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Sunday, June 29, 2025

गोरखपुर : संक्रमित युवक ने खुद की परवाह किए बिना गर्भवती बहन और अस्पताल में भर्ती अन्य मरीजों की उखड़ती सांसें बचाई

एक तरफ कोरोना महामारी ने जहां रिश्तों में दूरियां ला दी हैं, वहीं पुराना गोरखपुर मोहल्ले में एक संक्रमित युवक ने खुद की परवाह किए बिना न केवल अपनी गर्भवती बहन बल्कि अस्पताल में भर्ती अन्य मरीजों की उखड़ती सांसें बचाई। संक्रमित होने के बावजूद खुद ऑक्सीजन की व्यवस्था की। करीब 50 किलोमीटर एंबुलेंस चलाते हुए सिलिंडर लेकर आया। सोमवार को जब दोनों भाई-बहन कोरोना से जंग जीतकर घर लौटे तो पूरे मोहल्ले के लोगों ने फूल-मालाओं से उनका स्वागत किया। 

फार्मा कंपनी में रिजनल मैनेजर पद पर काम करने वाले पंकज शुक्ला अपनी पत्नी, दो बेटियों और मां के साथ पुराना गोरखपुर मोहल्ले में रहते हैं। साल 1986 में पिता का देहांत होने के बाद कम उम्र में ही उनके कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। छत्तीसगढ़ के विलासपुर में रहने वाले बहनोई के भी अकेले होने से 15 अप्रैल को घर वालों ने गर्भवती बहन को देखरेख के लिए गोरखपुर बुला लिया था। कुछ दिन बाद बहन सर्दी-जुकाम हुआ तो उन्होंने डॉक्टर से सलाह ली।  

डॉक्टर ने पहले कोविड जांच कराने के लिए कहा। 12 अप्रैल को जांच कराई तो बहन पॉजिटिव निकली। इस पर पंकज ने भी जांच कराई तो वह भी संक्रमित मिले। दो दिन बाद आरटीपीसीआर की रिपोर्ट आई तो उसमें भी दोनों पॉजिटिव मिले। दवा तब तक शुरू हो गई थी, लेकिन अचानक बहन को सांस लेने में दिक्कत होने लगी।

पंकज कहते हैं कि यह देखकर उनके आंखों के सामने अंधेरा छा गया। शहर के हालात देख उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी हालत में बेड कहां मिलेगा। फार्मा लाइन के संबंध काम आए और गोरखनाथ क्षेत्र स्थित गोरखपुर हॉस्पीटल के डॉ. राजेश श्रीवास्तव ने बहुत मदद की। अपने अस्पताल में बेड दिलाया। बहन के साथ वह भी भर्ती हो गए। 

28-29 अप्रैल को शहर के ऑक्सीजन प्लांट बंद होने से अस्पताल का ऑक्सीजन खत्म होने के कगार पर पहुंच गया। अस्पताल प्रबंधन ने मरीजों के परिजनों को बताया कि अब डेढ़ घंटे का ही ऑक्सीजन उनके पास है। यह सुनकर पंकज के हाथ-पांव फूल गए। उन्होंने कई जगह फोन किया, लेकिन बात नहीं बनी। आखिर में रोने-गिड़गिड़ाने पर आरके ऑक्सीजन प्लांट के कर्मचारी ने ऑक्सीजन देने के लिए हामी भरी। लेकिन शर्त रखी कि खाली ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर आना होगा। साथ में ऑक्सीजन का पत्र भी। 

खुद एंबुलेंस में सिलिंडर रखा और पहुंचे अस्पताल
पंकज कहते हैं कि उन्होंने डॉक्टर को इसकी सूचना दी, मगर पता चला कि अस्पताल के पास जो एंबुलेंस है उसका चालक बीमार है। कुछ समझ में नहीं आया तो पंकज ने डॉक्टर से गुजारिश की। प्लांट से ऑक्सीजन सिलिंडर खुद लाने का प्रस्ताव रखा। बहुत अनुरोध के बाद अस्पताल प्रबंधन तैयार हो गया। अस्पताल के कर्मचारियों की मदद से पंकज ने खुद पांच-छह सिलिंडर एंबुलेंस में रखा। स्टाफ ने उन्हें सैनिटाइज करने के साथ ही अन्य जरूरी बचाव के इंतजाम किए। पंकज गोरखनाथ से एंबुलेंस चलाते हुए गीडा स्थित आरके ऑक्सीजन प्लांट आए और वहां से सिलिंडर भरवाकर दोबारा अस्पताल पहुंचे। इस बीच कई मरीजों के परिजनों ने फोन कर जल्द आने की गुहार लगाई। जब वह अस्पताल पहुंचे तो मरीजों के साथ मौजूद प्रत्येक परिजन का चेहरा खिल गया। तब तक ऑक्सीजन खत्म होने वाली थी। आनन-फानन स्टाफ ने ऑक्सीजन लगाया, जिससे पंकज की बहन समेत सभी मरीजों की उखड़ती सांसें लौट सकीं।

अस्पताल प्रशासन ने मदद की, आरके प्लांट को भी धन्यवाद
पंकज कहते हैं कि अस्पताल प्रशासन ने उनकी बहुत मदद की। खासकर डॉ. राजेश श्रीवास्तव ने। बेड दिलाने से लेकर पूरी तन्मयता से उन्होंने इलाज किया। उन्हीं की देन है कि वे भाई-बहन दोनों कोरोना से जीत सके। आरके प्लांट के कर्मचारी और उनके मालिक को भी धन्यवाद। उन्होंने मजबूरी समझी और मुश्किल वक्त में मदद की।  

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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