लखनऊ, 4 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश की सियासत में उस समय हलचल मच गई, जब केंद्रीय मंत्री और अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने अपने ही पति आशीष पटेल को पार्टी में बड़े पद से हटाकर सबको चौंका दिया। यह कोई साधारण फैसला नहीं था, बल्कि एक ऐसा सियासी मास्टरस्ट्रोक, जिसने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया। आशीष पटेल, जो पहले पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष थे, अब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भूमिका में तीसरे नंबर पर खिसक गए हैं। तो आखिर क्या है इस डिमोशन के पीछे की कहानी? आइए, इस सियासी ड्रामे को समझते हैं।
पार्टी में तीसरे नंबर पर खिसके आशीष
गुरुवार को अपना दल (एस) के राष्ट्रीय सचिव मुन्नर प्रजापति ने नई पदाधिकारी सूची जारी की, जिसमें आशीष पटेल का नाम तीसरे स्थान पर था। सूची में माता बदल तिवारी को पहला राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया, जबकि आशीष को उनके नीचे रखा गया। यह बदलाव सिर्फ कागजी नहीं, बल्कि इसका गहरा सियासी मतलब निकाला जा रहा है। आशीष, जो कभी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में थे, अब प्रभाव में कमी के साथ नई भूमिका में दिख रहे हैं। यह कदम अनुप्रिया की नई रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसके पीछे पार्टी को एकजुट करने और बगावती स्वरों को दबाने की मंशा झलकती है।
पार्टी में अंतर्कलह और बगावत की आग
अपना दल (एस) पिछले कुछ समय से आंतरिक कलह से जूझ रहा है। पार्टी के भीतर असहमति की आवाजें, भ्रष्टाचार के आरोप और संगठन की कमजोर होती नींव अनुप्रिया के लिए चुनौती बन रही थीं। हाल ही में उनकी साली और सपा विधायक पल्लवी पटेल ने आशीष पटेल पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे। इसके अलावा, पार्टी के वरिष्ठ नेता ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह ने बगावत करते हुए ‘अपना मोर्चा’ नाम से अलग मंच बना लिया। इन सबके बीच अनुप्रिया का यह फैसला एक तीर से कई निशाने साधने जैसा लगता है।
पति पर ‘एक्शन’, अनुप्रिया की इमेज मेकओवर?
यह पहली बार है जब अनुप्रिया ने अपने परिवार के किसी सदस्य पर इतना बड़ा सियासी कदम उठाया है। जानकार मानते हैं कि यह फैसला सिर्फ आशीष का डिमोशन नहीं, बल्कि अनुप्रिया का अपनी और पार्टी की छवि को नियंत्रित करने का प्रयास है। आशीष योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं, और उन पर लगे आरोपों ने पार्टी की साख को नुकसान पहुंचाया था। ऐसे में अनुप्रिया ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी में कोई भी विवादों से ऊपर नहीं है, चाहे वह उनके पति ही क्यों न हों। यह कदम बगावती नेताओं को चेतावनी भी देता है कि जवाबदेही और अनुशासन सबसे ऊपर है।
रणनीति या संकटमोचन?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आशीष का डिमोशन अनुप्रिया का एक सोचा-समझा दांव है। वह न सिर्फ पार्टी को एकजुट करना चाहती हैं, बल्कि यह भी दिखाना चाहती हैं कि संगठन में सब बराबर हैं। यह कदम उनके ऊपर बढ़ते दबाव को कम करने और बगावत के सुरों को शांत करने की कोशिश हो सकता है। आशीष का तीसरे पायदान पर खिसकना सिर्फ पद की अदला-बदली नहीं, बल्कि एक सियासी संकेत है कि अनुप्रिया अब परिवार से ऊपर पार्टी को प्राथमिकता दे रही हैं।
क्या होगा आगे?
अनुप्रिया का यह फैसला कितना कारगर होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तय है कि इस डिमोशन ने उत्तर प्रदेश की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। क्या यह अनुप्रिया की सियासी सूझबूझ का कमाल है या फिर पार्टी के भीतर और उथल-पुथल का कारण बनेगा? यह सवाल हर किसी के जेहन में है। फिलहाल, अनुप्रिया पटेल ने साफ कर दिया है कि वह अपनी पार्टी को मजबूत करने और अपनी छवि को निखारने के लिए कोई भी कठोर कदम उठाने से नहीं हिचकेंगी, भले ही वह उनके सबसे करीबी के खिलाफ ही क्यों न हो।