं। सवाल यह है कि मूल फाइलें गईं कहां?

न्यायिक असमानता और हाईकोर्ट की फटकार

मंत्री ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ मामलों में एक जैसी परिस्थितियों में किसी को लाभ दिया गया, तो किसी को वंचित रखा गया। इस तरह की मनमानी ने न केवल न्यायिक असमानता को जन्म दिया, बल्कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी को भी न्योता दिया। हाईकोर्ट की फटकार के बाद तत्कालीन प्रमुख सचिव अनिल सागर को उनके पद से हटाना पड़ा।

CM से गुहार: उच्च स्तरीय जांच की मांग

नंद गोपाल नंदी ने मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है कि इन अनियमितताओं की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए, ताकि सच सामने आ सके। उनका कहना है कि जब फाइलें जानबूझकर दबाई जाएं, आदेशों का पालन न हो और अधिकारी अपनी मर्जी से नीतियों के खिलाफ काम करें, तो सवाल उठाना उनका कर्तव्य बन जाता है।

सियासी गलियारों में हलचल

एक कैबिनेट मंत्री का मुख्यमंत्री को इस तरह खुला पत्र लिखना न केवल अफसरशाही के खिलाफ उनकी नाराजगी को दर्शाता है, बल्कि सरकार के भीतर गहराते मतभेदों की ओर भी इशारा करता है। यह पत्र सवाल उठाता है कि क्या उत्तर प्रदेश की नौकरशाही इतनी बेलगाम हो चुकी है कि मंत्रियों को भी अपनी बात मनवाने के लिए सार्वजनिक मंच का सहारा लेना पड़ रहा है?

इस पत्र ने न केवल प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर कब तक फाइलों के इस खेल में जनता के हित दबते रहेंगे। अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर टिकी हैं कि वे इस मामले में क्या कदम उठाते हैं। क्या अफसरशाही पर लगाम लगेगी, या यह सियासी ड्रामा यूं ही चलता रहेगा?

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