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Monday, June 30, 2025

मुंबई में अनोखा रेस्तरां चला रही 180 महिलाएं, अपने दृढ़ संकल्प से बन रही हैं समाज की रीढ़

कोई शक्ति एक महिला से ज्यादा ताकतवर नहीं हो सकती। इस बात को साबित करने के लिए कुछ स्वतंत्र और दृढ़ संकल्पित महिलाएं आगे आ रही हैं और वे समाज की रीढ़ बन रही हैं। वे समाज द्वारा बनाए गए पितृसत्तात्मक मानदंडों को कि रोजी-रोटी कमाने के लिए पुरुष जाता है, स्त्री नहीं, तोड़ रही हैं और आजीविका कमा रही हैं। आमतौर पर महिलाओं को परम्परागत रूप से रसोई संभालने के लिए जाना जाता है और इस रसोई को अब वो अपनी आजीविका के स्रोत में तब्दील कर रही हैं। किस तरह से ये महिलाएं अन्य महिलाओं को भी रोजगार दे रही हैं, आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में…

पूरी तरह महिलाओं द्वारा संचालित और प्रबंधित रेस्तरां

जी हां, इन दिनों मुंबई के बाहरी इलाके वसई में अपनी तरह का एक अनोखा रेस्तरां खासा चर्चा में हैं। दरअसल, यह पूरी तरह महिलाओं द्वारा संचालित और प्रबंधित हैं। इसमें काम करने वाली महिलाएं जो जरूरतमंद हैं और अपने परिवार को चलाने के लिए एक अच्छी नौकरी की तलाश में हैं, उनके लिए यह रेस्तरां आजीविका का एक स्रोत है।

रोटी कमाने के लिए बने पितृसत्तात्मक मानदंडों को तोड़ रही हैं ये महिलाएं

वसई और नाला सोपारा के कॉलेज, कैंटीन और अस्पताल कैफेटेरिया में इस रेस्तरां की लगभग सात शाखाएं हैं, जिनमें लगभग 180 महिलाएं काम करती हैं। दरअसल, पेशे से शिक्षिका इंदुमती बर्वे ने साल 1991 में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर श्रमिक महिला विकास संघ की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य अलग-अलग पृष्ठभूमि से आई महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना था।

ऐसे की गई थी शुरुआत

सबसे पहले इन महिलाओं ने पापड़ बनाने की पहल शुरू की। हालांकि वित्तीय बाधाओं के कारण यह व्यवसाय नहीं चला तब संस्थापकों ने एक कैंटीन शुरू करने का फैसला लिया। कम संसाधनों में खाना पकाने का कार्य शुरू किया जा सकता है। यह सोचकर सात महिलाओं ने तीन हजार रुपए की राशि के साथ इस पहल की शुरुआत की और कम आय वर्ग के लोगों जैसे बस ड्राइवर, ऑटो रिक्शा चालक व कामकाजी और छात्रों के लिए खाना-बनाना और परोसना शुरू किया। केवल 12 से 15 महिलाएं रसोई में खाना बनाती हैं।

जरूरतमंद महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है मकसद

पूरे रेस्तरां का प्रबंधन महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। फिर चाहे वह काउंटर मैनेज करना हो, कूपन सौंपना हो या फिर नकदी गिनना। इसके अलावा ये महिलाएं हर दिन स्थानीय सब्जी बाजार में जाती हैं और अपने रेस्तरां के लिए ताजा सब्जियां खरीदती हैं।

पॉकेट फ्रेंडली है ये रेस्तरांं

ये रेस्तरां के भोजन के विभिन्न विकल्पों के साथ पॉकेट फ्रेंडली भी है। लोग घर में पकाए गए हाइजेनिक भोजन के लिए रेस्तरां में आते हैं। कामकाजी महिलाएं और छात्र भी महिलाओं द्वारा प्यार से पकाए गए ताजा, स्वादिष्ट, गुणवत्तापरक और सस्ता भोजन का डिब्बा प्राप्त करके खुश होते हैं।

कम आय वर्ग के लोगों के लिए बनाती हैं खाना

दरअसल, श्रमिक महिला विकास संघ का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है बल्कि समाज के हाशिये पर खड़े वर्गों की महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना है और इसलिए इस काम में आसपास के लोगों का भी योगदान खूब मिल रहा है। सेटअप के लिए जगह प्रदान करने और हर हफ्ते बर्तन, किराए का सामान और सब्जियों की आपूर्ति सब स्थानीय लोगों की मदद के माध्यम से होता है। वेतन के अलावा महिलाओं को उनके परिवार के लिए रियायती दरों पर भोजन, चाय और नाश्ता उनके ड्यूटी के घंटों और भोजन के दौरान मिलता है। महिलाओं को वेतन मिलता है और इस तरह उनका वित्तीय फैसलों पर नियंत्रण होता है।

महिलाओं को मिल रहा गौरवपूर्ण जीवन

सिर्फ इतना ही नहीं, ये महिलाएं भविष्य निधि, पेंशन बीमा पॉलिसी और शिक्षा के लिए धन स्वास्थ्य लाभ और अन्य मौद्रिक सहायता भी प्राप्त कर रही हैं। गणेश चतुर्थी, होली और दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान रेस्तरां को बहुत सारे ऑर्डर मिलते हैं। महिलाएं तब ऑर्डर को पूरा करने और रेस्तरां में नियमित रूप से काम करने में व्यस्त हो जाती हैं। अब इस पहल ने शहर के विभिन्न हिस्सों में सात आउटलेट्स का विस्तार किया है, जिससे इन महिलाओं को एक गरिमापूर्ण जीवन मिल रहा है और ये महिलाएं सशक्तिकरण और उदमय शीलता का शानदार उदाहरण भी हैं। महिलाएं अब न केवल जीविकोपार्जन कर रही हैं बल्कि उत्तमता कौशल विकास कर चुकी हैं।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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