वाराणसी, 27 जुलाई 2025: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के ट्रॉमा सेंटर में छेड़खानी के सनसनीखेज आरोपों ने जब सुर्खियां बटोरीं, तो पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया। एक महिला प्रोफेसर ने ट्रॉमा सेंटर के प्रभारी पर छेड़खानी और धमकी का गंभीर आरोप लगाया था, जिसने महिला सुरक्षा को लेकर तीखी बहस छेड़ दी। सोशल मीडिया पर लोग सरकार और प्रशासन को कठघरे में खड़ा करने लगे। लेकिन अब पुलिस जांच ने इस मामले में चौंकाने वाला खुलासा किया है—आरोप पूरी तरह झूठे निकले।
क्या थी हकीकत?
वाराणसी पुलिस की गहन जांच में सामने आया कि महिला प्रोफेसर का आरोप न केवल निराधार था, बल्कि यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा था। दरअसल, महिला के पति के खिलाफ ट्रॉमा सेंटर के कर्मचारियों ने एससी/एसटी एक्ट समेत कई गंभीर धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। पुलिस के मुताबिक, इस केस से बचाव के लिए महिला ने प्रभारी डॉक्टर पर छेड़खानी का झूठा आरोप लगाया। जांच में न तो कोई साक्ष्य मिला और न ही आरोपों की पुष्टि हुई।
सोशल मीडिया की अफवाहों का सच
यह मामला एक बार फिर रेखांकित करता है कि बिना तथ्यों की जांच के सोशल मीडिया पर फैलाई गई बातें समाज में भ्रम और अविश्वास पैदा करती हैं। खासकर जब बात महिला सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे की हो, तो जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालना घातक हो सकता है।
पुलिस की अपील, कानूनी कार्रवाई की चेतावनी
वाराणसी पुलिस ने लोगों से संयम बरतने और अफवाहों से दूर रहने की अपील की है। साथ ही, झूठे आरोप लगाने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। पुलिस का कहना है कि ऐसे कृत्य न केवल कानून की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि वास्तविक पीड़ितों के लिए न्याय की राह को भी कठिन बनाते हैं।
महिला सुरक्षा पर सवाल
यह घटना बताती है कि महिला सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन इसका दुरुपयोग न केवल सामाजिक विश्वास को कम करता है, बल्कि उन लोगों के लिए चुनौती खड़ी करता है जो वास्तव में न्याय की उम्मीद रखते हैं। समाज और प्रशासन को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि सच की जीत हो और झूठ की हार।