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Thursday, June 26, 2025

राष्ट्रवाद का नया दौर: महंत राजू दास की हुंकार

लखनऊ, 31 मार्च 2025, सोमवार। सुल्तानपुर में एक भव्य आयोजन के बीच अयोध्या हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास ने राष्ट्रवाद की जोरदार आवाज बुलंद की। रविवार रात चौक में भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2082 और चैत्र नवरात्रि के उपलक्ष्य में जिला युवा अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे महंत राजू दास ने मां दुर्गा की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन के साथ समारोह की शुरुआत की। लेकिन इस आयोजन की असली चमक तब देखने को मिली, जब उन्होंने अपने बेबाक विचारों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

महंत राजू दास ने कहा, “गाजी और पाजी का समय अब खत्म हो चुका है। यह राष्ट्रवादियों का दौर है।” उन्होंने गाजी और कुशभवनपुर में लगने वाले मेले पर सवाल उठाते हुए शासन-प्रशासन से अपील की कि ऐसे आयोजनों पर रोक लगनी चाहिए, जिन्हें वे चोरों, लुटेरों, बलात्कारियों और राष्ट्रद्रोहियों का जमावड़ा मानते हैं। उनके शब्दों में गहरी पीड़ा थी जब उन्होंने कहा, “जिन्होंने लाखों मंदिर तोड़े, मां-बहनों की इज्जत लूटी और कत्लेआम मचाया, उनका मेला लगना किसी भी सनातनी, हिंदू या भारतवासी को स्वीकार नहीं।” उन्होंने प्रशासन के हालिया प्रयासों की सराहना भी की, जहां ऐसी गतिविधियों पर रोक लगाई गई।

महंत ने अंतरराष्ट्रीय मंच की ओर भी ध्यान खींचा। उन्होंने पाकिस्तान में बालोचियों पर हो रहे अत्याचारों की निंदा करते हुए कहा, “वहां मां-बेटियों के साथ बलात्कार, हत्याएं और अन्याय हो रहा है, लेकिन मानवाधिकार कहां खो गया?” उन्होंने सिंध को अलग देश बनाने की मांग उठाई और प्रस्ताव रखा कि पाकिस्तान के तीन टुकड़े होने चाहिए। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से संयुक्त राष्ट्र में यह मुद्दा उठाने का आग्रह किया।

वक्फ बोर्ड पर भी उनकी टिप्पणी तीखी थी। इसे “बकवास बोर्ड” करार देते हुए उन्होंने कहा कि यह जमीन हड़पने का एक जरिया मात्र है। उन्होंने सवाल उठाया, “जब भारत एक सेक्युलर देश है, एक संविधान और एक विधान है, तो इस्लामिक कानून और वक्फ बोर्ड जैसे ढांचे क्यों?” महंत ने मुस्लिम समुदाय की 40 करोड़ आबादी का जिक्र करते हुए उनकी अल्पसंख्यक स्थिति पर भी सवाल उठाया।

यह आयोजन केवल नववर्ष और नवरात्रि का स्वागत ही नहीं था, बल्कि एक विचार मंथन का मंच बन गया, जहां राष्ट्रवाद, संस्कृति और सामाजिक न्याय की गूंज सुनाई दी। महंत राजू दास के ये विचार निश्चित रूप से चर्चा का विषय बनेंगे और समाज को नए दृष्टिकोण से सोचने के लिए प्रेरित करेंगे।

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