विश्व बाजार में कच्चे तेल की मांग और इसके उत्पादन में कोई अंतर नहीं है, लेकिन इसके बाद भी कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। यह स्थिति पूरे विश्व के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण मांग-आपूर्ति की समस्या नहीं, बल्कि मुनाफाखोरी है। निवेशक ज्यादा कमाई के चक्कर में निवेश कर लाभ कमा रहे हैं। इसके अलावा तेल बाजार के नए स्रोत खोजने में नया निवेश नहीं हो रहा है, जिससे आने वाले दो-तीन वर्षों में मांग-आपूर्ति का संकट पैदा हो सकता है। इस स्थिति की आशंका से बाजार में ‘पैनिक बाइंग’ बढ़ रही है जिससे तेल की कीमतें उछल रही हैं। अनुमान है कि यह तेजी अभी बनी रहेगी और महंगे तेल की कीमतों से छुटकारा नहीं मिलेगा। इससे घरेलू स्तर पर ‘कैस्केडिंग इफैक्ट’ के कारण अन्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी जारी रह सकती है। यानि फिलहाल लोगों को महंगाई से छुटकारा मिलने की कोई उम्मीद नहीं है।
कोरोना पूर्व स्तर को नहीं छू सकी है मांग
ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा ने अमर उजाला को बताया कि वर्तमान में तेल की कीमतों में उछाल का मांग और सप्लाई से ज्यादा लेना-देना नहीं है। इस समय विश्व बाजार में जितनी तेल की मांग है, लगभग उतना उत्पादन किया जा रहा है। कोरोना काल के बाद अर्थव्यवस्था तेजी से खुल रही है, लेकिन यह अभी भी कोरोना पूर्व की स्थिति में नहीं आई है। रेल-हवाई यातायात और कई अन्य औद्योगिक क्षेत्र अभी भी पूरी क्षमता के साथ नहीं खुले हैं और इनमें तेल की मांग सीमित बनी हुई है। यही कारण है कि पेट्रोल-डीजल की मांग अभी भी कोरोना पूर्व के स्तर को नहीं छू सका है। यही कारण है कि इस समय कच्चे तेल की मांग और आपूर्ति के बीच कोई संकट नहीं है।
तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह मुनाफाखोरी
तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण तेल बाजार में मुनाफाखोरी है। निवेशक पैसा लगाकर ज्यादा कमाई को देखते हुए निवेश कर रहे हैं, जिससे भाव उछल रहे हैं। लेकिन आज के हालात में इसके 75 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाने की उम्मीद नहीं है। आने वाले कुछ समय में मांग बढ्ने पर यह 90 डॉलर तक भी पहुंच सकता है, लेकिन चूंकि यह केवल मुनाफाखोरी के कारण होगा और बाजार में मांग और आपूर्ति के बीच कोई संकट नहीं है, इसलिए इस ऊंचाई पर दाम टिक नहीं पाएगा। और इस ऊंचाई पर पहुंचकर तेल की कीमतें वापस नीचे आ जाएंगी।