भारत की आर्थिक ताकत का प्रदर्शन: जीडीपी वृद्धि में G7 को पछाड़ा, मुद्रा बाजार में चुनौतियां बरकरार

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India's GDP rose

नई दिल्ली, 30 अगस्त 2025: भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक ताकत का शानदार प्रदर्शन किया है। वर्ष 2025 की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.8% रही, जो G7 देशों—कनाडा, इटली, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और जर्मनी—की औसत वृद्धि दर 0.9% से कहीं अधिक है। यह उपलब्धि भारत की आर्थिक नीतियों और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का प्रमाण है, जो वैश्विक स्तर पर निवेशकों का ध्यान आकर्षित कर रही है।

एशिया में मुद्रा संकट: लेबनानी पाउंड और ईरानी रियाल सबसे कमजोर

हालांकि, वैश्विक मुद्रा बाजार में कुछ देश गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। लेबनानी पाउंड (LBP) एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा के रूप में उभरा है। 2019 से शुरू हुए आर्थिक और राजनीतिक संकट ने लेबनान की अर्थव्यवस्था को हिला दिया है। भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और बढ़ते कर्ज के कारण लेबनानी पाउंड का मूल्य तेजी से गिरा है। सरकार द्वारा लागू सख्त विनिमय नियंत्रणों ने विदेशी मुद्रा की उपलब्धता को सीमित कर दिया है, जिससे आयात बाधित हुआ और आवश्यक वस्तुओं की कमी बढ़ गई है।

इसी तरह, ईरानी रियाल (IRR) भी दुनिया की सबसे कम मूल्य वाली मुद्राओं में शामिल है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम और ईरान-इराक युद्ध के बाद उत्पन्न वित्तीय और राजनीतिक अशांति ने इसकी मुद्रा को कमजोर किया है। विशेषज्ञों के अनुसार, इन देशों में स्थिरता लाने के लिए दीर्घकालिक सुधारों की आवश्यकता है।

भारतीय रुपये की स्थिति

भारतीय रुपया, हालांकि लेबनानी पाउंड और ईरानी रियाल की तुलना में बेहतर स्थिति में है, फिर भी हाल के समय में एशिया की अपेक्षाकृत कमजोर मुद्राओं में गिना गया है। 26 अगस्त 2025 को भारतीय रुपये (INR) का पाकिस्तानी रुपये (PKR) के मुकाबले विनिमय दर 3.24 रहा। वहीं, नेपाल में 100 भारतीय रुपये की कीमत 160 से 161 नेपाली रुपये के बीच है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के कारण सटीक जानकारी के लिए मुद्रा परिवर्तक ऐप या वेबसाइट का उपयोग किया जाए।

भारत की आर्थिक संभावनाएं

भारत की मजबूत जीडीपी वृद्धि दर वैश्विक निवेशकों के लिए सकारात्मक संकेत है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत की यह रफ्तार न केवल घरेलू आर्थिक नीतियों को बल देगी, बल्कि वैश्विक आर्थिक मंच पर भी उसकी स्थिति को और मजबूत करेगी। हालांकि, मुद्रा बाजार में स्थिरता बनाए रखने के लिए नीतिगत सुधार और सतर्कता जरूरी है।

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