वाराणसी, 13 मई 2025, मंगलवार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), वाराणसी के कुलपति प्रो. संजय कुमार को अवमानना नोटिस जारी कर खलबली मचा दी है। यह मामला बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. सुशील कुमार दुबे के प्रमोशन से जुड़ा है, जिन्हें लंबे समय से उनके वैध अधिकारों से वंचित रखा गया। हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कुलपति को आदेश दिया है कि वे कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए हलफनामा दाखिल करें या फिर 3 जुलाई को स्वयं उपस्थित हों। यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने डॉ. दुबे की अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया।
कोर्ट के आदेश की अनदेखी बनी विवाद की जड़
दरअसल, हाईकोर्ट ने 7 जनवरी 2025 को कुलपति को स्पष्ट निर्देश दिया था कि डॉ. सुशील कुमार दुबे के प्रमोशन के मामले में नियमानुसार विचार कर तीन महीने के भीतर निर्णय लिया जाए। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस आदेश को दरकिनार कर दिया। नतीजतन, डॉ. दुबे को मजबूरन अवमानना याचिका दायर करनी पड़ी। याचिका में उन्होंने बताया कि बीएचयू की कार्यकारिणी परिषद ने 4 जून 2021 को उनके प्रमोशन की संस्तुति की थी, लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी उन्हें इसका लाभ नहीं मिला।
आयुर्वेद के प्रचारक प्रोफेसर की अनसुनी पुकार
डॉ. सुशील कुमार दुबे कोई साधारण प्रोफेसर नहीं हैं। वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने अपनी याचिका में दुख जताया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके प्रमोशन के अधिकारों को नजरअंदाज किया। यहाँ तक कि बीएचयू के तत्कालीन कुलाधिपति स्वर्गीय जस्टिस गिरिधर मालवीय के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद प्रमोशन प्रक्रिया को लागू नहीं किया गया। मजबूरन उन्हें न्याय के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
क्यों अहम है यह मामला?
यह मामला न केवल एक प्रोफेसर के व्यक्तिगत अधिकारों से जुड़ा है, बल्कि यह विश्वविद्यालय प्रशासन की जवाबदेही और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है। बीएचयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में कोर्ट के आदेशों की अवहेलना और कार्यकारिणी परिषद के निर्णयों को लागू न करना गंभीर चिंता का विषय है। डॉ. दुबे का कहना है कि वे आयुर्वेद के क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रहे हैं, लेकिन उनके अपने ही संस्थान में उनके योगदान को नजरअंदाज किया जा रहा है।
अब सबकी नजरें कोर्ट के अगले कदम पर
हाईकोर्ट के अवमानना नोटिस ने बीएचयू प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कुलपति प्रो. संजय कुमार के पास अब दो विकल्प हैं—या तो वे कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए हलफनामा दाखिल करें, या फिर 3 जुलाई को कोर्ट में पेश हों। इस मामले का नतीजा न केवल डॉ. दुबे के प्रमोशन को प्रभावित करेगा, बल्कि यह विश्वविद्यालयों में प्रशासनिक मनमानी पर भी एक बड़ा संदेश दे सकता है।
क्या बीएचयू प्रशासन समय रहते अपने कदम सुधारेगा, या यह विवाद और गहराएगा? यह देखना दिलचस्प होगा।