इलाहाबाद, 8 अगस्त 2025: सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस प्रशांत कुमार के खिलाफ दिए गए आदेश के विरोध में हाईकोर्ट के 13 न्यायाधीशों ने एकजुट होकर मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली से फुल कोर्ट बैठक बुलाने की मांग की है। यह विवाद न केवल न्यायपालिका के आंतरिक प्रशासन को लेकर सवाल उठा रहा है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के बीच टकराव की स्थिति भी पैदा कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश बना विवाद का केंद्र
4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने जस्टिस प्रशांत कुमार के एक आपराधिक मामले में सुनवाई और फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई थी। पीठ ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि जस्टिस कुमार को आपराधिक मामलों से हटाकर, रिटायरमेंट तक किसी वरिष्ठ जज के साथ डिवीजन बेंच में नियुक्त किया जाए। इस आदेश ने हाईकोर्ट के भीतर असंतोष की लहर पैदा कर दी।
13 जजों का सख्त विरोध
जस्टिस अरिंदम सिन्हा के नेतृत्व में 13 जजों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को “अनुचित” और “न्यायिक स्वायत्तता पर हमला” करार दिया। जस्टिस सिन्हा ने अपने पत्र में कहा कि बिना नोटिस के पारित इस आदेश में जस्टिस कुमार के खिलाफ गंभीर टिप्पणियां की गईं, जो अस्वीकार्य हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि फुल कोर्ट बैठक बुलाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन न करने और इसकी भाषा पर रोष दर्ज करने का निर्णय लिया जाए।
मूल विवाद का आधार
विवाद की जड़ एक निजी कंपनी, M/S Shikhar Chemicals द्वारा दायर आपराधिक शिकायत है। कंपनी ने 52.34 लाख रुपये की थ्रेड आपूर्ति के लिए 47.75 लाख रुपये का भुगतान प्राप्त किया था, लेकिन शेष राशि को लेकर विवाद हुआ। शिकायतकर्ता ने इसे आपराधिक मामला बनाया, जिसके खिलाफ आरोपी पक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जस्टिस प्रशांत कुमार ने 5 मई को याचिका खारिज करते हुए कहा था कि सिविल मामले लंबे समय लेते हैं, इसलिए आपराधिक कार्यवाही उचित है। सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी को गलत ठहराते हुए आदेश रद्द कर दिया और मामले को दूसरे जज को सौंपने का निर्देश दिया।
रोस्टर में बदलाव
विवाद के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से जस्टिस प्रशांत कुमार को आपराधिक मामलों से हटाकर 7 और 8 अगस्त को भूमि अधिग्रहण, विकास प्राधिकरण और पर्यावरण मामलों की सुनवाई के लिए जस्टिस एमसी त्रिपाठी के साथ डिवीजन बेंच में नियुक्त किया। आपराधिक मामले अब जस्टिस दिनेश पाठक को सौंपे गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट में भी मतभेद
सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के कुछ वरिष्ठ जजों ने भी इस आदेश पर असहमति जताई है। मामले को शुक्रवार को दोबारा सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है, जिससे इस विवाद के और गहराने की आशंका है।
यह प्रकरण न केवल न्यायिक स्वायत्तता और प्रशासनिक अधिकारों के सवाल उठा रहा है, बल्कि देश की दो शीर्ष अदालतों के बीच संभावित टकराव की ओर भी इशारा कर रहा है।