लखनऊ, 22 मई 2025, गुरुवार। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फर्जी शादियों के बढ़ते मामले को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ा संदेश दिया है। कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए यूपी मैरिज रजिस्ट्रेशन रूल्स, 2017 में संशोधन करने का निर्देश दिया, ताकि विवाह की वैधता और पवित्रता को सुनिश्चित करने वाला एक मजबूत तंत्र विकसित हो सके। जस्टिस विनोद दिवाकर की बेंच ने सरकार को यह प्रक्रिया पूरी करने के लिए छह महीने का समय दिया है।
क्या है मामला?
यह कदम फर्जी दस्तावेजों के जरिए शादियों को रजिस्टर कराने वाले संगठित गिरोहों की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर उठाया गया है। कोर्ट ने यह आदेश घर से भागे जोड़ों की ओर से दायर 124 याचिकाओं की सुनवाई के बाद दिया। इन मामलों में सामने आया कि कई बार फर्जी दस्तावेजों और काल्पनिक गवाहों के आधार पर विवाह प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल हाई कोर्ट से सुरक्षा आदेश प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
सख्त नियमों का पालन अनिवार्य
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह पंजीकरण से जुड़े सभी डिप्टी रजिस्ट्रार 14 अक्टूबर, 2024 की अधिसूचना का सख्ती से पालन करें। इस अधिसूचना में शामिल प्रमुख निर्देश हैं:
- वर-वधू का आधार-आधारित प्रमाण पत्र और बायोमेट्रिक डेटा अनिवार्य।
- दोनों पक्षों और दो गवाहों की तस्वीरें।
- उम्र सत्यापन के लिए डिजिलॉकर, पासपोर्ट, पैन, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे आधिकारिक दस्तावेजों का उपयोग।
- शादी कराने वाले पंडित की रजिस्ट्रार कार्यालय में शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य।
भगोड़े जोड़ों पर भी लागू होंगे नियम
कोर्ट ने यह भी साफ किया कि ये नियम उन जोड़ों पर भी लागू होंगे, जो घर से भागकर बिना परिवार की सहमति के शादी करते हैं। हालांकि, अगर दोनों पक्षों के परिजन पंजीकरण के समय मौजूद हों और अधिकारी विवाह की वास्तविकता से संतुष्ट हों, तो इन शर्तों को आंशिक या पूर्ण रूप से माफ किया जा सकता है।
फर्जी प्रमाण पत्रों पर कोर्ट की चिंता
अपने 44 पन्नों के आदेश में कोर्ट ने बताया कि कई मामलों में विवाह प्रमाण पत्र उन संगठनों द्वारा जारी किए गए, जो वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं हैं। कुछ मामलों में गवाहों के नाम और आधार जैसे विवरण भी जाली पाए गए। कोर्ट ने यह भी उजागर किया कि कई बार शादी समारोह हुआ ही नहीं होता, फिर भी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर प्रमाण पत्र बनाए जाते हैं।
क्या होगा असर?
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल फर्जी शादियों पर लगाम लगाएगा, बल्कि विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया को और पारदर्शी व विश्वसनीय बनाएगा। यह कदम सामाजिक और कानूनी स्तर पर विवाह की पवित्रता को बनाए रखने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। अब गेंद यूपी सरकार के पाले में है, जिसे अगले छह महीनों में नियमों को और सख्त करना होगा।
यह फैसला न सिर्फ प्रशासनिक सुधारों की ओर इशारा करता है, बल्कि समाज में विश्वास और जवाबदेही को भी मजबूत करने का वादा करता है।