बिहार में सियासी उलट पलट के बाद जदयू ने राज्यसभा में उपसभापति पद के मामले में भाजपा को उलझा दिया है। पार्टी ने वर्तमान उपसभापित हरिवंश के अपने पद से इस्तीफा नहीं देने की घोषणा की है। ऐसे में भाजपा के सामने हरिवंश को पद से हटाने की मजबूरी खड़ी हो गई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अगर जरूरत पड़ी तो विपक्ष को मात देने के लिए यह पद बीजू जनता दल (बीजद) को दिया जा सकता है।
बतौर उपसभापति हरिवंश अपनी कार्यशैली को लेकर लगातार विपक्ष के निशाने पर रहे हैं। खासतौर से कृषि क्षेत्र से जुड़े तीन विवादास्पद बिल पारित करने के मामले में हरिवंश समूचे विपक्ष के निशाने पर रहे। हालांकि, बदली परिस्थितियों में इस मामले में विपक्ष सरकार से दो-दो हाथ करने के लिए एकजुट हो सकता है। चूंकि संसद का शीतकालीन सत्र नवंबर-दिसंबर में होना है। ऐसे में लंबा वक्त होने के कारण दोनों पक्ष हड़बड़ी में नहीं हैं।
उच्च सदन में बहुमत की कमी : दरअसल, सदन चलाने के लिए उपसभापति का पद बेहद अहम होता है। पहले भाजपा को लगा था कि जदयू के राजग छोड़ने के बाद हरिवंश अपने पद से खुद ही इस्तीफा दे देंगे। हालांकि, जदयू ने हरिवंश को पद से इस्तीफा नहीं देने के लिए कहा है। ऐसे में भाजपा के पास अनुच्छेद 90 सी के तहत हरिवंश को उपसभापति पद से हटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। इसके लिए पार्टी को बहुमत की जरूरत है, मगर पार्टी के पास उच्च सदन में सहयोगियों को मिलाकर भी बहुमत हासिल नहीं है।
राज्यसभा का संख्या बल
वर्तमान समय की बात करें तो उच्च सदन में 237 सदस्य हैं। जो आठ पद खाली हैं उनमें चार जम्मू कश्मीर और एक त्रिपुरा की सीट है, जबकि तीन सदस्यों का मनोनयन बाकी है। शीतकालीन सत्र तक तीन सदस्यों के मनोनयन और त्रिपुरा की सीट भरी जा चुकी होगी।
ऐसे में उच्च सदन के सदस्यों की संख्या 241 और बहुमत का आंकड़ा 122 होगा। इनमें भाजपा के पास मनोनीत सदस्यों और सहयोगियों के साथ पक्ष वाले सांसदों की संख्या 116 होगी। यह बहुमत से छह कम होगा। दूसरी ओर विपक्ष के पास 107 सांसदों का संख्या बल होगा। ऐसे में जीत की चाबी बीजद और वाईएसआर कांग्रेस के पास होगी। इन दोनों दलों ने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति चुनाव के साथ कई अहम बिल पारित कराने में राजग का साथ दिया है।
2008 में लोकसभा में आई थी ऐसी ही नौबत
अब तक हरिवंश की ओर से कोई टिप्पणी सामने नहीं आई है। उनके करीबियों का कहना है, वह सांविधानिक पद पर हैं। उपसभापति पद पर होने के कारण उन्हें किसी दल विशेष से जोड़ा नहीं जा सकता, इसलिए उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की है। हालांकि, उनकी निष्ठा जदयू के साथ है। गौरतलब है कि साल 2008 में यही स्थिति लोकसभा में उत्पन्न हुई थी। माकपा ने यूपीए-1 सरकार के समर्थन वापस लेने के बाद सोमनाथ चटर्जी को स्पीकर पद छोड़ने का निर्देश दिया था। हालांकि चटर्जी ने इस निर्देश को यह कह कर मानने से इन्कार कर दिया था कि बतौर स्पीकर वह इस समय किसी पार्टी के सदस्य नहीं है। इसके बाद माकपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
बीजद पर दांव लगा सकती है भाजपा
अगर भाजपा हरिवंश को हटाने का फैसला करती है तो उसके सामने वाईएसआर कांग्रेस और बीजद में से एक का समर्थन हासिल करना अनिवार्य होगा। पार्टी सूत्रों का कहना है अगर इसकी जरूरत पड़ी तो पार्टी बीजद को उपसभापति का पद देकर विपक्ष की रणनीति को धराशाई करेगी। हालांकि पार्टी के पास वाईएसआर कांग्रेस का भी विकल्प है।
जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक 3 सितंबर से पटना में, तय होंगे कई मुद्दे
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक तीन सितंबर से पटना में आयोजित होगी। यह बैठक ऐसे समय आयोजित हो रही है, जब विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर नीतीश कुमार को पेश किए जाने की चर्चा है। जदयू के महासचिव अफाक अहमद खान ने कहा कि बैठक में सांगठनिक मुद्दों सहित सदस्यता अभियान पर चर्चा होगी। यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हाल ही में कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़कर राजद-कांग्रेस के साथ फिर से प्रदेश में सरकार बना ली।
विपक्ष के सुस्त पड़े कुनबे में नीतीश के शामिल होने से एक बार फिर जान आ गई है। इस बैठक में नीतीश सदस्यों को संबोधित भी कर सकते हैं। हाल ही में पार्टी के अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा था कि यदि विपक्ष के अन्य दल नीतीश के पीएम पद की उम्मीदवारी पर विचार करेंगे तो पार्टी इसके लिए तैयार है। वहीं, राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, नीतीश विपक्ष की ओर से एक मजबूत उम्मीदवार हो सकते हैं।