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Friday, November 22, 2024

उत्तर प्रदेश चुनाव, क्या खत्म हो गई शिवपाल की प्रसपा कभी 100 सीटें मांगने वाले चाचा अकेले लड़ेंगे चुनाव

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी चुनावी गठबंधन के लिए 100 सीटों पर ताल ठोक कर चुनावी समझौते के तहत सीटें मांग रही थी। लेकिन जब शिवपाल और अखिलेश यादव के बीच समझौता हुआ तो हालात बिल्कुल बदले हुए दिखे। सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाली प्रसपा को अब तक सिर्फ एक सीट ही चुनाव लड़ने के लिए मिली है। वह भी खुद शिवपाल यादव की और चुनाव चिन्ह भी सपा का यानी साइकिल है। अब तक प्रसपा के शिवपाल यादव को छोड़कर किसी भी उम्मीदवार को टिकट न मिलने से राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि क्या हकीकत में शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी खत्म हो गई है या उसका समाजवादी पार्टी में पूरी तरह से विलय हो गया है।

साइकिल’ पर चुनाव लड़ेंगे शिवपाल

समाजवादी पार्टी के साथ जब प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठबंधन हुआ उसी दौरान राजनीतिक विशेषज्ञ यह अनुमान लगाने लगे थे शिवपाल यादव की प्रसपा का अब फिलहाल कोई राजनीतिक भविष्य नज़र नहीं आ रहा है। उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि जिस तरीके के हालात अभी नजर आ रहे हैं उससे तो बिल्कुल स्पष्ट है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का फिलहाल कोई अस्तित्व अब नहीं बचा है। अब तक सिर्फ शिवपाल यादव को ही टिकट मिला है और वह भी साइकिल के चुनाव निशान पर मैदान में है। इसके अलावा उनका कहना है कि शिवपाल यादव ने कुछ दिन पहले यह कहा भी था कि उन्होंने अपनी ओर से प्रसपा के उम्मीदवारों की सूची अखिलेश यादव को दे दी है। शिवपाल यादव का कहना था जो जिताऊ उम्मीदवार होगा, उसे टिकट मिलेगा और अन्य लोगों को सरकार बनने पर यथोचित सम्मान भी मिलेगा।

वह कहते हैं राजनीति में इस बयानों के बहुत मायने होते हैं। उनका कहना है कि शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के आपस में समझौते को अगर आप बारीकी से समझे तो पाएंगे कि जिस तरीके से शिवपाल यादव के सिवाय अब तक किसी भी उनके बड़े नेता को टिकट नहीं दिया गया है उससे स्पष्ट होता है कि समझौता सिर्फ शिवपाल यादव ने ही किया है।

प्रसपा के नेताओं को नहीं दिया टिकट

उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर अगर नजर डालें तो पाएंगे शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ने पिछले साल से ही जबरदस्त तैयारियां शुरू कर दी थीं। उत्तर प्रदेश में राजनीति को करीब से समझने वाले डॉ शांतनु मौर्य कहते हैं कि शिवपाल यादव ने तो अपने राजनीतिक गठबंधन से पहले ही कई सीटों पर प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने की न सिर्फ हामी भरी थी बल्कि उनका टिकट तक फाइनल कर दिया था। लेकिन जब समझौता समाजवादी पार्टी से हुआ तो शिवपाल यादव की पार्टी से टिकट की चाह रखने वाले ऐसे कई बड़े-बड़े नेताओं का अब फिलहाल कोई राजनीतिक भविष्य नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि समाजवादी पार्टी शिवपाल यादव की पार्टी में पद और कद रखने वाले नेताओं को फिलहाल टिकट देने के मूड में नजर नहीं आ रही है।

मौर्य उदाहरण देकर कहते हैं कि इटावा की भरथना सीट पर शिवपाल यादव ने सुशांत वर्मा को उम्मीदवार घोषित किया था। चूंकि अब शिवपाल का समाजवादी पार्टी से गठबंधन है और समाजवादी पार्टी ने इसी भरथना सीट से राघवेंद्र गौतम को टिकट दे दिया है। यानी जिस सीट के लिए शिवपाल यादव ने अपना प्रत्याशी घोषित किया, समाजवादी पार्टी ने उसको दरकिनार करके वहां अपना प्रत्याशी तय कर दिया। इसी तरीके से पूर्व राज्यसभा सांसद वीरपाल यादव को शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी से हुए गठबंधन से पहले बिथरी चैनपुर से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी घोषित किया, लेकिन अखिलेश यादव ने इस चुनाव में अगम मौर्य को उम्मीदवार बना दिया। शांतनु कहते हैं कि यह तो महज उदाहरण है। शिवपाल यादव की पार्टी से ताल्लुक रखने वाले पूर्व मंत्री शारदा प्रताप शुक्ला, अरुणा कोरी, शादाब फातिमा समेत कई बड़े-बड़े नेताओं को अब अपने राजनीतिक भविष्य की निश्चित तौर पर चिंता सता रही होगी। क्योंकि अखिलेश यादव ने अभी तक शिवपाल यादव की पार्टी से ताल्लुक रखने वाले बड़े नेताओं को टिकट देने के लिए अभी पत्ते नहीं खोले हैं।

चाचा-भतीजा एक झंडे के नीचे

राजनीतिक विश्लेषक ओपी आर्या कहते हैं कि शिवपाल यादव और अखिलेश यादव की पार्टी के बीच हुए समझौते को सिर्फ राजनीतिक समझौता नहीं माना जाना चाहिए। क्योंकि यह परिवार से अलग हुआ एक बड़ा धड़ा था जो समझौते के साथ समाजवादी पार्टी में विलय जैसी ऐसी स्थिति में पहुंच गया। वह कहते हैं कि मान लीजिए शिवपाल यादव के कहने पर कुछ जिताऊ कैंडिडेट के नाम समाजवादी पार्टी कुछ लोगों को टिकट दे देती है, तो वह चुनाव समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर ही लड़ेंगे। ऐसे में अगर उनमें से कोई प्रत्याशी जीतता भी है तो वह समाजवादी पार्टी का ही प्रत्याशी माना जाएगा। वे कहते हैं जिस तरह से शिवपाल यादव अब समाजवादी पार्टी को लेकर के एक नरम रवैया अपना रहे हैं उससे दूरगामी संदेश भी मिल रहा है। पूरा संदेश यही है कि आज नहीं तो कल संभव है कि चाचा और भतीजा मिलकर आधिकारिक तौर पर एक ही झंडे के नीचे न सिर्फ आगे के चुनाव लड़ें, बल्कि आगे की सपा की राजनीतिक नीतियां भी बनाएं।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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