जब पंजाब से किसान धरना, प्रदर्शन, आंदोलन के लिए दिल्ली की ओर चले थे, तो केंद्र और भाजपा शासित राज्य सरकारों ने उन्हें लौटाने और रोकने के लिए हर हथकंडा अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अब केंद्र सरकार जल्दी से जल्दी किसानों का आंदोलन खत्म कराकर उन्हें खेत खलिहान में भेजने के लिए हर कोशिश में लगी है। प्रधानमंत्री ने 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद से आंदोलन खत्म करने का ऑपरेशन अपने हाथ में ले लिया है। 30 नवंबर को सुबह से शाम तक प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय इस कवायद में जुटे रहे।
सरकार को सफलता मिल रही है और सूत्रधारों को उम्मीद है कि चार दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद सकारात्मक संकेत मिलने शुरू हो जाएंगे।
इस अभियान में अकाल तख्त के जत्थेदार और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की भूमिका काफी अहम है। हरमीत सिंह कादियान जैसे किसान नेता की नजरें भी आगामी बैठक पर टिक गई हैं। गुरुनाम सिंह चढ़ूनी, योगेंद्र यादव, डा. दर्शन पाल सभी किसान नेता चार दिसंबर की बैठक के लिए पूरी तैयारी करने में जुट गए हैं।
29 नवंबर को प्रधानमंत्री ने मंत्रियों और फिर केंद्र सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक की थी। पहली बैठक विपक्ष को संदेश देने के लिए थी, जिसमें केंद्र सरकार ने राज्यसभा से पूरे सत्रभर के लिए निलंबित सदस्यों के बारे में सख्त निर्णय लिया था। ताकि जनता के बीच ये संदेश भेजा जा सके कि केंद्र सरकार कामकाज के पक्ष में रहती है। इसके रास्ते में विपक्ष के इस तरह से बाधा खड़ा करना स्वीकार नहीं किया जा सकता।
प्रधानमंत्री की बैठक में दूसरा बड़ा प्रयास किसानों के आंदोलन को लेकर था। केंद्र सरकार अब किसानों के मुद्दे पर एक बार फिर पूरे देश में संवेदनशील दिखाई देना चाहती है। ताकि किसानों के कानून वापसी को अपने फायदे में भुनाया जा सके। इसी को ध्यान में रखकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमें वापस लेने का पत्र भेज दिया। जबकि पिछले सप्ताह सरकार ने मुकदमे वापस लेने को राज्यों का विषय बताया था। दूसरा बड़ा निर्णय किसानों से बातचीत को लेकर हुआ। हालांकि इसका संकेत सरकार ने पिछले सप्ताह ही दे दिया था। केंद्र सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उनकी मांग का निदान करने के लिए समिति बनाने और इसके लिए पांच किसान नेताओं का नाम मांगा है। ये पांच नाम तय कर पाना किसान मोर्चा के लिए भी बहुत आसान नहीं होगा। फिलहाल संयुक्त किसान मोर्चा ने बैठक में इस पर विचार करने का निर्णय लिया है।
केंद्र सरकार ने पराली जलाने को अपराध मानने के फैसले से यू-टर्न ले लिया है। बिजली बिल को लेकर किसानों की चिंताओं के बाबत भी उच्च स्तर पर विचार चल रहा है। सबसे बड़ी मांग केवल एक है और इस पर अभी कोई निर्णय नहीं हो पाया है। यह प्रधानमंत्री को ही तय करना है कि सरकार का रुख क्या होगा? वह है लखीमपुर खीरी हिंसा और गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के मामले में। इस मामले में जांच प्रक्रिया चल रही है, मुख्य आरोपी जेल में हैं। फैसला केवल अजय मिश्र टेनी पर होना है। सरकार बहुत अधिक झुकने का भी संदेश नहीं देना चाहती। देखना है प्रधानमंत्री मोदी आगे अन्नदाता के साथ जुड़ने के लिए अब कौन सा मास्टर स्ट्रोक चलते हैं।
संसद के गलियारे से निकलकर गाड़ी में बैठने जा रहे एक प्रमुख केंद्रीय मंत्री का कहना है कि हमारा फोकस अभी किसान आंदोलन पर है। केंद्र सरकार किसानों की हमेशा से हितैषी रही है। हमें भरोसा है कि किसान जल्द ही दिल्ली की सीमाओं से खेत खलिहान की तरफ लौट जाएगा। सूत्र का कहना है कि अन्नदाता मान गया तो फिर परेशानी कहां है? समय पर सब ठीक हो जाएगा। अभी तो केंद्र सरकार किसानों की परेशानियों को कम करने के लिए तमाम विकल्पों पर काम करने वाली है। एक तरह से वह कहना चाह रहे थे कि किसान सम्मान निधि में बढ़ोत्तरी समेत तमाम उपाय किए जाने हैं। सब पाइपलाइन में हैं।
याद होगा, एक नारा दिया गया था। मोदी हैं तो मुमकिन है। मोदी सरकार की मंशा भाजपा के नेताओं और अपने संगठन में इसी संदेश को देने की है। भाजपा के संगठन से जुड़े उत्तर प्रदेश के नेता ने फोन पर हुई बातचीत में इस नारे का उल्लेख करते हुए इसे दोहराया। समझा जा रहा है कि उपचुनाव के नतीजे, पंचायत चुनाव के नतीजे और जनसंपर्क अभियान के दौरान निचले स्तर से आए फीडबैक को प्रधानमंत्री मोदी तक पहुंचाया गया।
सूत्र का कहना है कि हम और आप जिस धरातल पर सोचते हैं, प्रधानमंत्री के सोचने, काम करने का तरीका इससे काफी अलग और ऊंचा है। वह कहते हैं कि भले ही अभी हममें से कुछ को या आपको केंद्र सरकार का निर्णय अटपटा लग रहा है, लेकिन आने वाले समय में आपको यह सब अच्छा लगने वाला है। बस इंतजार कीजिए।
दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से डटे किसान संगठन अब धीरे-धीरे थकने लगे हैं। आंदोलन को जारी रखने वाले किसान संगठनों के बीच में भी कई गुट हैं और कई तरह के विचार आने लगे हैं। पंजाब से जुड़े कुछ किसान संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार ने हमारी मुख्य मांग मान ली है। वह तीनों कृषि कानूनों की वापसी का ही था। हमारी शर्त थी कि पहले इन्हें सरकार वापस ले। रहा सवाल न्यूनतम समर्थन मूल्य वापसी का तो किसान संगठनों को भी पता है कि जिस तरह से वह मांग रहे हैं, सरकार ठीक वैसे ही सभी मांगों को नहीं मान सकती। लेकिन समिति बनाने के लिए सरकार तैयार है तो कुछ बेहतर होने की उम्मीद है। हरमीत सिंह कादियान के संगठन से जुड़े एक नेता का कहना है कि पराली जलाने को भी सरकार ने अपराध के दायरे से बाहर करने, दर्ज मुकदमों की वापस की प्रक्रिया शुरू कर दी है। बस अब थोड़ी सी मांगे बची है
राकेश टिकैत का मामला जरा अलग है?
किसान आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा सक्रिय औऱ चर्चा में रहने वाले भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत को लेकर किसान संगठनों में तरह-तरह की प्रतिक्रिया है। किसान संगठन के एक नेता ने कहा कि चार दिसंबर का इंतजार कीजिए। तस्वीर साफ हो जाएगी। भाकियू (अराजनैतिक) के प्रमुख चौधरी हरपाल सिंह भी मानते हैं कि अंदरखाने टिकैत को लेकर कई लोग असहज हैं। मीडिया ने उन्हें हीरो बना रखा है। पंजाब के होशियारपुर से आए किसान रनविंदर सिंह कहते हैं कि बड़ी मांग तो मान ही ली गई है। बाकी कुछ यूपी और पंजाब की राजनीति भी है। अभी हम कुछ नहीं कह सकते। एक अन्य किसान नेता कहते हैं कि राकेश टिकैत तो आंदोलन खत्म करने की घोषणा जनवरी में ही कर चुके थे। लेकिन थोड़ी देर में उत्तर प्रदेश के एक राजनीतिक नेता ने सबकुछ पलटवा दिया। उसके बाद से वह लगातार चर्चा में बने हैं। इस तरह की चीजों पर उन्हें कुछ नहीं बोलना है। बस इतना ही कहना चाहते हैं कि किसानों का आंदोलन राजनीतिक होने से बचना चाहिए।