वाराणसी, 2 सितंबर 2025: वाराणसी, भारत की सांस्कृतिक राजधानी, आज एक अनोखे साहस और आत्मविश्वास की कहानी लिख रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के भारत से आयातित सामानों पर 50% टैरिफ लगाने के फैसले ने देश के व्यापारिक गलियारों में हलचल मचा दी है। ऑर्डर रद्द हो रहे हैं, पेमेंट अटक गए हैं, और निर्यात क्षेत्र में अनिश्चितता का माहौल है। लेकिन इस तूफान के बीच, बनारस के काष्ठ कला कारोबारी न सिर्फ डटकर मुकाबला कर रहे हैं, बल्कि उन्होंने अमेरिका के बहिष्कार का साहसिक फैसला लिया है।
भारत ही हमारा बाजार, अमेरिका की जरूरत नहीं
प्रदेश स्तर पर सम्मानित काष्ठ कला कारिगर ओम प्रकाश शर्मा इस आंदोलन के अगुआ बनकर उभरे हैं। वह गर्व से कहते हैं, “हमारे 25-30% उत्पाद अमेरिका जाते थे, लेकिन ट्रंप के टैरिफ से हमें डर नहीं लगता। भारत का विशाल बाजार और ODOP (वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट) योजना पहले ही हमारे 75% कारोबार को संभाल रही है।” शर्मा का यह बयान न सिर्फ आत्मविश्वास को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि बनारस की कला अपनी जड़ों में कितनी मजबूत है।
“गुंडई की नीति” का जवाब
शर्मा ने ट्रंप के फैसले को “गुंडई की नीति” करार देते हुए इसे बिना सोच-विचार लिया गया कदम बताया। वह कहते हैं, “यह फैसला न सिर्फ भारतीय कारोबारियों, बल्कि अमेरिकी बाजार को भी नुकसान पहुंचाएगा। लेकिन हम हार नहीं मानेंगे। एक रास्ता बंद होता है, तो चार नए रास्ते खुलते हैं।” बनारस के कारीगरों का यह विश्वास उनकी कला की गुणवत्ता और भारतीय बाजार की ताकत पर टिका है।
आत्मनिर्भरता का नया प्रतीक
जहां टैरिफ वृद्धि ने कई उद्योगों में चिंता की लकीरें खींच दी हैं, वहीं बनारस के काष्ठ कला कारोबारी एक मिसाल कायम कर रहे हैं। उनकी हस्तनिर्मित मूर्तियां और खिलौने, जो भारतीय संस्कृति की आत्मा को समेटे हुए हैं, देश-विदेश में पहले से ही लोकप्रिय हैं। इन कारीगरों का मानना है कि भारतीय बाजार और वैश्विक मांग इतनी विशाल है कि अमेरिका पर निर्भर रहने की कोई जरूरत नहीं।
बनारस का संदेश: आत्मगौरव और आत्मनिर्भरता
अमेरिका के बहिष्कार का यह ऐलान सिर्फ एक कारोबारी फैसला नहीं, बल्कि आत्मगौरव और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। बनारस के कारीगरों ने यह साबित कर दिया है कि चुनौतियों के सामने झुकने की बजाय, अपनी कला और मेहनत के दम पर वे नई राहें तलाश सकते हैं। यह कहानी न सिर्फ वाराणसी की, बल्कि पूरे भारत की उस ताकत को दर्शाती है, जो अपनी जड़ों से जुड़कर वैश्विक मंच पर चमक सकती है।
बनारस की काष्ठ कला आज न केवल लकड़ी को तराश रही है, बल्कि एक नए भारत की उम्मीदों को भी आकार दे रही है।