लखनऊ, 22 मार्च 2025, शनिवार। उत्तर प्रदेश में औद्योगिक विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नाम पर भ्रष्टाचार की एक नई कहानी सामने आई है। इस कहानी का केंद्रीय पात्र हैं आईएएस अधिकारी अभिषेक प्रकाश, जिन्हें हाल ही में योगी आदित्यनाथ सरकार ने सस्पेंड कर दिया। मामला सिर्फ अभिषेक तक सीमित नहीं है—सूत्रों की मानें तो यदि जांच का दायरा बढ़ा, तो कई और बड़े अधिकारी इस जद में आ सकते हैं। नोएडा से लेकर अयोध्या और बुंदेलखंड तक, भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी नजर आ रही हैं, और अभिषेक प्रकाश का सस्पेंशन इसकी महज शुरुआत हो सकता है।
कमीशन की भेंट चढ़ा इन्वेस्ट यूपी का सपना
अभिषेक प्रकाश, जो इन्वेस्ट यूपी के सीईओ और औद्योगिक विकास विभाग के सचिव के रूप में तैनात थे, पर आरोप है कि उन्होंने सोलर इंडस्ट्री प्रोजेक्ट की मंजूरी के लिए एक बिजनेसमैन से 5% कमीशन की मांग की थी। जब कमीशन नहीं मिला, तो प्रोजेक्ट की फाइल को रोक दिया गया। यह मामला तब प्रकाश में आया, जब शिकायतकर्ता ने इसकी गोपनीय जांच की मांग की। जांच में आरोपों की पुष्टि होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तुरंत कार्रवाई की और अभिषेक को निलंबित कर दिया। उनके सहयोगी मध्यस्थ निकांत जैन को भी गिरफ्तार कर लिया गया है।
विजिलेंस जांच से बढ़ेंगी मुश्किलें
अभिषेक प्रकाश की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं। योगी सरकार ने अब उनकी संपत्तियों और पिछले कार्यकाल की जांच के लिए विजिलेंस टीम को सक्रिय कर दिया है। नियुक्ति विभाग ने इस जांच की सिफारिश की है, जिसमें उनकी हर तैनाती—लखनऊ के डीएम से लेकर इन्वेस्ट यूपी के सीईओ तक—की बारीकी से पड़ताल होगी। खबरें हैं कि अभिषेक ने अपनी तैनाती के दौरान जमीन खरीद-फरोख्त और संपत्ति अर्जन में भी बड़े पैमाने पर अनियमितताएं कीं। लखनऊ में कई बंगले, 700 बीघा जमीन, और ब्रह्मोस मिसाइल फैक्ट्री के नाम पर 20 करोड़ के घोटाले की बातें भी सामने आ रही हैं।
नोएडा, अयोध्या, बुंदेलखंड: भ्रष्टाचार का जाल
अभिषेक प्रकाश अकेले नहीं हैं। औद्योगिक विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर नोएडा, अयोध्या और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में कई अधिकारियों ने कथित तौर पर चांदी काटी है। लखनऊ डिफेंस कॉरिडोर प्रोजेक्ट में जमीन अधिग्रहण से लेकर बरेली में निजी टाउनशिप को फायदा पहुंचाने तक, कई मामलों में अभिषेक का नाम उछला है। सूत्रों का कहना है कि यदि विजिलेंस जांच ने गहराई से पड़ताल की, तो कई और बड़े नाम सामने आ सकते हैं। यह भ्रष्टाचार का एक ऐसा जाल है, जिसने ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के दावों को खोखला कर दिया।
योगी सरकार की सख्ती
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को बार-बार दोहराया है। अभिषेक प्रकाश का सस्पेंशन इस नीति का एक और सबूत है। योगी शासन में अब तक 11 आईएएस अधिकारियों को भ्रष्टाचार के लिए निलंबित किया जा चुका है, जिनमें घनश्याम सिंह और देवीशरण उपाध्याय जैसे नाम शामिल हैं। सरकार का कहना है कि निवेशकों के हितों से कोई समझौता नहीं होगा और भ्रष्टाचार करने वाले हर अधिकारी को सजा मिलेगी। अभिषेक के मामले में भी सख्त कार्रवाई के संकेत हैं—विजिलेंस जांच के बाद बर्खास्तगी या कानूनी कार्रवाई की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
आगे क्या?
अभिषेक प्रकाश के सस्पेंशन के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या यह कार्रवाई भ्रष्टाचार की जड़ तक पहुंच पाएगी? समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इसे महज ‘नाटक’ करार देते हुए कहा कि असली भ्रष्टाचार ऊपरी स्तर पर है। वहीं, सरकार का दावा है कि यह कार्रवाई निवेशकों में विश्वास जगाने के लिए जरूरी थी। जांच का दायरा बढ़ने पर यह साफ होगा कि अभिषेक अकेले थे या उनके साथ और भी अधिकारी इस खेल में शामिल थे।
फिलहाल, अभिषेक प्रकाश की कहानी उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार की एक नई गाथा बन चुकी है। विजिलेंस जांच के नतीजे इस कहानी का अगला अध्याय लिखेंगे—क्या यह सिर्फ एक अधिकारी की सजा तक सीमित रहेगा, या पूरे सिस्टम की सच्चाई सामने आएगी? समय बताएगा।