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Tuesday, August 5, 2025

पत्रकार राजकुमार केसवानी का शुक्रवार को कोरोना से निधन

देश एवं दुनिया में प्रतिष्ठित पत्रकार राजकुमार केसवानी का शुक्रवार को कोरोना से निधन हो गया। उन्होंने देश के कई पत्र-पत्रिकाओं में कार्य किया था। वे देश के पहले पत्रकार थे जिन्होंने भोपाल गैस कांड से ढाई साल पहले ही यूनियन कार्बाइड के संयंत्र में सुरक्षा चूक को लेकर आगाह कर दिया था। आखिरकार 3 दिसंबर 1984 को भोपाल में हुई इस दुनिया की भयानक औद्योगिक त्रासदी में 15 हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी। 

केसवानी का जन्म 26 नवंबर 1950 को भोपाल में हुआ था। केसवानी का पत्रकारिता का करियर खेल पत्रकार के रूप में शुरू हुआ। 1968 में वे ‘स्पोर्ट्स टाइम्स’ के सह-सम्पादक बने। उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अखबारों व पत्रिकाओं में शीर्ष पदों पर कार्य किया। केसवानी ने भोपाल में 1984 में घटी की विश्व की भीषणतम गैस त्रासदी की आशंका हादसे के ढाई साल पहले ही जाहिर कर दी थी। इसे लेकर वे अपने लेखन के जरिए लगातार आगाह करते रहे। 

बीडी गोयनका अवार्ड समेत कई पुरस्कार मिले
पत्रकार राजकुमार केसवानी को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कारों से नवाजा गया था। इसमें ‘बीडी गोयनका अवार्ड’ (1985) और 2010 में प्रतिष्ठित ‘प्रेम भाटिया जर्नलिज्म अवार्ड’ शामिल हैं। केसवानी स्वयं गैस पीड़ित होने के अलावा उन लोगों में से हैं, जिन्होंने सबसे पहले यूनियन कार्बाइड पर मुकदमा किया।
इस तरह किया था गैस कांड के प्रति आगाह
केसवानी ने एक आलेख में लिखा था, ‘1981 के क्रिसमस के समय की बात है। मेरा दोस्त मोहम्मद अशरफ यूनियन कार्बाइड कारखाने में प्लांट ऑपरेटर था और रात की पाली में काम कर रहा था। फॉस्जीन गैस बनाने वाली मशीन से संबंधित दो पाइपों को जोड़ने वाले खराब पाइप को बदलना था। जैसे ही उसने पाइप को हटाया, वह जानलेवा गैस की चपेट में आ गया। उसे अस्पताल ले जाया गया पर अगली सुबह अशरफ ने दम तोड़ दिया। अशरफ की मौत मेरे लिए एक चेतावनी थी। जिस तरह मेरे एक दोस्त की मौत हो गई, उसे मैंने पहले ही गंभीरता से क्यों नहीं लिया? मैं अपराधबोध से भर गया। उस समय मैं पत्रकारिता में नया था. कुछ छोटी-मोटी नौकरियां की थीं। बाद में 1977 से अपना एक साप्ताहिक हिंदी अखबार ‘रपट’ निकालने लगा था।

यह आठ पन्नों का एक टैब्लॉयड था। महज 2000 के सर्कुलेशन वाले इस अखबार को विज्ञापन से न के बराबर आमदनी होती थी। इसके लिए एकमात्र सहारा था मेरा छापाखाना ‘भूमिका प्रिंटर्स’, जिसे बैंक से कर्ज लेकर शुरू किया था। इस अख़बार की वजह से मुझे अपनी पसंद की खबरें बिना किसी रोक-टोक के छापने की आजादी मिली। बस यहीं से यूनियन कार्बाइड की पोल खोलने का अभियान शुरू हुआ था। 

रात में लीक हुई थी मौत की नींद सुलाने वाली गैस
भोपाल में 1984 में दो और तीन दिसंबर की मध्यरात्रि में अमेररिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से जानलेवा गैस लीक होनी शुरू हुई थी। देखते-देखते आसमान में मिक गैस का जहरीला बादल बन गया था। हजारों लोगों की मौत हुई और एक लाख से ज़्यादा लोग इस हादसे में बेघर, बीमार या फिर अपंग हुए थे। 

दोषियों को 26 साल बाद मिली दो साल की जेल
मामले के दोषियों को नाममात्र की सजा मिली थी। गैस कांड के 26 साल बाद, सात जून 2010 को जब भोपाल जिला न्यायालय ने सात आरोपियों में से हर एक को दो-दो बरस की सजा सुनाई थी। केसवानी ने इसकी गणना कर बताया था कि भोपाल में हुई मौतों में से हर मौत के लिए महज 35 मिनट की सजा हुई।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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