प्रयागराज, 12 जनवरी 2025, रविवार। महाकुंभ में आए नागा सन्यासी विक्रमानंद सरस्वती की कहानी बड़ी दिलचस्प है। वह मध्य प्रदेश के इंदौर से अपनी स्कूटी पर महाकुंभ में पहुंचे हैं। उनकी कुटिया अखाड़ा एरिया में स्थित है, जहां वह धूनी जलाकर बैठते हैं।
विक्रमानंद सरस्वती का असली नाम विक्रम सिंह ठाकुर है, वो इंदौर के ही एक गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता गांव के सरपंच और जमीनदार थे। मां कुशल गृहणी थीं। महज आठ साल की उम्र में वैराग्य की ओर चल पड़े विक्रमानंद सरस्वती के जीवन में एक ऐसा मोड़ भी आया था, जब उन्हें जेल जाना पड़ा था, वो भी किसी और की नहीं बल्कि उनके अपने मां-बाप की वजह से।
विक्रमानंद बताते हैं कि आठवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद उनका मन वैरागी हो गया था। वह गांव के बाहर कुटिया डालकर उसमें रहने लगे थे। यह देख उनके पिताजी को लग रहा कि देश समाज में ये लड़का बेईज्जती करा रहा है। इसलिए बाग से उनकी कुटिया हटवा दी गई। उन्हें घर लाया गया। उनकी शादी की तैयारी शुरू हो गई। इसकी जानकारी जब विक्रमानंद को हुई तो उन्होंने शादी करने से मना कर दिया।
पहले तो माता-पिता ने बहुत समझाया लेकिन जब काफी दिनों तक विक्रमानंद मां-बाप की बात नहीं मानें तो एक दिन दोनों लोगों ने गुस्से में आकर जहर खा लिया और कहा कि तू शादी नहीं करेगा तो हम अपनी जान दे देंगे। उसके बाद पुलिस को खबर दी गई। पुलिस पहुंची और पूछताछ की तो पिता ने पुलिस से कह दिया कि बेटे विक्रम की वजह से उन दोनों लोगों ने जहर खाया है। उसके बाद पुलिस विक्रमानंद को थाने उठा ले गई। तीन दिन तक उन्हें थाने के लॉकअप में रखा गया।
परिवार, पुलिस और प्रशासन के प्रेशर में आकर विक्रमानंद ने शादी तो कर ली, लेकिन डेढ़ साल बाद ही टीबी की वजह से उनकी पत्नी की मौत हो गई। उसके बाद उन्होंने किसी की नहीं सुनी और अपने सन्यास पथ पर निकल पड़े। पहले वो 8 साल तक श्मशान में रहे। फिर कबीरपंथी हो गए। करीब 12 साल पहले वह जूना अखाड़े से जुड़ गए।
वर्तमान में विक्रमानंद सरस्वती कोटपार्थ, नर्मदाघाट, रायसेन में स्थित एक गुफा में रहते हैं। वहीं एक शिव और हनुमान मंदिर हैं। हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज के सभी कुंभ में जाते हैं। इस बार के कुंभ मेले को अन्य कुंभ से अलग बताते हुए विक्रमानंद महराज योगी के कार्यों की तो प्रशंसा कर रहे हैं, लेकिन मातहतों की कार्य शैल पर खासी नाराजगी जता रहे हैं। उनका कहना है कि यहां पर योगी के मातहत संत महात्माओं की उपेक्षा कर रहे हैं। जो बहुत ही निंदनीय है।