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Thursday, June 26, 2025

रणनीति : बिहार-उत्तराखंड की तर्ज पर बदलाव का सिलसिला तेज करेगी भाजपा

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजे आने के बाद मंथन का सिलसिला शुरू हुआ था
अब आने वाले समय में चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश को छोड़कर अन्य सभी राज्यों की स्थिति की समीक्षा कर उचित निर्णय लिया जाएगा

नई दिल्ली, पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से सकते में आई भाजपा आने वाले समय में बिहार और उत्तराखंड की तरह बदलाव का सिलसिला तेज करेगी। दरअसल अन्य राज्यों की तरह बंगाल में भी पार्टी लोकसभा में हासिल वोट का बराबरी नहीं कर पाई। पार्टी मानती है कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मजबूत चेहरे का अभाव है।

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजे आने के बाद मंथन का सिलसिला शुरू हुआ था। इसी कारण बिहार में परिणाम आने के बाद नेतृत्व ने सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं पर नए चेहरों को तरजीह दी। उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन किया गया। अब आने वाले समय में चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश को छोड़कर अन्य सभी राज्यों की स्थिति की समीक्षा कर उचित निर्णय लिया जाएगा।

दरअसल, बीते सात साल में भाजपा लोकसभा का दो चुनाव लड़ी। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में असम और त्रिपुरा को छोड़ कर पार्टी कहीं भी लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई। खासतौर सत्ता वाले राज्यों में लोकसभा के मुकाबले विधानसभा चुनाव में वोटों में ज्यादा गिरावट देखी गई।

बीते साल झारखंड में पार्टी के वोटों में 19 फीसदी का तो हरियाणा में 17 फीसदी का नुकसान हुआ। इसके अलावा छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, गुजरात और कर्नाटक में क्रमश: 10, 17, 13, 9, 5, 14, 10 और सात फीसदी मतों का नुकसान हुआ।

चेहरा अहम समस्या
पार्टी ने इस साल के शुरू में हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र के नतीजे की समीक्षा की थी। सूत्रों के मुताबिक आकलन यह था कि सत्तारूढ़ राज्यों में सरकार के मुखिया लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहे। मसलन झारखंड में खुद अपना चुनाव हारने वाले सीएम रघुवर दास के खिलाफ भयानक नाराजगी भारी पड़ी।

हरियाणा में सीएम खट्टर उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे। तब तय किया गया था कि बारी-बारी से सभी राज्यों की समीक्षा कर इस स्थिति में बदलाव के लिए जरूरी निर्णय लिए जाएं। हालांकि, बीच में कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण इस पर गंभीर चर्चा नहीं हुई।

बंगाल में भी मजबूत चेहरा नहीं था
बंगाल में भी मजबूत चेहरे के अभाव में पार्टी ममता बनर्जी के बंगाल अस्मिता के सियासी दांव की काट करने में असफल रही। क्योंकि राज्य में एक भी स्थानीय चेहरा ऐसा नहीं था जिस पर पार्टी अपना दांव लगा पाती। पार्टी साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव की तरह ही मोदी-शाह की जोड़ी पर आश्रित रह गई।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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