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Thursday, April 17, 2025

वाराणसी की दिल दहला देने वाली घटना: एक माँ और उसके दो मासूमों की ट्रेन से कटकर मौत

वाराणसी, 8 अप्रैल 2025, मंगलवार। वाराणसी के जंसा थाना क्षेत्र में मंगलवार को एक ऐसी घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया, जिसने न सिर्फ इंसानियत पर सवाल उठाए, बल्कि पारिवारिक कलह और लापरवाही की भयावह तस्वीर भी सामने ला दी। एक माँ, मीनू, अपने दो मासूम बेटों—विप्लव (5 साल) और विपिन (3 साल)—के साथ ट्रेन के आगे कूद गई। महाकाल एक्सप्रेस की चपेट में आने से तीनों के शरीर टुकड़ों में बिखर गए। ट्रेन का ड्राइवर हॉर्न बजाता रहा, आसपास के गांव वाले चीखते-चिल्लाते दौड़े, लेकिन मीनू ने अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी को खत्म करने का फैसला कर लिया था। यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि पारिवारिक विवाद, हिंसा और पुलिस की उदासीनता का दर्दनाक परिणाम थी।

विवाद की जड़: संपत्ति और हिंसा

हरसोस गांव की रहने वाली मीनू के पति विकास सिंह सूरत में नौकरी करते हैं। होली के मौके पर वह गांव लौटे थे। परिवार में संपत्ति के बंटवारे को लेकर चर्चा हुई और विकास ने अपनी माँ, भाई और भाभी से अलग रहने की बात कही। बंटवारा तो हो गया, लेकिन दोनों परिवारों के बीच तनाव और झगड़े खत्म नहीं हुए। सोमवार को मीनू का अपने जेठ और जेठानी से झगड़ा हुआ। नाराज मीनू अपने दोनों बेटों को लेकर मायके भदैया (हाथी बाजार) चली गई। मंगलवार को जब वह वापस ससुराल लौटी, तो जेठ-जेठानी ने उसे फिर से पीट दिया। अपमान और दर्द से आहत मीनू ने न्याय की उम्मीद में थाना जंसा का रुख किया।

पुलिस की उदासीनता और टूटती उम्मीद

थाने पहुंचकर मीनू ने अपनी आपबीती सुनाई। उसने जेठ-जेठानी की मारपीट की शिकायत की और कार्रवाई की गुहार लगाई। लेकिन पुलिस ने इसे महज “पारिवारिक विवाद” समझकर टाल दिया। शायद उस वक्त किसी ने नहीं सोचा कि यह उदासीनता एक माँ को इतना बड़ा कदम उठाने के लिए मजबूर कर देगी। थाने से लौटते वक्त मीनू का मन टूट चुका था। उसने अपने पति विकास को फोन किया और जान देने की चेतावनी दी। लेकिन विकास ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। शायद उसे लगा कि यह बस एक क्षणिक गुस्सा है।

आखिरी पल: मासूमों के साथ ट्रैक पर मौत

रोती-बिलखती मीनू अपने दोनों बच्चों को लेकर चौखंडी रेलवे स्टेशन के पास पहुंची। तभी उसकी नजर महाकाल एक्सप्रेस पर पड़ी। उसने दोनों बच्चों को हाथों में थामा और ट्रैक की ओर दौड़ पड़ी। ट्रेन का लोको पायलट हॉर्न बजाता रहा, इशारे करता रहा, लेकिन मीनू नहीं रुकी। देखते ही देखते ट्रेन की चपेट में आने से माँ और उसके दो मासूम बेटों की जिंदगी खत्म हो गई। घटनास्थल पर मौजूद लोगों की चीख-पुकार और अफरा-तफरी के बीच तीनों के शव क्षत-विक्षत हालत में ट्रैक पर बिखर गए।

पुलिस का एक्शन: अब क्या फायदा?

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस हरकत में आई। शवों को कब्जे में लेकर ट्रैक को साफ कराया गया। राजातालाब के ACP अजय कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि मृतका के भाई कमलेश की तहरीर पर मीनू की सास सुदामा देवी, ससुर लोदी, जेठानी रेशमा और पति विकास के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि जब मीनू ने मदद की गुहार लगाई थी, तब पुलिस ने उसकी बात क्यों नहीं सुनी? क्या एक संवेदनशील रवैया इस त्रासदी को रोक नहीं सकता था?

एक दर्दनाक सबक

यह घटना सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं, बल्कि समाज और व्यवस्था के लिए एक आईना है। पारिवारिक विवादों को हल्के में लेना, महिलाओं पर होने वाली हिंसा को नजरअंदाज करना और पुलिस की लापरवाही—ये वो कारण हैं, जिन्होंने मीनू को इस हद तक पहुंचा दिया। दो मासूम बच्चों की जिंदगी भी इस त्रासदी की भेंट चढ़ गई। यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कब तक ऐसी घटनाएं यूँ ही होती रहेंगी, और कब हम इनके पीछे की जड़ को समझकर कोई ठोस कदम उठाएंगे?

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