हमारे देश के संभवत शायद ही कोई चिंतक ऐसे हुए हो जिन्होंने प्रलोभन द्वारा धर्मान्तरण करने की निंदा न की हो। महान चिंतक एवं समाज सुधारक स्वामी दयानंद का एक ईसाई पादरी से शास्त्रार्थ हो रहा था। स्वामी जी ने पादरी से कहा की हिन्दुओं का धर्मांतरण करने के तीन तरीके है।
पहला जैसा मुसलमानों के राज में गर्दन पर तलवार रखकर जोर जबरदस्ती से बनाया जाता था। दूसरा बाढ़, भूकम्प, प्लेग आदि प्राकृतिक आपदा जिसमें हज़ारों लोग निराश्रित होकर ईसाईयों द्वारा संचालित अनाथाश्रम एवं विधवाश्रम आदि में लोभ-प्रलोभन के चलते भर्ती हो जाते थे और इस कारण से आप लोग प्राकृतिक आपदाओं के देश पर बार बार आने की अपने ईश्वर से प्रार्थना करते है और तीसरा बाइबिल की शिक्षाओं के जोर शोर से प्रचार-प्रसार करके।
मेरे विचार से इन तीनों में सबसे उचित अंतिम तरीका मानता हूँ। स्वामी दयानंद की स्पष्टवादिता सुनकर पादरी के मुख से कोई शब्द न निकला। स्वामी जी ने कुछ ही पंक्तियों में धर्मान्तरण के पीछे की विकृत मानसिकता को उजागर कर दिया।
समाज सुधारक एवं देशभक्त लाला लाजपत राय द्वारा प्राकृतिक आपदाओं में अनाथ बच्चों एवं विधवा स्त्रियों को मिशनरी द्वारा धर्मान्तरित करने का पुरजोर विरोध किया गया जिसके कारण यह मामला अदालत तक पहुंच गया। ईसाई मिशनरी द्वारा किये गए कोर्ट केस में लाला जी की विजय हुई एवं एक आयोग के माध्यम से लाला जी ने यह प्रस्ताव पास करवाया की जब तक कोई भी स्थानीय संस्था निराश्रितों को आश्रय देने से मना न कर दे तब तक ईसाई मिशनरी उन्हें अपना नहीं सकती।
महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे “यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के मजहब में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है।
इस प्रकार से प्रायः सभी धर्मान्तरण के विरोधी रहे है एवं उसे राष्ट्र एवं समाज के लिए हानिकारक मानते है लेकिन इस चिंता पर कार्यान्वयन की अगर बात करें तो ज़मीनी हालात ये हैं कि धर्मान्तरण के मामले भारत में बढ़ते ही जा रहे हैं |