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Tuesday, July 8, 2025

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का चुनावी संग्राम , नेताओं की जुबान बेलगाम

किसान आंदोलन का असर, बंट गयी जाट खापें ।
कैराना सीट पर में धर्म और जाति में बंटे मतदाता ?

अखिलेश कुमार मायावती का नाम नहीं भाजपा और आरएलडी के जयंत चौधरी की चर्चा आम ।

मुजफ्फरनगर कैराना से ग्राऊंड रिपोर्ट News Adda India पर

उत्तर प्रदेश विधानसभा सभा के पहले चरण के चुनाव के लिए प्रचार थम चुका है । पहले चरण की वोटिंग के लिए पूरे चुनावी प्रचार के दौरान इस बार सबसे ज्यादा खबरों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना संसदीय क्षेत्र की दो सीटें कैराना और थानाभवन रहीं ।

भाजपा और समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन ने यहां न केवल चुनाव जीतने के लिए पूरा जोर लगाया बल्कि बड़े नेताओं के बीच बेलगाम तीखी जुबानी जंग भी आम रहीं । एक से एक तीखे बयान, एक तरफ़ योगी आदित्यनाथ कहते हैं दो लड़कों की जोड़ी फिर दंगे करवाने इस क्षेत्र में आयी है ।

कैराना और मुजफ्फरनगर से गुंडों और माफ़ियों का ख़ात्मा है । जिनको गर्मी चढ़ी है उनकी सारी गर्मी मैं उतार दूंगा मई जून में शिमला बना दूंगा तो जयंत चौधरी कहते हैं चर्बी उतार दूंगा खाल में भूसा भरवा दूंगा । केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कैराना से ही यूपी चुनाव की शुरूआत की अमित शाह गौतमबुद्ध नगर से लेकर सहारनपुर तक धुंआधार प्रचार में जुटे रहे और प्रचार में वोट की अपील के साथ साथ ज़ुबानी जंग जारी रही ।
लेकिन सवाल ये उठता है कि देश की गन्ना पट्टी और जाट लैंड कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर और कैराना आखिर क्यों बना हुआ है इतना महत्वपूर्ण क्यों है भाजपा और सपा रालोद गठबंधन के लिए नाक का सवाल ये जानने के लिए न्यूज़ अड्डा इंडिया की टीम ने बागपत ,बड़ौत, कांधला , कैराना, शामली, थाना भवन में मतदाताओं नेताओं, किसानों महिलाओं , युवाओं और उद्योगपतियों व्यापारियों का मन टटोला । प्रस्तुत है मुज़फ़्फ़रनगर कैरना से ज़मीनी सच्चाई बताती News Adda India की एक रिपोर्ट

कैराना :  देश की राजधानी दिल्ली के उत्तर पूर्व की तरफ से जब आप उत्तर प्रदेश की तरफ बढ़ते हैं तो बागपत जिले में प्रवेश कर जाते हैं । ये वो इलाका है जिसे गन्ना बैल्ट कहा जाता है । सर्दियों के मौसम में आपको सड़क के दोनों तरफ गन्ने की फसल लहलहाती मिलेगी । आजकल भी गन्ना पूरी तरह पका हुआ खेतों में खड़ा है कहीं कोल्हू में गन्ने की पिराई हो रही है सरसों पर पीले फूल और गेंहूं की फसल लगभग दो फुट ऊंचाई पकड़ चुकी है । लेकिन चुनावी मौसम में न यहां गन्ने जैसी मिठास है और न ही सरसों के पीले फूलों की महक है । यहां चुनावी गर्मी है सड़क बाज़ार चौपाल सब जगह चुनावी चर्चा है । ये इलाका जय जवान जय किसान का पूरा पूरा प्रतिनिधित्व करता है ।

खेत में हल और देश की रक्षा के लिए हथियार थामने का अनुभव यहां के ज्यादातर लोगों को है । मार्शल कौम के रूप में जानी जाने वाले जाट समुदाय के लोग यहां से भारतीय सेना की जाट रेजिमेंट की शान बनते आए हैं । ये इलाका देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री और अति लोकप्रिय रहे किसान नेता चौधरी चरण सिंह का है । यहां उनका गांव है छपरौली और यहीं से वे चुनाव लड़ते रहे हैं लगभग एक साल चले किसान आंदोलन के कारण गन्ना बैल्ट फिर से चर्चा में रहा । बड़े किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का गांव सिसौली भी यहीं है ।अब उनके बेटे राकेश टिकैत और नरेश टिकैत किसानों की राजनीति कर रहे हैं ।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण में चुनाव दस फरवरी को है और इस बार यहां सारा चुनाव सिमट कर किसान आंदोलन और 2013 के दंगों के आस पास घूम रहा है सपा रालोद गठबंधन केंद्र की भाजपा सरकार को किसान विरोधी बता कर किसान मतदाता जहाँ क़ाबिज़ होना चाहती है वहीं भाजपा की केंद्र और उत्तरप्रदेश की सरकार कृषि और किसानों पर लाए अपनी नीतियों को गिनाते हुए किसानों के दिल जितने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहीं । किसान नेता चौघरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी को वोट दें ।

पूरे प्रचार के दौरान सड़कों के किनारे कंबल, लोई लपेटे उम्रदराज जाट किसानों की टोलियां जयंत चौधरी के लिए वोट माँगते और भाजपा का विरोध करते नज़र आए । इस क्षेत्र में गोत्रों के अनुसार किसानों की बड़ी बड़ी खापें हैं ।मलिक जाटों की सबसे बड़ी 84 गांवों की देशखाप है । देशखाप से जुड़े जाट समवेत स्वर में कहते हैं भाजपा को वोट नहीं देंगें जयंत चौधरी को अपना समर्थन देंगे । खाप का आम सदस्य कुछ भी कहे लेकिन देश खाप के प्रधान चौधरी सुरेंद्र सिंह कहते हैं बात केवल जाटों की नहीं है बात किसानों की है किसानों में सभी जातियां सभी धर्म के लोग हैं । यानि सबसे बड़ी खाप के प्रधान ही नकार रहे हैं किसान को केवल जाट के रूप में न देखा जाए । किसान परेशान है आवारा पशुओं से जो उनकी फसलों को भारी नुकसान पहूँचा रहे हैं । डीज़ल पैट्रोल के बढ़ते दाम , दो साल से रूकी हुई गन्ने की पेमेंट , न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून न बनना ये सभी किसानों के गंभीर मुद्दे हैं ।

ये कहना गलत है कि केवल जाट गठबंधन का साथ दे रहा है बल्कि सबी किसान गठबंधन के साथ है । किसानों को जात में बांट कर न देखा जाए ।
ज्यादातर खाप पुराने समय से ही राष्ट्रीय लोकदल से जुड़ी हैं लेकिन 2013 के दंगों के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मतदाता ने जाट ,गुजर ,ब्राह्मण, बनिए के रूप मे नहीं सोचा बल्कि हिंदु के रूप में वोट दिया इसीलिए भाजपा 2014 , 2017 , 2019 में यहां से भारी बहुमत से जीती । किसान आंदोलन के बाद उसी तरह का मतदान पैटर्न रहेगा ये कहना मुश्किल है ।

जाट खापों में एकजुटता नहीं है ये भी भाजपा और गठबंधन मे बंटे हुए हैं । देश खाप में साढे सात गांव की तोमर खाप के प्रधान श्री भगवान तोमर कहते हैं सारे जाट या सारे किसान भाजपा से नाराज़ हैं ये कहना गलत है । लेकिन साथ ही वो मानते हैं कि इस बार जाट 60 और 40 में बंटेंगा । चालीस फीसदी भाजपा को और साठ फीसदी गठबंधन को वोट देगा । श्री भगवान तोमर भारतीय सेना की जाट रजिमेंट से रिटायर फौजी हैं ।

उनका दावा है कि किसान आंदोलन का चुनाव पर असर न के बराबर होगा । सपा लोकदल गठबंधन के साथ खुल कर कर खड़े जाटों का दावा है जाट वोट 30 फीसदी भाजपा को और 70 फीसदी जयंत चौधरी को मिलेगा । यहां ये जानना दिलचस्प है कि पश्चिमी यूपी का मतदाता न तो अखिलेश यादव का नाम ले रहा है न ही मायावती और कांग्रेस का यहां कोई वजूद दिख रहा है । लोग भाजपा और जयंत चौधरी में मुकाबला मान रहे हैं ।

मज़े की बात ये है कि राकेश टिकैत के भाई नरेश टिकैत बालियान जाटों की 84 गांवों की खाप के प्रधान हैं । और मुजफ्फरनगर के लोकसभा सांसद और केंद्र में राज्यमंत्री संजीव बालियान भी इसी खाप के सदस्य हैं । टिकैत की भरातीय किसान युनियन और किसान संयुक्त मोर्चा ने भाजपा को सबक सिखाओ अभियान शुरू किया हुआ है । सिसौली गांव में जयंत चौधरी जब नरेश टिकैत से आशीर्वाद लेने पहूंचे तो इसके सियासी मायने बहुत निकाले गए ।

लेकिन बालियान खाप भी खुल कर सामने नहीं आ रही है । खाप प्रधानों का कहना है खाप का काम सामाजिक मसलों को सुलझाना है किसी राजनीतिक दल के हक में या विरोध में फैसला सुनाना नहीं है । यानी जाट खापें भी सावधानी बरत रही है इस क्षेत्र में भले ही बीजेपी की लहर नहीं दिख रही लेकिन भाजपा विरोधी स्वर भी ज़ोरों पे नहीं सुनाई दे रहे हैं ।

भारतीय किसान युनियन के लगभग 16 साल राष्ट्रीय महासचिव रहे मांगे राम बालियान कहते हैं सात साल से और सात से पहले किसी भी सरकार ने किसानों के मसलों के प्रति गभीरता से नहीं सोचा किसान के उत्त्थान की बात कोई नहीं करता सब उसका इस्तेमाल करते हैं । उसकी आमदनी नहीं बढ़ती उस पर कर्ज का बोझ बढ़ता है । मांगे राम बालियान किसान आंदोलन के लिए सरकार और किसान संगठनों दोनों को हठधर्मिता का दोषी मानते हैं ।

यहां तक कि अपनी बालियान खाप के राकेश टिकैट और नरेश टिकैट की फालतू की बयानबाजी को वे सही नहीं मानते । उनका कहना है दिल्ली के एसी कमरों में बैठ कर किसानों के लिए नीतियां नहीं बना सकते । जब एक अफसर ये नहीं बता सकता कि एक बीघे में कितने बीज बोए जाते हैं वो किसानों की नीतियां क्या बनाएगा । किसान तीन डिग्री तापमान में गेहूं बोता है 45 डिग्री में काटता है । हमारी नीतियां हम से पूछ कर बननी चाहिएं।

केंद्रीय मंत्री संजीव बालियन भले ही उनकी खाप के हैं लेकिन उनका कहना है किसान आंदोलन में संजीव बालियान की भूमिका जीरो रही वे ठीक से बात करवाते तो मामला लंबा न खीचता और न ही किसानों की फजीहत होती न सरकार की । मांगे राम बालियान मीडिया विशेष रूप से न्यूज़ चैनलों पर ज़मीनी सच्चाई न दिखाने का आरोप लगाते हैं ।

बागपत, बडौत, कांधला , रमाला , शामली ,कैराना ,थाना भवन , ऊन इन सब गांवों और शहरों के लोगों से मिल कर नहीं लगा कि सभी किसान और सभी जाट भाजपा से नाराज़ हैं । जाटों में रिटायर फौजियों की संख्या भी बहुत है ।

ऐसा लगता है अपनी अपनी खापों के कारण भले ही वे बाहरी रूप से कुछ भी नहीं कह रहे हों लेकिन मतदान के दिन जाट को कमल से कोई गुरेज़ भी नहीं होगा । क़ुछ शिकायतें हैं, कुछ निराशा भी मगर इन सब के बीच मोदी और योगी पर विश्वास और आशा बरकरार है ।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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