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Saturday, August 2, 2025

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को 0.1 अंक की चूक पड़ी भारी, ए ग्रेड से चूका

वाराणसी, 3 जुलाई 2025: देश के प्रतिष्ठित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (नैक) मूल्यांकन में महज 0.1 अंक की कमी के कारण ए ग्रेड से हाथ धोना पड़ा। विश्वविद्यालय को 2.99 अंक मिले, जिसके चलते उसे बी++ ग्रेड से संतोष करना पड़ा। ए ग्रेड के लिए 3 अंक जरूर थे, और इस छोटी-सी चूक ने विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को झटका दिया है।

शोध का सूखा, शिक्षकों की कमी बनी वजह

नैक मूल्यांकन में विश्वविद्यालय की कमजोरियां उजागर हुईं। पिछले छह साल (2018 से) विश्वविद्यालय में एक भी शोध कार्य नहीं हुआ। शिक्षकों की संख्या भी चिंताजनक रूप से घट गई है। जहां पहले 60 शिक्षक थे, अब यह संख्या घटकर मात्र 27 रह गई है। रिटायर हुए शिक्षकों की जगह नए शिक्षकों की भर्ती नहीं हुई। इसके अलावा पुस्तकालय का उन्नयन और बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी ग्रेडिंग में रुकावट बना।

दस साल बाद मूल्यांकन, फिर भी निराशा

नैक मूल्यांकन हर पांच साल में होना चाहिए, लेकिन विश्वविद्यालय में दस साल बाद यह प्रक्रिया हुई। 2014 में हुए पिछले मूल्यांकन में विश्वविद्यालय को 3.4 अंक के साथ ए ग्रेड मिला था। इस बार की कमजोर स्थिति ने विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। नैक मूल्यांकन में शिक्षक-छात्र अनुपात, शोध, बुनियादी सुविधाएं, प्रवेश, परीक्षा और परिणाम जैसे मानक शामिल होते हैं।

550 से अधिक संबद्ध कॉलेज, फिर भी चुनौतियां

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से उत्तर प्रदेश के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, बिहार, राजस्थान, सिक्किम, हरियाणा और पश्चिम बंगाल में 550 से अधिक कॉलेज संबद्ध हैं। इतने व्यापक नेटवर्क के बावजूद विश्वविद्यालय की ग्रेडिंग में गिरावट चिंता का विषय है।

कुलपति ने शुरू की शोध की पहल, लेकिन राह मुश्किल

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने शोध कार्यों को फिर से शुरू करने की पहल शुरू की है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा मूल्यांकन रिपोर्ट के आधार पर ग्रेड सुधारना आसान नहीं होगा। शिक्षकों की कमी और सुविधाओं के अभाव जैसे मुद्दों को हल करना विश्वविद्यालय के लिए बड़ी चुनौती है।

आगे क्या?

विश्वविद्यालय से जुड़े लोग नैक परिणामों की अपनी-अपनी व्याख्या कर रहे हैं। कुछ इसे सुधार का अवसर मान रहे हैं, तो कुछ इसे प्रबंधन की नाकामी बता रहे हैं। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि विश्वविद्यालय इस चुनौती से कैसे उबरता है और अगले मूल्यांकन में अपनी खोई साख को वापस पाता है।

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