अहिल्याबाई होल्कर एक महान शासक और पर्यावरणविद् थीं। उन्होंने न केवल मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया, बल्कि उन्होंने इन मंदिरों के आसपास के क्षेत्र का भी विकास करवाया। उन्होंने इन मंदिरों को धार्मिक केंद्र बनाया और यहां तीर्थयात्रियों के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाईं।
अहिल्याबाई की करुणा केवल अपनी प्रजा पर ही नहीं, बल्कि अपने शासन में रहने वाले जीव, जंतु, पशु पक्षियों के प्रति भी एक जैसी ही प्रकट होती थी। उन्होंने पशु पक्षियों के लिए अलग खेत अर्थात चारागाह का निर्माण करवाया। इससे किसानों को होने वाले नुकसान में भी कमी आई। गौ सेवा के लिए भी अहिल्यादेवी ने महत्ती कार्य किया। गोवध बंदी कानून को कठोरता से लागू किया गया।
अहिल्याबाई ने पर्यावरण संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने वन संपदा को अनर्गल काटने पर दंड का विधान कर दिया था। नदियों के प्रदूषण को लेकर भी वे सजग थीं। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया था कि मंदिरों का निर्माल्य (पूजा के फूल) सीधे नदी में जाकर के नहीं मिले। मंदिरों के निर्माल्य का उचित प्रबंध हो उसके लिए व्यवस्थाएं की गई थीं।
अहिल्याबाई की पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि एकदम स्पष्ट थी। उन्होंने लोगों के सामान्य दैनिक कार्य, नहाना, कपड़े धोना, पशुओं को नहलाना इत्यादि कार्यों के लिए नर्मदाजी से अलग प्रवाह निकला, जहां पर लोग ये सब कार्य कर सकते थे। नर्मदा नदी के मुख्य प्रवाह में इस प्रकार के कार्य वर्जित कर दिए गए थे।
अहिल्याबाई ने भूजल स्तर की कमी ना हो, जमीन बंजर ना पड़े, इसलिए जगह-जगह पर नींबू, पीपल, आम, बरगद, कटहल इत्यादि पेड़ लगवाए गए।