गुवाहाटी, 22 जून 2025: पूर्वोत्तर भारत का पवित्र तीर्थ स्थल, असम का कामाख्या मंदिर आज से भक्ति और आस्था के रंग में रंग गया है। विश्व प्रसिद्ध अंबुबाची मेला का शुभारंभ हो चुका है, जो न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि मासिक धर्म जैसी प्राकृतिक प्रक्रिया को पवित्रता और शक्ति का प्रतीक मानकर उसका उत्सव मनाता है। इसे ‘पूर्व का महाकुंभ’ कहे जाने वाला यह मेला देश-विदेश से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, जो माता कामाख्या की एक झलक और उनके आशीर्वाद की आस में नीलाचल पर्वत की ओर खिंचे चले आते हैं।
मासिक धर्म का उत्सव: अंबुबाची मेले की अनोखी परंपरा
22 जून से शुरू हुआ यह मेला 26 जून तक चलेगा, जिसमें माता कामाख्या के रजस्वला होने का उत्सव मनाया जाता है। यह मेला नारी शक्ति और सृजन के प्रतीक के रूप में जाना जाता है, जो समाज में मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाओं को तोड़ता है और इसे पवित्रता का दर्जा देता है। इस दौरान मंदिर के कपाट 24 जून तक बंद रहते हैं, क्योंकि यह समय देवी के विश्राम और आत्मशुद्धि का माना जाता है। 25 जून को मंदिर के द्वार खुलते ही भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है, जो ‘रक्त बस्त्र’—देवी के रजस्वला अवस्था के पवित्र वस्त्र—को प्रसाद के रूप में पाने को आतुर रहते हैं। यह वस्त्र भक्तों के लिए आशीर्वाद और शक्ति का प्रतीक है।
‘पूर्व का महाकुंभ’: भक्ति और परंपरा का संगम
अंबुबाची मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि नारीत्व, प्रकृति और सृष्टि के चक्र का महोत्सव है। जहां देश के कई हिस्सों में मासिक धर्म को लेकर चुप्पी और भ्रांतियां प्रचलित हैं, वहीं कामाख्या मंदिर इसे मातृ शक्ति का प्रतीक मानकर सम्मान देता है। यही खासियत इस मेले को ‘पूर्व का महाकुंभ’ बनाती है। मेले में साधु-संतों, तांत्रिकों और भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो माता के चरणों में अपनी साधना और श्रद्धा अर्पित करते हैं।
पौराणिक कथा: माता सती और शक्ति पीठ की स्थापना
कामाख्या मंदिर की महिमा पौराणिक कथाओं से जुड़ी है। मान्यता है कि राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव और उनकी पत्नी माता सती को आमंत्रित नहीं किया गया। अपमानित होकर सती यज्ञ में पहुंचीं, जहां शिव का निरादर देख वे आग में कूद गईं। क्रोधित और शोकाकुल शिव सती के शरीर को लेकर ब्रह्मांड में भटकने लगे, जिससे सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया, और जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्ति पीठ बने। कामाख्या में माता सती की योनि गिरी, जो आज नीलाचल पर्वत पर कामाख्या मंदिर के रूप में स्त्री शक्ति और उर्वरता का प्रतीक है।
मेले का कार्यक्रम: भक्ति का अनुपम दृश्य
अंबुबाची मेला 2025 की शुरुआत आज सुबह 8:43 बजे विशेष पूजा के साथ हुई। 24 जून तक मंदिर के कपाट बंद रहेंगे, और इस दौरान कोई पूजा या दर्शन नहीं होंगे। 25 जून को मंदिर के द्वार खुलते ही भक्तों की भीड़ माता के दर्शन के लिए उमड़ पड़ेगी। 26 जून को मेला अपने चरम पर होगा, जब विशेष पूजन और उत्सव का माहौल पूरे गुवाहाटी को भक्ति के रंग में डुबो देगा।