वाराणसी, 24 अक्टूबर 2024, गुरुवार। रोशनी का त्योहार दीपावली को अब कुछ ही दिन शेष हैं, ऐसे में दीपावली की तैयारियां पूरे देश में जोर-शोर से चल रही हैं। यूं तो बनारस की पहचान बनारसी साड़ी और पान के लिए है, लेकिन काशी के गंगा घाट से बनी सिंदूरी मूर्ति भी कम खास नहीं है। यहां की बनी मूर्तियों की मांग देश ही नहीं, विदेशी में भी होती है। मूर्तियों को तैयार करने वाले कलाकार मूर्तियों को रंग और आकार देने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। मूर्तिकार बताते हैं कि कच्ची मिट्टी से तैयार होने की वजह से यह शुद्ध होती हैं और पूजा के लिए शास्त्री मान्यताओं के अनुरूप भी होती हैं। यही वजह है कि इन मूर्तियों की डिमांड पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारत, पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा है।
पिछले पांच पीढ़ियों से मूर्ति व्यवसाय से जुड़े काशीनाथ बताते हैं कि यहां की बनी मूर्ति बहुत ही शुद्ध होती हैं क्योंकि गंगा की शुद्ध मिट्टी से बनने के साथ-साथ इन मूर्तियों को रंगने के लिए सिंदूर का प्रयोग किया जाता है। यह वही सिंदूर है जो औरतें लगाती हैं, जिसको पारा वाला सिंदूर भी कहते हैं। इसे तार वाली गणेश लक्ष्मी की मूर्ति या सिंदूरी मूर्ति के नाम से जाना जाता है। मूर्ति में रंग रोगन करने वाली शिल्पी बताती है गंगा जी से मिट्टी लाकर उनमें से कंकड़ आदि चीजें निकाला जाता है। फिर सांचे में मिट्टी डालकर सूखाने के बाद भट्टी में उसे पकाया जाता है। इसके बाद मूर्ति में सिंदूरी रंग करने के बाद उसमें तार डाला जाता है। इसके बाद मूर्ति में गोल्डन कलर किया जाता है। भगवान की आंख, महालक्ष्मी के वस्त्र भी अलग से पहनाए जाते हैं।
बताने की जरूरत नहीं, धनतेरस से शुरू होने वाला दिवाली का यह त्योहार पांच दिन तक चलता है। दिवाली पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है फिर छोटी दिवाली, इसके बाद दीपावली पर गणेश, लक्ष्मी पूजन फिर गोवर्धन पूजन और अंत भाई दूज का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि माता लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा क्यों की जाती है और रिद्धि सिद्धि कौन हैं। साथ ही दिवाली पूजन में शुभ-लाभ क्यों लिखा जाता है। दरसल, मां लक्ष्मी के साथ गणेशजी की पूजा जरूरी है। माता लक्ष्मी श्री, अर्थात धन-संपादा की स्वामिनी हैं, वहीं श्रीगणेश बुद्धि-विवेक के। बिना बुद्धि-विवेक के धन-संपदा प्राप्त होना दुष्कर है। माता लक्ष्मी की कृपा से ही मनुष्य को धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
मां लक्ष्मी की उत्पत्ति जल से हुई थी और जल हमेशा चलायमान रहता है, उसी तरह लक्ष्मी भी एक स्थान पर नहीं ठहरतीं। लक्ष्मी के संभालने के लिए बुद्धि-विवेक की आवश्यकता पड़ती है। बिना बुद्धि-विवेक के लक्ष्मी को संभाल पाना मुश्किल है इसलिए दिवाली पूजन में लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा की जाती है। ताकि लक्ष्मी के साथ बुद्धि भी प्राप्त हो। कहा जाता है कि जब लक्ष्मी मिलती है तब उसकी चकाचौंध में मनुष्य अपना विवेक खो देता है और बुद्धि से काम नहीं करता। इसलिए लक्ष्मीजी के साथ हमेशा गणेशजी की पूजा करनी चाहिए।