लखनऊ, 21 मार्च 2025, शुक्रवार। हरदोई के जिलाधिकारी कार्यालय में उस दिन एक अनोखा नजारा देखने को मिला, जब जनसुनवाई के दौरान 94 साल के बुजुर्ग शिवकरन द्विवेदी अपनी फरियाद लेकर पहुंचे। उनकी शिकायत सुनते ही डीएम मंगला प्रसाद सिंह ने न सिर्फ अपनी कुर्सी छोड़ी, बल्कि तुरंत उनके पास जाकर मामले की पूरी जानकारी ली। इस घटना ने न केवल वहां मौजूद लोगों को हैरान कर दिया, बल्कि प्रशासनिक गलियारों में भी हड़कंप मचा दिया।
दो बार ठुकराई गई फरियाद, तीसरी बार मिला इंसाफ
शिवकरन द्विवेदी ने बताया कि वह अपनी जमीन पर कब्जे से जुड़ी समस्या को लेकर पहले भी दो बार डीएम कार्यालय आ चुके थे, लेकिन उनकी शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं हुई। हर बार वह उम्मीद लेकर आए और निराश लौटे। इस बार भी वह हिम्मत जुटाकर पहुंचे थे, लेकिन शायद उन्हें भी नहीं पता था कि उनकी यह शिकायत प्रशासन में भूचाल ला देगी। डीएम ने जब उनकी बात सुनी, तो पता चला कि यह मामला लापरवाही का शिकार हो चुका था। बुजुर्ग की शिकायत पर तुरंत कार्रवाई करते हुए डीएम ने लापरवाह लेखपाल और कानूनगो को निलंबित कर दिया।
कुर्सी छोड़कर बुजुर्ग के पास पहुंचे डीएम
डीएम मंगला प्रसाद सिंह का यह कदम आम जनता के बीच चर्चा का विषय बन गया। जनसुनवाई के दौरान आमतौर पर अधिकारी अपनी कुर्सी पर बैठकर शिकायतें सुनते हैं, लेकिन इस बार डीएम ने औपचारिकता को दरकिनार कर खुद बुजुर्ग के पास जाकर उनकी बात सुनी। यह नजारा न सिर्फ संवेदनशीलता का प्रतीक बना, बल्कि यह संदेश भी दे गया कि प्रशासन आम लोगों की आवाज को गंभीरता से लेने के लिए तैयार है।
जमीन कब्जे का मामला और लापरवाही की सजा
शिवकरन द्विवेदी की शिकायत जमीन पर अवैध कब्जे से जुड़ी थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी शिकायत दर्ज होने के बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों ने कोई कदम नहीं उठाया। डीएम ने मामले की तह तक जाकर पाया कि लेखपाल और कानूनगो की लापरवाही के चलते बुजुर्ग को बार-बार चक्कर काटने पड़े। इसके बाद बिना देरी किए दोनों अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया, जिससे पूरे कार्यालय में खलबली मच गई।
एक फैसले ने बढ़ाया भरोसा
इस घटना ने न सिर्फ शिवकरन द्विवेदी को न्याय दिलाया, बल्कि आम लोगों के बीच प्रशासन पर भरोसा भी बढ़ाया। डीएम मंगला प्रसाद सिंह की इस त्वरित कार्रवाई की हर तरफ तारीफ हो रही है। यह घटना एक मिसाल बन गई है कि अगर शिकायत सही है और इरादा नेक है, तो उम्र और हालात कोई मायने नहीं रखते—न्याय की राह हर किसी के लिए खुली है। हरदोई के इस वाकये ने साबित कर दिया कि संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ लिया गया एक कदम न सिर्फ किसी की जिंदगी बदल सकता है, बल्कि पूरे सिस्टम को भी आईना दिखा सकता है।