ईरान में 900 से ज्यादा स्कूली छात्राओं को जहर देने का मामला दिनों दिन उलझता जा रहा है। दरअसल पहले कहा गया था कि स्कूली छात्राओं को जहर देने के पीछे इस्लामिक कट्टरपंथियों का हाथ है और वह नहीं चाहते कि लड़कियां स्कूल जाएं और उन्हें रोकने के लिए ही लड़कियों को जहर दिया गया। स्कूली छात्राओं को जहर देने का पहला मामला बीती 30 नवंबर को ईरान को कोम शहर में सामने आया था, जिसमें 50 के करीब छात्राओं को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि कुछ दिन बाद ही स्कूली छात्राओं को अस्पताल से वापस घर भेज दिया गया था। हालांकि एक छात्रा की मौत की भी खबर थी।
ईरानी मीडिया के अनुसार, देश के आठ प्रांतों के 58 स्कूलों में छात्राओं को जहर देने का खुलासा हुआ था। वहीं अंतरराष्ट्रीय मीडिया के अनुसार, ईरान के 10 प्रांतों के 30 स्कूलों में स्कूली छात्राओं को जहर दिया गया। पहले ईरानी सरकार ने इससे इनकार किया लेकिन बाद में स्वीकार किया कि स्कूली छात्राओं को जहर दिया गया। हाल ही में जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की बैठक हुई, जिसमें ईरान का यह मामला उठाया गया। कई देशों ने इस पर चिंता जाहिर की। ईरान के डिप्टी शिक्षा मंत्री ने भी स्वीकार किया कि कुछ लोगों ने लड़कियों को स्कूल जाने से रोकने के लिए ऐसा किया। हालांकि बाद में वह अपने बयान से पलट गए।
बीते शुक्रवार को ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने दावा किया कि यह ईरान के दुश्मन देशों का काम है ताकि लोगों में डर और असुरक्षा की भावना पैदा की जाए। फिलहाल ईरान के आंतरिक मामलों के मंत्री को घटना की जांच के आदेश दिए हैं। वहीं ईरान के एक वरिष्ठ मौलवी का कहना है कि सरकार के बयानों से लोगों में सरकार की विश्वसनीयता खत्म हो रही है। इससे लोगों में असमंजस की स्थिति बन गई है।