क्वेटा, 1 अगस्त 2025: बलूचिस्तान ने एक बार फिर भारत को एक खुला पत्र लिखकर रणनीतिक साझेदारी की अपील की है। बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत मीर यार बलूच ने भारत की जनता के नाम इस पत्र में क्षेत्र की भू-राजनीतिक और आर्थिक संभावनाओं को रेखांकित करते हुए भारत को एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में देखने की बात कही है।
मीर यार बलूच ने पत्र में लिखा, “दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और मध्य एशिया के त्रि-जंक्शन पर स्थित बलूचिस्तान, 1,000 किलोमीटर से अधिक की तटरेखा और समुद्री व्यापार मार्गों की निकटता के साथ एक प्राकृतिक प्रवेश द्वार है। इसके नीचे खरबों डॉलर के खनिज, तेल, गैस, सोना, तांबा और लिथियम जैसे संसाधन छिपे हैं।” उन्होंने कहा कि दशकों के शोषण ने इस क्षेत्र को अविकसित छोड़ दिया है, लेकिन एक स्वतंत्र बलूचिस्तान भारत के साथ साझेदारी से आर्थिक और सामरिक समृद्धि हासिल कर सकता है।
भारत के लिए अवसरों का खजाना
पत्र में भारत को बलूचिस्तान के साथ 30 से अधिक क्षेत्रों में सहयोग का प्रस्ताव दिया गया है, जो भारत के लिए 10 लाख से अधिक रोजगार सृजन का वादा करता है। प्रमुख क्षेत्रों में ऑटोमोटिव (40,000 नौकरियां), रक्षा (5,000), रेलवे (20,500), इलेक्ट्रिक वाहन (20,000), अंतरिक्ष (2,000), बुनियादी ढांचा (50,000), नवीकरणीय ऊर्जा (60,000), आईटी (1,20,000), और स्वास्थ्य सेवा (50,000) शामिल हैं। इसके अलावा, खनिज अन्वेषण, तेल-गैस, और जहाज निर्माण जैसे क्षेत्रों में भी अपार संभावनाएं हैं।
रणनीतिक और आर्थिक महत्व
मीर यार ने बलूचिस्तान को भारत के लिए व्यापार से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “यह साझेदारी भारत को रणनीतिक गहराई, ऊर्जा सुरक्षा और सीमा शांति प्रदान करेगी।” बलूचिस्तान की भौगोलिक स्थिति इसे मध्य एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक गलियारा बनाती है।
भारत की जनता से अपील
पत्र में भारत की जनता से बलूचिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में समर्थन मांगा गया है। मीर यार ने कहा, “भारत का कुशल कार्यबल और तकनीकी विशेषज्ञता एक नए राष्ट्र के निर्माण में योगदान दे सकती है। यह साझेदारी न केवल बलूचिस्तान, बल्कि भारत के लिए भी दीर्घकालिक आर्थिक और सामरिक लाभ लाएगी।”
आगे की राह
यह पत्र भारत-बलूचिस्तान संबंधों में एक नया अध्याय शुरू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह साझेदारी मूर्त रूप लेती है, तो यह दक्षिण एशिया की भू-राजनीति और आर्थिक परिदृश्य को बदल सकती है।