वृंदावन, 26 जुलाई 2025: 15 अगस्त 1947, जब भारत ने अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाकर पहली बार आजादी की सांस ली, उसी दिन वृंदावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में एक और ऐतिहासिक घटना घटी। हरियाली तीज के पावन अवसर पर ठाकुर बांकेबिहारीजी पहली बार भव्य स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजमान हुए, जो आज भी भक्तों को दर्शन दे रहा है।
सावन मास में हरियाली तीज के दिन ठाकुर बांकेबिहारी हिंडोले में भक्तों को दर्शन देते हैं। यह परंपरा साढ़े पांच सौ वर्ष पहले संगीत सम्राट स्वामी हरिदास ने निधिवन राज मंदिर में शुरू की थी। तब ठाकुरजी को लता-पताओं से सजे हिंडोले में बिठाकर लाड़-प्यार किया जाता था। इस परंपरा को मंदिर के सेवायतों ने आगे बढ़ाया।
78 वर्ष पहले, 15 अगस्त 1947 को जब लाल किले पर तिरंगा फहराया गया, उसी दिन वाराणसी के कारीगरों द्वारा बनाया गया स्वर्ण-रजत हिंडोला ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर को समर्पित किया गया। कोलकाता के भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने इस अनुपम हिंडोले का निर्माण करवाया था। इसी दिन बरसाना के लाडलीजी मंदिर में भी ऐसा ही स्वर्ण-रजत हिंडोला समर्पित किया गया।
आज भी ठाकुर बांकेबिहारी उसी भव्य हिंडोले में विराजकर भक्तों को दर्शन देते हैं। यह संयोग स्वतंत्रता दिवस और हरियाली तीज के मिलन को और भी खास बनाता है, जो भक्तों के लिए आस्था और इतिहास का अनूठा संगम है।