✍️ विकास यादव
लखनऊ, 26 मार्च 2025, बुधवार। आज, 26 मार्च 2025 को उत्तर प्रदेश के आगरा में एक ऐसी घटना घटी, जिसने राज्य की सियासत में हलचल मचा दी। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तीखा हमला बोला है। मामला सपा के दलित सांसद रामजी लाल सुमन के घर पर करणी सेना द्वारा की गई हिंसक तोड़फोड़ का है। यह घटना तब हुई, जब मुख्यमंत्री योगी आगरा में मौजूद थे। अखिलेश ने इसे योगी सरकार के “ज़ीरो टॉलरेंस” के दावे का मज़ाक उड़ाते हुए सवाल उठाया कि क्या मुख्यमंत्री का प्रभाव कम हो रहा है या उनकी बात अब कोई सुन ही नहीं रहा?
घटना का विवरण: हिंसा का तांडव
आगरा के हरिपर्वत इलाके में स्थित रामजी लाल सुमन के आवास पर करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने जमकर उत्पात मचाया। खबरों के मुताबिक, प्रदर्शनकारी न केवल नारे लगाते हुए आए, बल्कि पथराव, तोड़फोड़ और गाड़ियों को नुकसान पहुंचाने जैसी हिंसक गतिविधियों में भी शामिल हुए। कुछ कार्यकर्ताओं ने तो बुलडोजर तक का इस्तेमाल किया, जिसने इस घटना को और भी गंभीर बना दिया। यह सब उस समय हुआ, जब शहर में मुख्यमंत्री योगी एक सार्वजनिक कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे, जो घटनास्थल से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर था। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन कई पुलिसकर्मियों के घायल होने की खबरें भी सामने आईं।
इस हिंसा की जड़ सांसद रामजी लाल सुमन के उस बयान में छिपी है, जिसमें उन्होंने राजपूत शासक राणा सांगा को “गद्दार” कहकर इतिहास की एक विवादास्पद व्याख्या पेश की थी। करणी सेना ने इसे अपने समुदाय का अपमान माना और आक्रोश में सड़कों पर उतर आई।
अखिलेश का तंज: “ज़ीरो टॉलरेंस या ज़ीरो प्रभाव?”
अखिलेश यादव ने इस घटना को योगी सरकार की नाकामी का प्रतीक बताया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “आगरा में मुख्यमंत्री की मौजूदगी में भी जब सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) सांसद के घर पर हिंसक वारदात नहीं रोकी जा सकती, तो ज़ीरो टॉलरेंस तो ज़ीरो ही है।” उनका कहना है कि यह घटना योगी के शासन की कमजोर पड़ती पकड़ को दर्शाती है। अखिलेश ने तंज कसते हुए पूछा, “क्या मुख्यमंत्री का प्रभाव क्षेत्र दिन-ब-दिन सिकुड़ रहा है, या फिर ‘आउटगोइंग सीएम’ की अब कोई सुन नहीं रहा?”
उन्होंने सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की और सुझाव दिया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का इस्तेमाल कर दोषियों की पहचान की जाए और उन्हें सजा दी जाए। अखिलेश ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह माना जाएगा कि यह हमला मुख्यमंत्री की शह पर हुआ है। यह बयान न केवल योगी सरकार की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि सपा की पीडीए रणनीति को भी मजबूती देता है, जो दलित और पिछड़े वर्गों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में है।
योगी सरकार पर दबाव: साख का सवाल
योगी आदित्यनाथ की सरकार लंबे समय से “ज़ीरो टॉलरेंस टू क्राइम” का दावा करती रही है। बुलडोजर को अपनी सख्ती का प्रतीक बनाकर उन्होंने विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल की थी। लेकिन आगरा की यह घटना उनके इस दावे पर बड़ा सवालिया निशान लगाती है। खासकर तब, जब यह सब उनकी मौजूदगी में हुआ। विपक्ष इसे सरकार की नाकामी और अराजकता का सबूत बताकर जनता के बीच ले जाना चाहेगा।
सियासी नफा-नुकसान: 2027 की तैयारी
यह घटना 2027 के विधानसभा चुनावों की जमीन तैयार करने में भी अहम हो सकती है। सपा जहां इसे दलित उत्पीड़न का मुद्दा बनाकर अपनी पीडीए रणनीति को धार देना चाहती है, वहीं करणी सेना जैसे संगठन राजपूत समुदाय को एकजुट करने की कोशिश में हैं। दूसरी ओर, बीजेपी के लिए यह चुनौती है कि वह कानून-व्यवस्था के अपने मजबूत नैरेटिव को कैसे बरकरार रखे। अगर दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो विपक्ष को योगी सरकार को घेरने का और मौका मिलेगा।
सवालों के घेरे में कानून-व्यवस्था
आगरा की यह घटना सिर्फ एक हिंसक प्रदर्शन नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत का एक टर्निंग पॉइंट हो सकती है। अखिलेश यादव ने इसे योगी सरकार की कमजोरी के रूप में पेश कर एक सियासी दांव खेला है। अब गेंद योगी के पाले में है। क्या वह त्वरित और सख्त कार्रवाई कर अपने “ज़ीरो टॉलरेंस” के दावे को साबित करेंगे, या यह घटना उनकी सरकार की साख पर एक और धब्बा बनकर रह जाएगी? आने वाले दिन इस सवाल का जवाब देंगे, लेकिन फिलहाल यह साफ है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में तापमान बढ़ चुका है।