दुर्गा भाभी के बाद नीरा आर्या के बारे में चंद शब्द लिख रही हूं। आशा करती हूं कि जब कभी भी आज़ादी के योगदान को लेकर समाज को सुध आएगी और महिला विमर्श पर जागरण होगा, तो आज़ादी की इन वीरांगनाओं को याद किया जाएगा और देश और समाज जरूर इन वीरांगनाओं को स्थान देगा। लोग ये समझेंगे तब की आजादी बिना खड्ग बिना ढाल से नहीं बल्कि बलिदान से आई है। आज आपसे एक ऐसी सच्ची राष्ट्रवादी महिला के बारे में रूबरू कराते हैं, जिसने अपने अंग कटवा दिए इस देश के लिए और आजाद भारत के कर्णधारों ने उसकी झोपड़ी तक तोड़ दी और सड़क किनारे एक लावारिश मौत मरने को मजबूर हुई। उस महिला का नाम नीरा आर्य है। जिनका जन्म 5 मार्च 1902 मेरठ में एक संपन्न परिवार मे हुआ था। नीरा आर्य की मृत्यु 26 जुलाई 1998 को हैदराबाद में हुई थी। इस विरांगना मां का स्तन तक अंग्रेज अधिकारियों द्वारा नेता जी की जानकारी न देने पर दंड स्वरूप काट दिए गए थे। यह दर्द देश के लिए प्यार की चरम स्थिति थी। जो नीरा आर्य ने सहन किए और उस वक़्त समाज के सामने एक मिसाल पेश किया था।
नीरा का विवाह ब्रिटिश पुलिस की गुप्तचर विभाग में कार्यरत श्रीकांत जोइरोंजोन दास के साथ हुआ था। नीरा के अंदर राष्ट्र भाव कूट-कूट के भरा था। पति के सरकारी नौकरी के बाद भी वे सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर उनके नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय सेना की महिला रेजिमेंट ‘रानी झांसी रेजिमेंट’ में शामिल हुईं और इंटेलिजेंस विभाग का कार्य देखा। वे पहली महिला जासूस थी। आपको आश्चर्य होगा नीरा आर्य ने अपने पति इंस्पेक्टर श्रीकांत जोइरोंजोन दास की हत्या कर दी। जो ब्रिटिश सरकार गुप्तचर विभाग द्वारा नेता सुभाष चंद्र बोस की जासूसी लिए नियुक्त किए गए थे। सुभाष चंद्र बोस की जासूसी करने के दौरान जोइरोंजोन दास को एक बार उनके ऊपर पर गोलियां भी चलानी पड़ी थी लेकिन सौभाग्य से सुभाष चंद बोस उस गोलीकांड में बाल-बाल बच गए।
जोइरोजोन ने सुभाष बाबू को पकड़ने की पूरी तैयारी कर ली थी। सुभाष चंद्र उस वक़्त भारत छोड़ने की फिराक में थे। लेकिन दास को उनको नेता जी के गुप्त अड्डे की जानकारी हो गई थी। इस बात की चर्चा उन्होंने नीरा से रात के खाने पर की थी। उन्होंने नीरा को ये भी बता दिया कि सुबह में सीक्रेट कोड “गुड वर्क” के साथ मिशन पूरा करना है और फिर सारा प्लान भी बता दिया। उनका प्लान सुनकर नीरा परेशान हो गई। यदि नेता जी मारे गए या पकड़े गए तो आजादी का सपना पूरा हों नही पाएगा उनको कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था किसी तरह नेता जी को बचाना था। अन्त में उन्होंने सुभाष चंद बोस को बचाने के लिए एक ऐसा निर्णय लिया जो हर स्त्री के लिए लेना असंभव है। नीरा ने अपनी मांग पोंछ कर देवी जी के आगे अपने सुहाग को देश पर निछावर करने की शक्ति मांगी और फिर नीरा आर्य ने सोते समय पति की चाकू मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद वे आजाद हिंद फौज के लिए सारी गृहस्थी, जेवर, धन छोड़कर घर खुला छोड़कर निकल गई। आज़ाद हिन्द फौज की एक सैनिक की तरह सीने में दर्द लिए नीरा ने अपना बसा बसाया परिवार देश के लिय उजाड़ दिया था, क्योंकि वो गुलाम देश की नागरिक कहलाना नहीं चाहती थी ।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की घोषणा की। आजाद भारत की पहली सरकार का निर्माण किया, जिसको विश्व के 10 देशों ने मान्यता भी प्रदान कर दी थी सुभाष बाबू आजाद भारत सरकार के पहले प्रधानमंत्री घोषित हुए थे। उनकी सरकार की अपनी मुद्रा बैंक थी और डाक टिकट था। उसके बाद आज़ाद हिंद फ़ौज ने अंडमान द्वीप समूह और मणिपुर के कुछ हिस्सों पर भी अपना नियंत्रण किया था। अब आज़ाद हिन्द फ़ौज रंगून पार करते हुए इम्फाल कोहिमा तक आ गई थी जहाँ कई मोर्चों पर जीत दर्ज़ कर चुकी थी।
एटम बॉम गिराए जाने के बाद जापान के 14 अगस्त 1945 में आत्मसमर्पण करने के बावजूद आज़ाद हिन्द ने हार नहीं मानी और युद्ध जारी रखा। उस समय आज़ाद हिन्द मित्र देशों (एलॉयड पॉवर्स) से लड़ने वाली आखरी शक्ति थी। सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के दावे के बाद ही उनकी सेना आज़ाद हिन्द फौज ने समर्पण कर दिया था। इसके बाद दिल्ली के लाल किले में नवंबर 1945 से मई 46 तक आजाद हिंद फौज के पकड़े गए अफसरों और सैनिकों पर मुकदमा चला। जिसके बाद सबको रिहा कर दिया गया सिर्फ़ नीरा आर्या को छोड़कर। ब्रिटिश सरकार को पूर्ण रुप से विश्वास था कि सुभाष चन्द्र बोस कहां है, इसकी जानकारी सिर्फ़ नीरा आर्या को है। ब्रिटिश हुकूमत ऐसा इसलिए सोचती थीं क्योकि आज़ाद हिन्द फ़ौज का इंटेलिजेंस विभाग का कार्य नीरा आर्या की देख रेख़ में संचालित होता था। उनको सेलूर जेल अंडमान ले जाया गया जहाँ उसे हर दिन एक लम्बी पूछताछ के दौरान प्रताड़ित किया जाता था। नीरा आर्या के साथ अमानवीय कृत्य किए गए। उनकी त्वचा का हिस्सा भी जगह-जगह से काट दिया गया। दिन में पैरों पर हथौड़े से 2-3 बार चोट दी जाती थी । नीरा आर्य को असहनीय यातनाओं और दर्द से गुजरना पड़ा लेकिन उन्होंने अपना मुँह नहीं खोला।
अन्त में प्रशासन ने बेबस और निढाल हो चुकी नीरा को शर्त के साथ रिहा करने की पेशकश की। शर्त ये थी कि अगर वह सुभाषचंद्र बोस के ठिकाने का खुलासा करती है तो ही उसको इस दर्द और जेल से रिहाई संभव हो सकती है। ब्रिटिश हुकूमत की इस शर्त पर नीरा आर्य का एक ही जवाब रहता कि सुभाष बाबू की मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हो चुकी है और वो कुछ नही जानती पर ब्रिटिश अधिकारियों को इस पर विश्वास नहीं हो रहा था। इस दौरान जेलर ने पूछताछ और प्रताड़ना के साथ उनसे यही पूछती रही कि तुम झूठ बोल रही हो और सुभाष चंद्र बोस अभी भी जीवित हैं, बता दो छोड़ दी जाओगी। कहां है बोस? तब नीरा आर्य का एक ही जवाब होता था, “हाँ, सुभाष बाबू ज़िंदा है , वो मेरे दिल में है” एक दिन इस जवाब से जेलर ने गुस्से में आकर कहा कि ठीक है ,फिर हम सुभाष चंद्र बोस को तुम्हारे दिल से ही निकाल देते हैं। जेलर ने उनके कपड़ों को फाड़ दिया और लोहार को उसकी छाती काटने का क्रूर आदेश दे दिया।
लोहार ने तुरंत ब्रेस्ट रिपर लिया और उसके दाहिने शरीर को कुचलने लगा। बर्बरता यहीं नहीं रुकी, जेलर ने उसकी गर्दन पकड़ ली और कहा कि मैं आपके दोनों ‘हिस्सों” को उनके स्थान से अलग कर दूँगा। इस बर्बरता से नीरा जीवन और मृत्यु से जुझ रही थी तीन दिन और अधिकारियों ने नीरा से पूछताछ के बहाने प्रताड़ना देती रही। अन्त में जेल से निकाल कर नीरा को रोड किनारे फेंक दिया परंतु नीरा की मौत नहीं हुईं। अब वो मौत के मुंह से निकल आई थी।
अब भारत आज़ाद हो चुका था लेकिन आपको जान कर आश्चर्य होगा कि जिसने इतने दर्द सहन किए। पूरी जवानी देश की आज़ादी के लिए बलिदान कर दी। उस नीरा आर्य ने आजाद भारत में अपने जीवन के अंतिम दिन फूल बेच कर बिताए और वह भी हैदराबाद यानी भाग्य नगरम में एक छोटी सी झोपड़ी जो सड़क किनारे बनाई गई थी। नीरा के दुख की दास्तान यहीं नहीं रुके, स्वतंत्र हुए देश की स्वतंत्र सरकार जो बिना खड्ग बिना ढाल से स्वतंत्र हुई थी। उसने उनकी झोपड़ी को सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करार दिया और अवैध निर्माण मानते हुए अतिक्रमण अभियान में गिरा दिया।
नीरा आर्या बेघर हो गई अपनी एक छोटी सी बकासिया के साथ जिसे वो सदा बंद रखती थी। जो उनकी मृत्यु के बाद खोली गई तो इसमें से उनकी निजी डायरी, कुछ ऐतिहासिक महत्व के पत्र, दुर्लभ फोटो एल्बम इत्यादि निकले, मगर उस वक़्त की सरकार के लिए उसकी कोई कीमत नहीं थी। नीरा आर्य की मृत्यु 26 जून 1998 में एक बेसहारा, लावारिस , अनजानी के रूप में हुई , जिसके लिए पूरी पृथ्वी पर कोई रोने वाला तक नहीं था। वृद्धावस्था में बीमारी की हालत में चारमीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में इन्होंने रविवार 26 जुलाई, 1998 में एक गरीब, असहाय, निराश्रित, बीमार वृद्धा के रूप में मौत का आलिंगन लिया था और आज़ादी का इतिहास उन्हें पहचानने से इंकार करती रही। अगर नीरा आर्या न होती तो आजाद हिंद फौज बनाने का सपना नेता जी का साकार न होता वो भारत से निकलने से पहले ही गिरफ्तार हो जाते या ब्रिटिश हुकूमत द्वारा मारे जाते।
भारत माता की विवादित पेंटिंग पर एमएफ हुसैन से उलझने वाले हिन्दी दैनिक स्वतंत्र वार्ता के पत्रकार तेजपाल सिंह धामा ने अपने साथियों संग मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया। नीरा का अस्थिकलश, निजी डायरी, कुछ ऐतिहासिक महत्व के पत्र, दुर्लभ फोटो एल्बम इत्यादि हैदराबाद में आज भी सुरक्षित है। आज सरकार ने उनकी याद में एक छोटा स्मारक तो बना दिया है। लेकिन आज़ाद हिन्द फ़ौज की पहली जासूस को आज भी अपने भव्य इतिहास के गौरवपूर्ण कार्यों को जनप्रिय बनने की प्रतीक्षा हैं।