वाराणसी, 26 सितंबर। 22 जून की रात नीची बाग के ज्वेलर्स जयराम के कर्मियों अविनाश गुप्ता, धनंजय यादव से 42.50 लाख रुपये और कोलकाता के कारोबारी आतिश से पांच लाख रुपये की डकैती के मामले में पुलिस ने आरोपित दारोगा सूर्य प्रकाश पांडेय के डकैत गिरोह पर गैंगस्टर का शिकंजा कस दिया है। इसके साथ की जमानत पर छूटे दारोगा सूर्य प्रकाश पांडे को पुलिस ने फिर से गिरफ्तार किया है। पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर अब वर्दी की आड़ में लुटेरों का गैंग चलाने वाले दरोगा को बर्खास्त करने की तैयारी चल रही है। इससे पूर्व 22 सितंबर को रामनगर थाना प्रभारी राजू सिंह ने डकैती गिरोह के सभी छह आरोपितों के खिलाफ जांच पूरी कर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी।
खबरों के मुताबिक, वाराणसी पुलिस ने दरोगा सूर्यप्रकाश को गुरुवार को आदमपुर से गिरफ्तार किया है। जांच में दरोगा के कई और मामले खुलकर सामने आए हैं। ACP कोतवाली ईशान सोनी ने दरोगा से थाने में 3 घंटे पूछताछ की है। दरोगा के केस में इंस्पेक्टर रामनगर ने 4 दिन पहले ही चार्जशीट ACP कोतवाली को सौंपी थी। फिलहाल उसको कोर्ट में पेश किया गया है। बता दें कि डकैती कांड का मुख्य आरोपी सूर्यप्रकाश पांडे को पिछले दिनों पुलिस की लचर पैरवी से सलाखों के बाहर निकल पाया था। कोर्ट में पुलिस पूरे साक्ष्य भी पेश नहीं कर सकी थी। किरकिरी होने के बाद पुलिस अधिकारियों ने फिर दरोगा को गिरफ्तार कर लिया। अब उसकी गिरफ्तारी नए गैंगस्टर केस में हुई है, जिसमें उसके अन्य साथियों को भी शामिल किया गया है।
यह था पूरा मामला
नीचीवाग के ज्वेलर्स जयराम के कर्मचारी अविनाश गुप्ता, धनंजय यादव 22 जून की रात बस से कोलकाता जा रहे हे थे। रास्ते में बस को निशाना बनाकर डकैती डाली गई। रामनगर पुलिस ने केस दर्ज करने में हीलाहवाली की, लेकिन पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल को भनक लगी तो उन्होंने गहराई से जांच कराई। जिसमें आरोपित दारोगा सूर्यप्रकाश और उसके छह साथियों का नाम सामने आया। गिरोह के पकड़े जाने की भनक पर कोलकाता से पहुंचे कारोबारी आतिश ने अपने पांच लाख रुपये लूटने की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल केस की सुस्त जांच पर रामनगर के तत्कालीन इंस्पेक्टर और एसीपी को हटा दिया थे। तेज जांच का जिम्मा इंस्पेक्टर राजू सिंह को सौंपा गया था, जो दिखाई भी पड़ने लगा है।
व्यापारियों की आधी रकम लूटने के बाद छोड़ देते थे आरोपी
पुलिस ने बताया कि अपराध करने की इनका अलग ही तरीका था। मुखबिर की सूचना पर ये व्यापारियों को क्राइम ब्रांच की टीम के रूप में संदिग्ध वस्तु के नाम पर रोककर उनकी तलाशी लेते थे, जितना भी कैश व्यापारियों के पास से मिलता था, उसका आधा ये रख लेते और घटना का जिक्र किसी से भी न करने की हिदायत देते थे। इसके पीछे इनका मकसद था कि व्यापारी दबाव में इसकी चर्चा किसी से नही करेंगे।