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Sunday, June 22, 2025

इलाहाबाद हाईकोर्ट की कड़क फटकार: “वर्दी छोड़ रंगीन कपड़ों में कोर्ट पहुंची पुलिस, DGP को नोटिस!”

प्रयागराज, 22 जून 2025, रविवार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस को आड़े हाथों लेते हुए सख्त लहजे में फरमान जारी किया है कि अदालत में कोई भी पुलिस अधिकारी रंग-बिरंगे सिविल कपड़ों में नजर नहीं आएगा। कोर्ट ने दो टूक कहा, “वर्दी ही पुलिस की शान और कर्तव्य की पहचान है। इसे छोड़कर कोर्ट में आना न्यायपालिका की गरिमा का अपमान है!” यह तल्ख टिप्पणी तब आई, जब मिर्जापुर के एक भ्रष्टाचार मामले की सुनवाई के दौरान एक जांच अधिकारी रंगीन शर्ट-पैंट में कोर्ट पहुंच गए। कोर्ट ने इस अनुशासनहीनता को गंभीरता से लिया और तत्काल पुलिस महानिदेशक (DGP) और प्रमुख सचिव (विधि) को नोटिस भेजने का आदेश दे डाला।

रिश्वतखोरी के मामले में उलझा केस, कोर्ट में खुली पोल

मामला मिर्जापुर का है, जहां भ्रष्टाचार निवारण संगठन ने शकील अहमद को 5,000 रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों धर दबोचा था। आरोप था कि शकील ने एक आपराधिक मामले में नाम न जोड़ने की एवज में रिश्वत मांगी। 22 फरवरी 2025 को हुई इस घटना के बाद शकील हिरासत में हैं और उन्होंने जमानत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया। सुनवाई के दौरान उनके वकील ने दलील दी कि शकील को उस केस की जांच का जिम्मा ही नहीं सौंपा गया था। कोर्ट ने जांच अधिकारी कृष्ण मोहन राय को केस डायरी के साथ तलब किया। डायरी की पड़ताल में सनसनीखेज खुलासा हुआ कि शकील का जांच से कोई लेना-देना नहीं था। इस आधार पर कोर्ट ने शकील को शर्तों के साथ जमानत दे दी, लेकिन असली ड्रामा तो अब शुरू हुआ!

वर्दी की जगह रंगीन कपड़े, कोर्ट में भड़के जज

जांच अधिकारी कृष्ण मोहन राय, जो मिर्जापुर भ्रष्टाचार निवारण संगठन में इंस्पेक्टर हैं, जब कोर्ट पहुंचे तो उनकी वर्दी गायब थी। इसके बजाय वे रंगीन शर्ट और पैंट में सज-धजकर हाजिर थे। अपर शासकीय अधिवक्ता ने जब उन्हें टोका, तो राय साहब नाराज हो गए और तर्क-वितर्क करने लगे। कोर्ट ने इस बेशर्मी पर कड़ा रुख अपनाया और कहा, “यह कोर्ट की मर्यादा पर सीधा हमला है। ऐसा रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा!” कोर्ट ने राय को कड़ी चेतावनी दी कि दोबारा ऐसी हरकत की तो सख्त कार्रवाई होगी।

DGP और प्रमुख सचिव को कोर्ट का सख्त निर्देश

हाईकोर्ट ने इस लापरवाही को पूरे पुलिस महकमे के लिए सबक बनाते हुए आदेश दिया कि यह निर्देश DGP और प्रमुख सचिव तक पहुंचाया जाए। रजिस्ट्रार (अनुपालन) को आदेश की प्रति तुरंत भेजने की जिम्मेदारी सौंपी गई। कोर्ट ने साफ कर दिया कि यह सिर्फ एक अधिकारी की गलती नहीं, बल्कि पूरे पुलिस सिस्टम के लिए बाध्यकारी दिशा-निर्देश है। भविष्य में कोई भी पुलिसकर्मी अगर वर्दी के बिना कोर्ट में दिखा, तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

न्यायपालिका का सख्त संदेश: “वर्दी है सम्मान, मर्यादा है सर्वोपरि”

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल पुलिस बल के लिए एक आंख खोलने वाला सबक है, बल्कि यह भी जता देता है कि न्यायपालिका अपनी गरिमा और अनुशासन के साथ कोई समझौता नहीं करेगी। वर्दी पुलिस की पहचान ही नहीं, बल्कि उसके कर्तव्य और सम्मान का प्रतीक है। यह फैसला हर उस पुलिस अधिकारी के लिए एक चेतावनी है जो कोर्ट को हल्के में लेने की भूल करता है। अब सवाल यह है कि क्या पुलिस महकमा इस आदेश को गंभीरता से लेगा, या फिर यह सिर्फ कागजों तक सिमटकर रह जाएगा?

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