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Sunday, August 3, 2025

अखिलेश की नई सियासी चाल: ठाकुर वोटों का मोह छोड़, पीडीए पर दांव

लखनऊ, 22 अप्रैल 2025, मंगलवार। उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। मुलायम सिंह यादव के दौर में सपा का गढ़ रहे ठाकुर वोटरों से दूरी बनाते हुए अखिलेश ने अब पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) समीकरण को मजबूत करने का फैसला किया है। योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार पर ‘ठाकुर परस्ती’ का आरोप लगाकर अखिलेश न केवल बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि यूपी की राजनीति में एक नया नैरेटिव गढ़ रहे हैं। आखिर, अखिलेश की इस बदली रणनीति के पीछे क्या है, और सपा की नई सोशल इंजीनियरिंग कैसी होगी?

ठाकुर वोटों से दूरी: एक सोचा-समझा दांव

मुलायम सिंह के समय सपा का वोट बैंक यादव, मुस्लिम और ठाकुरों का मजबूत गठजोड़ था। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार में 48 ठाकुर विधायकों में से 38 सपा के थे, और 11 ठाकुर मंत्रियों ने सरकार में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी के उभार ने ठाकुर वोटरों को सपा से दूर कर दिया। ठाकुर समाज, जो योगी को अपने सर्वमान्य नेता के रूप में देखता है, अब बीजेपी का कोर वोट बैंक बन चुका है।

अखिलेश ने इस हकीकत को स्वीकार कर लिया है। हाल के बयानों में उन्होंने योगी सरकार पर ठाकुरों को अनुचित तवज्जो देने का आरोप लगाया है। आगरा में राणा सांगा पर विवादास्पद टिप्पणी करने वाले सपा नेता रामजीलाल सुमन का समर्थन करते हुए अखिलेश ने खुलकर ठाकुर बनाम दलित की राजनीति को हवा दी। उन्होंने पुलिस विभाग में ठाकुर दरोगाओं और अधिकारियों की संख्या का आंकड़ा पेश कर दावा किया कि योगी सरकार में ठाकुरों का बोलबाला है। सुल्तानपुर लूटकांड के आरोपी मंगेश यादव के एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए उन्होंने यूपी एसटीएफ को ‘स्पेशल ठाकुर फोर्स’ तक कह डाला। इन बयानों से साफ है कि अखिलेश ने ठाकुर वोटों की उम्मीद छोड़ दी है और अपनी सियासी जमीन को नए सिरे से तैयार कर रहे हैं।

पीडीए फॉर्मूला: सपा का नया हथियार

2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी। इस सफलता से उत्साहित अखिलेश अब 2027 में इसी रणनीति को और धार दे रहे हैं। यूपी में ठाकुर वोटर करीब 5% हैं, जो फिलहाल योगी के साथ मजबूती से खड़े हैं। दूसरी ओर, दलित (21%), पिछड़े (40%), और मुस्लिम (19%) मिलकर राज्य की आबादी का बड़ा हिस्सा हैं। अखिलेश का फोकस अब इन समुदायों के साथ-साथ गैर-ठाकुर सवर्णों, खासकर ब्राह्मणों (10%) को साधने पर है।

सपा की नई सोशल इंजीनियरिंग में ब्राह्मणों को विशेष तवज्जो दी जा रही है। अखिलेश ने गोरखपुर में पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के घर ईडी छापे को ठाकुर बनाम ब्राह्मण का रंग देकर योगी पर निशाना साधा। ब्राह्मणों की ठाकुरों से दोगुनी आबादी को देखते हुए अखिलेश इस समुदाय को बीजेपी से अलग करने की कोशिश में हैं। इसके अलावा, सपा ने संगठन में अतिपिछड़े और दलित चेहरों को अहमियत देकर अपने आधार को और मजबूत करने की रणनीति बनाई है।

बीजेपी की रणनीति को चुनौती

अखिलेश की यह रणनीति 2017 में बीजेपी द्वारा अपनाए गए दांव की याद दिलाती है, जब बीजेपी ने अखिलेश को ‘यादव परस्त’ बताकर गैर-यादव ओबीसी वोटरों को अपने पाले में किया था। अब अखिलेश उसी तर्ज पर योगी को ‘ठाकुर परस्त’ बताकर दलित, पिछड़े, और ब्राह्मण वोटरों को लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका दावा है कि योगी सरकार में ठाकुरों को छोड़कर बाकी समुदायों की उपेक्षा हो रही है। पुलिस और प्रशासन में ठाकुरों की कथित तैनाती के आंकड़े पेश कर अखिलेश इस नैरेटिव को मजबूत कर रहे हैं।

इस रणनीति का असर बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग पर पड़ सकता है। ब्राह्मण और ठाकुर, जो लंबे समय से बीजेपी के कोर वोटर रहे हैं, अगर बंटते हैं, तो सपा को इसका सीधा फायदा मिल सकता है। साथ ही, दलित और अतिपिछड़े वोटरों को साधकर अखिलेश 90% से ज्यादा वोट बैंक को अपने पाले में करने का दांव खेल रहे हैं।

चुनौतियां और संभावनाएं

अखिलेश की यह रणनीति जोखिम भरी भी है। ठाकुरों को पूरी तरह नजरअंदाज करना सपा के लिए कुछ क्षेत्रों में नुकसानदायक हो सकता है, खासकर उन सीटों पर जहां ठाकुर वोट निर्णायक हैं। इसके अलावा, बीजेपी भी जवाबी रणनीति तैयार कर सकती है। योगी की छवि और बीजेपी की संगठनात्मक ताकत को देखते हुए सपा के लिए यह राह आसान नहीं होगी। फिर भी, 2024 में पीडीए फॉर्मूले की सफलता ने अखिलेश को आत्मविश्वास दिया है कि वह इस नए समीकरण के दम पर बीजेपी को मात दे सकते हैं।

ठाकुर से पीडीए तक: अखिलेश का 2027 का गणित

अखिलेश यादव की बदली सियासी चाल यूपी की राजनीति में एक नया मोड़ ला रही है। ठाकुर वोटों का मोह छोड़कर पीडीए और ब्राह्मणों पर फोकस करने की उनकी रणनीति न केवल सपा के पारंपरिक वोट बैंक को फिर से परिभाषित कर रही है, बल्कि बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग को भी चुनौती दे रही है। योगी सरकार पर ठाकुरवाद का आरोप लगाकर अखिलेश एक तीर से कई निशाने साध रहे हैं। 2027 का चुनाव इस बात का फैसला करेगा कि क्या अखिलेश का यह दांव सपा को सत्ता में वापस ला सकता है, या बीजेपी अपनी मजबूत पकड़ को और गहरा लेगी। फिलहाल, यूपी की सियासत में ‘ठाकुर बनाम पीडीए’ का नैरेटिव जोर पकड़ रहा है, और सभी की नजरें इस सियासी जंग पर टिकी हैं।

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