आजादी के बाद दिल्ली के सिंहासन पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया था। इतिहास के पन्नों की सजावट अब उनके हाथ में थी । पॉवर का ज़बरदस्त इस्तेमाल हुआ और इसलिए आजादी की सच्ची कहानी आज तक देश के सामने ठीक से आ ही नहीं पाई ।
कांग्रेस के इतिहासकारों ने आजादी की जो थ्योरी डिज़ाइन की उसमें सिर्फ़ इस पर जोड़ दिया गया कि 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन की वजह से ही भारत को आज़ादी मिली ।
लेकिन सवाल ये है कि अगर भारत छोड़ो आंदोलन की वजह से अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो आजादी 1942 में ही मिल जानी चाहिये थी लेकिन भारत को आजादी मिली अगस्त 1947 में जाकर ।
सच्चाई ये है कि गांधी के आखिरी अहिंसक आंदोलन की अंग्रेजों ने बैंड बजा दी थी । एक हजार से ज्यादा लोगों को अंग्रेजों ने मार दिया और हर कांग्रेसी नेता को अंग्रेजों ने जेल के अंदर डाल दिया ।
मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी किताब इंडिया विन्स फ्रीडम में बिलकुल साफ लिखा है कि खुद मौलाना आजाद और नेहरू भी भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन गांधी जी की ज़िद के चलते उन दोनों को आंदोलन में शामिल होना पड़ा ।
मौलाना आजाद ने साफ साफ ये लिखा कि बाद में गांधी को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने की गलती का अहसास हुआ और उन्होंने जेल के अंदर इसी वजह से 20 दिन का उपवास रखा।
आश्चर्यजनक बात ये है कि गांधी के उपवास से भी उस वक्त ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल का दिल नहीं पसीजा । उल्टा चर्चिल ने वायसराय को आदेश दिया कि गांधी के अंतिम संस्कार का इंतजाम कर दो । तब अंग्रेजों ने गांधी जी के लिए चंदन की लकड़ियाँ भी मँगवा ली थी । और ये सब संघ या किसी और इतिहासकार ने नहीं बल्कि खुद मौलाना आजाद ने अपनी किताब में लिखा है जो उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे ।
गांधी फेल हो चुके थे और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वजह से ब्रिटिश इंडियन आर्मी में मौजूद 25 लाख से ज्यादा जवानों के मन में ब्रिटिश क्राउन के प्रति आक्रोश आसमान छू रही थी । इसकी वजह ये थी कि आजाद हिंद फौज ने बेहद कम संसाधन होने के बाद भी 45 हजार अंग्रेज सिपाहियों को जान से मार दिया था ।
1946 में जब कराची नौसेना के 20 हजार जवानों का विद्रोह हो गया तब अंग्रेजों को 1857 में कानपुर का वो चर्च याद आने लगा जहां पेशवा नाना साहेब और उनके सिपाहियों ने अंग्रेजों की बोटी-बोटी काट दी थी। 1857 के दौरान हुआ रक्तपात कहीं दोबारा 1947 में ना हो जाए और इस बार तो सामना 25 लाख की आर्मी से होने जा रहा था जो खुद अंग्रेजों के द्वारा ही ट्रेन्ड की गई थी । इसी भय के मारे अंग्रेज भारत को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे ।
लेकिन नेहरू की अति महत्वकांक्षा भारत के वीरता से भरे सुनहरे इतिहास पर भारी पड़ी । बोस धीरे-धीरे इतिहास के पन्नों से ग़ायब होने लगे और देश को आजाद करवाने का क्रेडिट पूरी तरह से महात्मा गांधी को मिला । नेहरू इस देश के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी हो गए ।
लेकिन देखा जाए तो नेताजी के ख़िलाफ़ इतना प्रोपागेंडा चलाने के बाद भी कांग्रेस बोस को लोगों के दिलों से नहीं मिटा सकी।
आज़ादी की अलख जगाए नेता जी सुभाष चंद्र बोस आज भी हर दिल में ज़िंदा हैं ।
वर्ष 1945 से वर्ष 1951 के बीच क्लीमेंट एटली ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे । इसी दौरान भारत को आज़ादी दी गई थी। आज़ादी के बाद क्लीमेंट एटली ने भारत का दौरा किया था । क्लीमेंट एटली ने उस वक्त पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से खुद कहा था कि आजादी की लड़ाई में गांधी का प्रभाव काफ़ी कम से कम था । उसने कहा था कि भारत की आज़ादी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण थी ।इस घटना का जिक्र उस वक्त पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे पीबी चक्रवर्ती ने इतिहासकार RC मजूमदार को लिखे एक पत्र में किया था |