नई दिल्ली, 25 मई 2025, रविवार। आंध्र प्रदेश के तिरुपति में एक ऐसी घटना सामने आई है, जो इंसानियत को शर्मसार करती है। 25,000 रुपये के कर्ज के बदले एक मां को अपने बेटे को गिरवी रखना पड़ा, और जब वह उसे छुड़ाने लौटी, तो उसका बेटा कब्र में मिला। यह दर्दनाक कहानी यानाडी आदिवासी समुदाय की अनकम्मा और उसके परिवार की है, जिन्हें एक बत्तख पालक ने बंधुआ मजदूरी की बेड़ियों में जकड़ लिया था।
कर्ज की कीमत: एक बेटे की जिंदगी
अनकम्मा, उनके पति चेन्चैया और उनके तीन बेटे तिरुपति में एक बत्तख पालक के लिए काम करते थे। चेन्चैया की मृत्यु के बाद भी नियोक्ता ने अनकम्मा और उसके बच्चों को जबरन काम पर रखा, यह कहकर कि उनके पति पर 25,000 रुपये का कर्ज बाकी है। परिवार को लंबे समय तक अमानवीय परिस्थितियों में काम करना पड़ा। जब अनकम्मा ने आजादी मांगी, तो बत्तख पालक ने 20,000 रुपये ब्याज सहित 45,000 रुपये की मांग की। पैसे जुटाने के लिए अनकम्मा को 10 दिन का समय दिया गया, लेकिन शर्त यह थी कि उसे अपने एक बेटे को “जमानत” के तौर पर छोड़ना होगा। मजबूरी में मां ने अपने बेटे को पीछे छोड़ दिया।
बेटे की पुकार और मां का दर्द
अनकम्मा कभी-कभी फोन पर अपने बेटे से बात करती थी। हर बार वह रोते हुए मां से उसे लेने की गुहार लगाता, कहता कि उसे बहुत काम करना पड़ रहा है। आखिरी बार 12 अप्रैल को उसकी आवाज सुनी थी। अप्रैल के अंत में, अनकम्मा ने कर्ज की रकम जुटा ली और अपने बेटे को छुड़ाने पहुंची। लेकिन बत्तख पालक ने पहले कहा कि लड़का कहीं और भेज दिया गया, फिर बताया कि उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, और अंत में दावा किया कि वह भाग गया। शक होने पर अनकम्मा ने आदिवासी नेताओं की मदद से पुलिस में शिकायत दर्ज की।
कब्र में दफन सच
पुलिस जांच में जो सच्चाई सामने आई, उसने सबको झकझोर दिया। बत्तख पालक ने स्वीकार किया कि लड़के की मौत हो चुकी थी और उसने शव को तमिलनाडु के कांचीपुरम में अपने ससुराल के पास गुप्त रूप से दफना दिया था। उसने दावा किया कि बच्चे की मौत पीलिया से हुई थी। पुलिस ने बत्तख पालक, उसकी पत्नी और बेटे को गिरफ्तार कर लिया। बंधुआ मजदूरी, बाल श्रम, एससी/एसटी अत्याचार और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। शव को कब्र से निकाला गया, जहां अनकम्मा जमीन पर बैठकर बेकाबू होकर रो रही थी। शव का पोस्टमॉर्टम जारी है।
यानाडी समुदाय की बदहाली
कार्यकर्ताओं का कहना है कि यानाडी आदिवासी समुदाय बंधुआ मजदूरी का आसान शिकार बनता है। अक्सर कर्ज के जाल में फंसाकर इनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। हाल ही में इस समुदाय के 50 लोगों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया गया है। तिरुपति कलेक्टर वेंकटेश्वर ने कहा, “हम इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं। सीसीटीवी फुटेज में दिखा कि लड़के को अस्पताल ले जाया गया था, लेकिन उसकी मौत की सूचना परिवार को नहीं दी गई।”
इंसाफ की उम्मीद
यह कहानी सिर्फ अनकम्मा की नहीं, बल्कि उन तमाम लोगों की है जो गरीबी और मजबूरी के चलते शोषण का शिकार बनते हैं। पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई से इंसाफ की उम्मीद जगी है, लेकिन सवाल यह है कि क्या अनकम्मा को उसका बेटा वापस मिल सकता है? यह घटना समाज के उस काले चेहरे को उजागर करती है, जहां इंसानियत कर्ज की रकम से सस्ती हो जाती है।