नई दिल्ली, 14 जून 2025। अहमदाबाद के आसमान में हुए दिल दहलाने वाले विमान हादसे ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। एयर इंडिया की फ्लाइट एआई171 के इस हादसे में 265 जिंदगियां छिन गईं—230 यात्री, दो पायलट और 12 क्रू मेंबर। इस त्रासदी ने हर दिल को झकझोर दिया, लेकिन मणिपुर के लिए यह दर्द कुछ ज्यादा ही गहरा है। इस हादसे में मणिपुर की दो बेटियों—लामनुनथेम सिंगसन और नगनथोई शर्मा—की जान चली गई। लेकिन इनकी कहानी सिर्फ़ दुख की नहीं, बल्कि एक ऐसी दोस्ती की है, जो मणिपुर की जातीय हिंसा की आग में भी नहीं जली। उनकी यह कहानी आपके दिल को छू जाएगी और आंसुओं में डुबो देगी।
मैतेई-कुकी की दोस्ती: हिंसा के बीच प्यार की मिसाल
मणिपुर, जहां पिछले कुछ सालों से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच तनाव और हिंसा की आग सुलग रही है, वहां ये दो बेटियां एक-दूसरे की ताकत बनकर उभरीं। 26 साल की लामनुनथेम सिंगसन कुकी समुदाय से थीं, तो 20 साल की नगनथोई शर्मा मैतेई समुदाय से। दोनों एयर इंडिया की बोइंग 787 ड्रीमलाइनर की केबिन क्रू थीं। उनकी दोस्ती ऐसी थी, मानो खून का रिश्ता हो। इम्फाल की गलियों में पली-बढ़ी सिंगसन मैतेई भाषा में उतनी ही सहज थीं, जितनी नगनथोई कुकी समुदाय की संस्कृति को समझती थीं। फ्लाइट में दोनों की हंसी-मजाक और एक-दूसरे की भाषा में ठहाके मणिपुर के तनाव को पलभर में भुला देते थे।
सपनों की उड़ान और आखिरी हंसी
नगनथोई के लिए यह लंदन की उड़ान किसी सपने से कम नहीं थी। पहली बार इतनी लंबी यात्रा पर जा रही थीं। उनकी वर्दी में चमकती आंखें और चेहरे की रौनक सबको उनकी खुशी का अहसास करा रही थीं। साथ थीं सिंगसन, जो उनकी बड़ी बहन सी थीं। दोनों ने फ्लाइट में यात्रियों के चढ़ने से पहले मोबाइल पर वीडियो बनाए, हंसी-मजाक किया। एक पल ऐसा आया जब दोनों अनजाने में टकरा गईं। हंसते हुए मैतेई भाषा में एक-दूसरे को छेड़ा और फिर मोबाइल स्क्रीन में खो गईं। उन्हें क्या पता था कि यह उनकी आखिरी हंसी, आखिरी तस्वीर होगी।
हिंसा के साये में अटूट रिश्ता
मणिपुर में जातीय हिंसा ने सिंगसन के परिवार को कांगुई के राहत शिविर में शरण लेने को मजबूर किया था। लेकिन इस तनाव का असर उनकी और नगनथोई की दोस्ती पर कभी नहीं पड़ा। दोनों ने न सिर्फ़ एक-दूसरे का साथ निभाया, बल्कि यात्रियों की सेवा में भी एकजुट होकर काम किया। सिंगसन का जन्म 1999 में हुआ था, जबकि नगनथोई 2005 में। उम्र में छोटी नगनथोई को सिंगसन हमेशा बहन की तरह प्यार देती थीं। उनकी यह दोस्ती मणिपुर के पहाड़ों और मैदानों के बीच एक नया सेतु बन गई।
विमान हादसे ने छीना, पर दोस्ती अमर
हादसे ने न सिर्फ़ इन दो बेटियों को छीना, बल्कि उनकी अनूठी दोस्ती को भी हमेशा के लिए आसमान में ले गया। लेकिन उनकी कहानी आज भी जिंदा है। मणिपुर में जहां हिंसा ने लोगों को बांट रखा है, वहां सिंगसन और नगनथोई की दोस्ती एक मिसाल बन गई है। दोनों समुदायों के लोग पहली बार एक साथ इन बेटियों के लिए शोक मना रहे हैं। उनके छोटे से करियर ने मणिपुर को एक बड़ा संदेश दिया—प्यार और दोस्ती की कोई सीमा नहीं होती।
मणिपुर का गम, देश की आंसुओं की दास्तान
आज मणिपुर के पहाड़ों और मैदानों में मातम पसरा है। लेकिन इस दुख के बीच सिंगसन और नगनथोई की दोस्ती एक ऐसी मशाल बनकर उभरी है, जो मणिपुर के घावों को भरने की उम्मीद जगाती है। उनकी हंसी, उनका साथ, और उनकी एकता आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। यह दोस्ती न सिर्फ़ मणिपुर, बल्कि पूरे देश को प्रेरणा दे रही है कि प्यार और भाईचारा हर मुश्किल को हरा सकता है।