✍️ विकास यादव
वाराणसी, 5 अप्रैल 2025, शनिवार: एक माँ की बेटी का दर्द और सिस्टम से टूटा भरोसा आज उस 20 पन्नों के खत में साफ झलक रहा है, जो वाराणसी जिला जेल की पूर्व डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया की बेटी नेहा शाह ने राष्ट्रपति को लिखा। इस खत में नेहा ने न सिर्फ अपनी माँ के लिए न्याय की गुहार लगाई, बल्कि देश के सिस्टम पर ऐसा सवाल उठाया, जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने लिखा, “अब मुझे इस सिस्टम पर भरोसा नहीं रहा। इस देश में मेरी माँ को कोई न्याय नहीं दिला सकता।” और फिर एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए उसने इच्छा मृत्यु की मांग कर डाली।
माँ के लिए लड़ाई, सिस्टम से हार
नेहा का यह खत कोई साधारण शिकायत नहीं, बल्कि एक बेटी का अपने दिल का दर्द और सिस्टम के प्रति गहरी निराशा है। उसने अपने पत्र में वाराणसी जिला जेल के पूर्व जेल अधीक्षक उमेश सिंह पर गंभीर आरोप लगाए हैं। घटनाओं को सिलसिलेवार ढंग से बयान करते हुए उसने लिखा कि उसकी माँ मीना कन्नौजिया के साथ हुए अन्याय के पीछे उमेश सिंह का हाथ है। लेकिन उसका दुख यहीं खत्म नहीं होता। नेहा को पूरा यकीन है कि उमेश सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। उसने लिखा, “मुझे पता है कि सिस्टम उन्हें बचा लेगा, लेकिन मैं अब घुट-घुट कर नहीं जी सकती।”
हर कदम पर डर, हर सांस में खौफ
नेहा की चिट्ठी में उसकी जिंदगी का वो डर भी छिपा है, जो उसे हर पल सताता है। उसने लिखा, “जब भी मैं घर से बाहर निकलती हूँ, लगता है कोई मेरा पीछा कर रहा है। हर वक्त मौत का डर मेरे साथ चलता है।” एक युवती, जो अपनी माँ के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रही है, आज खुद को इतना असहाय महसूस कर रही है कि उसने जीने की इच्छा तक खो दी। यह सिर्फ नेहा की कहानी नहीं, बल्कि सिस्टम की उस नाकामी की तस्वीर है, जो एक बेटी को इच्छा मृत्यु की मांग तक ले आई।
कार्रवाई का वादा, पर सन्नाटा बरकरार
नेहा ने अपने खत में कारागार मुख्यालय पर भी सवाल उठाए। उसका आरोप है कि उसकी माँ के मामले में एक सप्ताह में जांच और रिपोर्ट का वादा किया गया था, लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी कोई कदम नहीं उठाया गया। उसने लिखा, “मुझे एक तरफा कार्रवाई का शिकार बनाया गया। मेरी मम्मी के लिए कोई इंसाफ नहीं है।” यह सवाल सिर्फ नेहा का नहीं, बल्कि हर उस शख्स का है, जो सिस्टम से उम्मीद लगाए बैठा है।
चर्चाओं का दौर, सवालों की गूंज
जैसे ही नेहा का यह खत सामने आया, वाराणसी से लेकर दिल्ली तक चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। लोग सवाल पूछ रहे हैं—आखिर एक बेटी को अपनी माँ के लिए इंसाफ मांगते हुए इच्छा मृत्यु की बात क्यों कहनी पड़ी? क्या सचमुच हमारा सिस्टम इतना कमजोर हो चुका है कि एक बेटी को अपनी जान देने की बात सोचनी पड़ रही है? उमेश सिंह पर लगे आरोपों की सच्चाई क्या है? और सबसे बड़ा सवाल—क्या मीना कन्नौजिया को इंसाफ मिलेगा?
एक खत, जो देश को झकझोर गया
नेहा शाह का यह खत सिर्फ एक पत्र नहीं, बल्कि एक चीख है—एक ऐसी चीख, जो सिस्टम की खामियों को उजागर करती है। यह कहानी उस बेटी की है, जो अपनी माँ के लिए लड़ते-लड़ते थक गई, लेकिन हार नहीं मानी। उसने राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु मांगकर शायद यह बताने की कोशिश की है कि जब इंसाफ की उम्मीद खत्म हो जाती है, तो जीने की वजह भी धुंधली पड़ने लगती है। अब सवाल यह है कि क्या यह खत सिस्टम को जगाने में कामयाब होगा, या फिर यह एक और अनसुनी कहानी बनकर रह जाएगी? जवाब का इंतजार नेहा को भी है, और देश को भी।