प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) धर्म को राजनीतिक ताकत बनाने की फिराक में था। इसके लिए उसने वोटरों को स्थानांतरित करने की योजना बनाई थी। इसके तहत कम आबादी वाले इलाके के मुस्लिम वोटर ज्यादा आबादी वाले इलाके की वोटर लिस्ट में जोड़ने का काम शुरू हो गया था।
यह नाम संगठन अपने सदस्यों के घरों के पतों पर जुड़वा रहा था। ताकि मनमानी वोटिंग कराकर चुनाव के परिणाम को प्रभावित किया जा सके। साथ ही कम आबादी वाले इलाके में लोगों के ब्रेनवॉश करने का भी खेल चल रहा था। पीएफआई का टारगेट था कि इसके जरिये ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर निगम में उनकी हनक बनी रहे। साथ ही हर जिलों में एक से दो विधानसभा क्षेत्र ऐसे हों, जहां वह निर्णायक स्थिति में हों।
छात्रा के बैग में मिलीं आपत्तिजनक चीजें: मम्मी को बुलाया गया स्कूल में, लड़की ने ले जाकर खड़ीं कर दी नकली मां
बरेली शहर के एक गर्ल्स इंटर कॉलेज में नौवीं की एक छात्रा ने बैग में आपत्तिजनक चीजें मिलने पर नकली मां को पेश कर दिया।
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, ताबड़तोड़ छापे में पकड़े गए दो सौ से अधिक सक्रिय सदस्यों से पूछताछ में यह चौंकाने वाला सच सामने आया है। पहली प्राथमिकता कम मुस्लिम आबादी वालों को घनी आबादी में स्थानांतरित करने की थी। इसके लिए भारत-नेपाल के सीमावर्ती जिले व प्रमुख शहरों के ग्रामीण इलाके निशाने पर थे।
सुरक्षा एजेंसियों की माने तो पीएफआई के निशाने पर पंचायत व नगर निगम का चुनाव था। शुरूआती दौर में इनमें पकड़ बनाना चाहते थे। इसके लिए प्रधान, जिला पंचायत सदस्य, बीडीसी सदस्य, नगर पंचायत, नगर पालिका व नगर निगम के पार्षद के चुनाव लड़ने के लिए सदस्य सक्रिय हो गए थे। इसके कई प्रमाण पिछले पंचायत चुनाव व विधानसभा चुनाव में भी सामने आए हैं।
पीएफआई के प्रदेश अध्यक्ष वसीम का करीबी और एसडीपीआई का सक्रिय सदस्य अहमद बेग नदवी ने बहराइच के कैसरगंज इलाके से विधानसभा का चुनाव लड़ा। बीकेटी के अचरामऊ का प्रधान अरशद खुद पीएफआई का सक्रिय सदस्य है।
दलित आंदोलन को भी बनाते थे हथियार
सुरक्षा एजेंसियों की जांच में सामने आया कि जिन इलाकों में मुस्लिम आबादी कम है, वहां पीएफआई के सक्रिय सदस्य दलितों व आदिवासियों को निशाना बनाते थे। उनके लिए सरकार के खिलाफ आंदोलन करते थे। इसके बाद पैसों का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराते थे।
कई नामी कारोबारी करते हैं फंडिंग
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, पीएफआई को देश व विदेश से फंडिंग होती है। इसके लिए सक्रिय सदस्य स्थानीय स्तर से लेकर विदेशों में बैठे मुस्लिम कारोबारियों से संपर्क करते थे। इसमें बिल्डर, व्यापारी व बड़ी कंपनियों के मालिक भी हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, ऐसे कई बिल्डरों के नाम सामने आए हैं। इनकी कुंडली खंगाली जा रही है। लखनऊ में ही 50 से अधिक छोटे-बड़े मुस्लिम बिल्डर हैं। इनके बारे में एटीएस, एसटीएफ व अन्य सुरक्षा एजेंसियां जानकारी जुटा रही हैं।