लोक आस्था के सबसे बड़े पर्व लगातार 36 घंटे तक चलने वाला छठ व्रत संपन्न
भगवान सूर्य और छठी मैया को समर्पित छठ पर्व का चौथा और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य के रूप में मनाया जाता है । छठ पूजा के चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इसके बाद दूसरे दिन खरना होता है। तीसरा दिन संध्या अर्घ्य होता है और चौथे दिन को ऊषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ पूजा की जाती है। छठ का पर्व बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश की कुछ जगहों पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूजा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी ऊषा को समर्पित होती है ।
छठ पूजा का अंतिम और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उदित होते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद सूर्य भगवान और छठ मैया से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं। इस पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध जल और प्रसाद से व्रत का पारण करती हैं ।
पारंपरिक रीति रिवाज के साथ तीन दिनों तक व्रती महिलाओं ने छठ मइया का पूजन किया। चौथे दिन उन्होंने उगते सूर्य को आखिरी अर्घ्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि की मनोकामना की।
रंगरा में भी पारंपरिक रीति रिवाज के साथ तीन दिनों तक व्रती महिलाओं ने छठ मइया का पूजन किया। चौथे दिन उन्होंने उगते सूर्य को आखिरी अर्घ्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि की मनोकामना की। इसके बाद परंपरागत रीति रिवाज से अनुष्ठान कर प्रसाद ग्रहण करके व्रत परायण किया।