प्रयागराज, 26 जून 2025: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के कथित दुरुपयोग पर सख्त रुख अपनाते हुए मुजफ्फरनगर के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम), वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) और स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का आदेश दिया है। अदालत ने अधिकारियों से उनके “कदाचार और लापरवाही” के लिए स्पष्टीकरण मांगा है और साथ ही आरोपी मनशाद उर्फ सोना को जमानत प्रदान की है।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने मनशाद की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान यह तल्ख टिप्पणी की कि गैंगस्टर अधिनियम का उपयोग मनमाने ढंग से और बार-बार हिरासत को बढ़ाने के लिए किया गया। अदालत ने पाया कि मनशाद के खिलाफ पुराने आपराधिक मामलों के आधार पर गैंगस्टर अधिनियम की धारा 2/3 लगाई गई, जो पहले ही अन्य मामलों में दर्ज किए जा चुके थे। इसे कानून के दुरुपयोग का “सोचा-समझा प्रयास” करार देते हुए न्यायमूर्ति देशवाल ने कहा, “एसएचओ का आचरण अधिनियम के सरासर दुरुपयोग को दर्शाता है।”
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि डीएम और एसएसपी उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स नियम, 2021 के तहत अपने वैधानिक दायित्वों को पूरा करने में विफल रहे। नियम 5(3)(ए) के अनुसार, गैंगस्टर अधिनियम के तहत कार्रवाई से पहले संयुक्त बैठक में तर्कसंगत विचार-विमर्श अनिवार्य है, जिसका पालन नहीं किया गया। न्यायमूर्ति ने कहा, “यह न केवल एसएचओ की मनमानी को दर्शाता है, बल्कि डीएम और एसएसपी की घोर लापरवाही को भी उजागर करता है।”
उच्च न्यायालय ने गैंगस्टर अधिनियम के बार-बार और यांत्रिक उपयोग को सुप्रीम कोर्ट के गोरख नाथ मिश्रा बनाम यूपी राज्य मामले के फैसले और राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन बताया। अदालत ने जोर दिया कि इस कानून का लापरवाही से उपयोग, खासकर जब इससे लंबी कारावास हो, अस्वीकार्य है।
सुप्रीम कोर्ट की चिंताओं का हवाला देते हुए अदालत ने बताया कि वर्ष 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को गैंगस्टर अधिनियम के लिए स्पष्ट मापदंड तैयार करने का निर्देश दिया था। इसके अनुपालन में राज्य सरकार ने 2 दिसंबर, 2024 को एक चेकलिस्ट और प्रक्रियात्मक दिशा-निर्देश जारी किए, जिन्हें SHUATS विश्वविद्यालय के निदेशक विनोद बिहारी लाल से जुड़े मामले में मंजूरी दी गई थी।
20 जून के अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने मुजफ्फरनगर के अधिकारियों को अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से पेश होने और अपने आचरण का स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया। साथ ही, अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करने का आदेश दिया गया।
यह मामला गैंगस्टर अधिनियम के दुरुपयोग पर न्यायिक चिंताओं को और गहरा करता है, और यह देखना बाकी है कि संबंधित अधिकारी अदालत के समक्ष क्या स्पष्टीकरण पेश करते हैं।