वाराणसी, 28 जुलाई 2025: शहर के शिवपुर थाना क्षेत्र की एक नाबालिग लड़की की जिंदगी उस समय नर्क बन गई, जब उसे शादी का झूठा वादा कर एक शख्स ने न केवल उसका शारीरिक शोषण किया, बल्कि उसके साथ एक सुनियोजित साजिश भी रची गई। इस मामले में विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट) की अदालत में दाखिल परिवाद ने न सिर्फ मुख्य आरोपी, बल्कि पुलिस के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
क्या है पूरा मामला?
परिवाद के अनुसार, प्रेमचंद नगर कॉलोनी (पांडेयपुर) के रहने वाले शशिकांत पाण्डेय उर्फ पुन्नू पाण्डेय ने अप्रैल 2013 में 16 साल की नाबालिग को शादी का झांसा देकर कई बार दुष्कर्म किया। पीड़िता जब गर्भवती हुई, तो उसका गर्भपात करवाया गया। इतना ही नहीं, अश्लील फोटो और वीडियो वायरल करने की धमकी देकर उससे अप्राकृतिक दुष्कर्म भी किया गया। शशिकांत की क्रूरता यहीं नहीं रुकी। 10 जनवरी 2024 को उसने पीड़िता के करीब 20 लाख रुपये के जेवरात लॉकर में रखने के बहाने हड़प लिए और फरार हो गया।
पुलिस पर साजिश का आरोप
जब पीड़िता ने शिवपुर थाने में शिकायत दर्ज की, तो उसे न्याय मिलने की बजाय और मुश्किलों का सामना करना पड़ा। परिवाद में आरोप है कि तत्कालीन एसीपी कैंट विदुष सक्सेना, क्राइम ब्रांच प्रभारी विमल वैगा और सारनाथ थाना प्रभारी परमहंस गुप्ता ने मुख्य आरोपी शशिकांत को बचाने के लिए साजिश रची। शिवपुर थाने से मारपीट का एक कमजोर आरोप पत्र भेजा गया, जबकि सारनाथ थाने में पीड़िता के खिलाफ ही फर्जी मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया। बाद में सारनाथ थाने के तत्कालीन प्रभारी उदयवीर ने जांच में सभी आरोपों को गलत पाया और मामूली धाराओं में आरोप पत्र दाखिल किया।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। एसीपी विदुष सक्सेना ने कथित तौर पर गलत ढंग से ऑब्जेक्शन लगाकर मामले की दोबारा जांच का आदेश दिया और पीड़िता को कार्यालय बुलाकर धमकाया। इसके बाद मामला क्राइम ब्रांच को सौंपा गया, जहां प्रभारी विमल वैगा ने पीड़िता को फर्जी मुकदमे में फंसाने की धमकी दी। इतना ही नहीं, पूछताछ के दौरान उसका गलत तरीके से वीडियो बनाया गया और शशिकांत को वीडियो कॉल के जरिए दिखाया गया।
न्याय की उम्मीद
पीड़िता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीनाथ त्रिपाठी, राकेश तिवारी और योगेंद्र सिंह प्रदीप ने अदालत में जोरदार पैरवी की। विशेष पॉक्सो कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 29 जुलाई की तारीख तय की है। यह मामला न केवल एक नाबालिग के साथ हुए अन्याय की दास्तां बयां करता है, बल्कि सिस्टम के उन पहलुओं पर भी सवाल उठाता है, जो कथित तौर पर पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की बजाय उनके जख्मों को और गहरा करते हैं।
क्या पीड़िता को इंसाफ मिलेगा? यह सवाल अब अदालत के फैसले पर टिका है।