काशी, बाबाभोलेनाथ की नगरी, जहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन मृत्यु और देव दीपावाली के जश्न का अद्भुत संगम देखने को मिला। यह शहर अपने आप में एक अनोखा महत्व रखता है, जहां जीवन और मृत्यु के बीच की रेखा खिंची हुई है।
महाश्मशान घाट पर, जब शिव और शव एक दूसरे में समा रहे थे, तब यह दृश्य देखने वालों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव था। यह वह जगह है जहां मृत्यु को नहीं छुपाया जाता, बल्कि उसे एक नए जीवन की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
देव दीपावाली के दिन, काशी के घाटों पर एक अलग ही रौनक दिखाई देती है। लोग अपने पूर्वजों की आत्माओं को श्रद्धांजलि देने के लिए दीये जलाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। यह एक ऐसा समय है जब लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर जीवन की महत्ता को समझते हैं।
काशी की यह अद्भुत संस्कृति और परंपरा हमें जीवन के सच्चे अर्थ को समझने का अवसर देती है। यह हमें बताती है कि जीवन और मृत्यु दोनों ही जीवन के अभिन्न अंग हैं और हमें उनका सम्मान करना चाहिए।