श्रीनगर, 25 जुलाई 2025: 1999 की गर्मियों में कारगिल की बर्फीली चोटियों पर लड़ा गया युद्ध आज भी भारत के साहस और संकल्प का प्रतीक है। पाकिस्तानी सैनिकों ने, आतंकवादियों के वेश में, नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारतीय चौकियों में घुसपैठ की थी, जिसका मकसद कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाना और लद्दाख को कश्मीर से अलग करना था। लेकिन भारतीय सेना ने अदम्य वीरता से इस चुनौती का जवाब दिया। कारगिल युद्ध में भारत ने न केवल क्षेत्रीय जीत हासिल की, बल्कि पाकिस्तान की सामरिक और कूटनीतिक हार को भी उजागर किया।
एक चौथाई सदी बाद: विकास की दो तस्वीरें
आज, नियंत्रण रेखा के दोनों ओर की तस्वीर बिल्कुल अलग है। एक तरफ, जम्मू और कश्मीर विकास, शिक्षा और पर्यटन के क्षेत्र में नई ऊँचाइयाँ छू रहा है। दूसरी तरफ, पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओजेके) और गिलगित-बाल्टिस्तान (पीओजीबी) गरीबी, दमन और शोषण की मार झेल रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर: युद्ध से विकास की ओर
कारगिल युद्ध के बाद जम्मू और कश्मीर ने जबरदस्त प्रगति की है। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद यहाँ विकास की गति और तेज हुई। कारगिल, जो कभी युद्ध का पर्याय था, अब लचीलापन और नवीकरण का प्रतीक है। 14.2 किलोमीटर लंबी ज़ोजिला सुरंग जल्द ही श्रीनगर और कारगिल को हर मौसम में जोड़ेगी। सुरू घाटी में सौर ऊर्जा संयंत्र गाँवों को रोशनी दे रहे हैं, और कारगिल हवाई अड्डे का विस्तार इस क्षेत्र को देश-दुनिया से जोड़ेगा।
श्रीनगर अब एक स्मार्ट शहर के रूप में उभरा है, जहाँ पुनर्निर्मित झेलम रिवरफ्रंट और आधुनिक सड़कें इसकी नई पहचान हैं। उधमपुर-बारामूला रेलवे लाइन ने क्षेत्र को जोड़ा है, जबकि कुपवाड़ा में नए स्वास्थ्य केंद्र और अवंतीपोरा में आईआईटी का सैटेलाइट कैंपस शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला रहे हैं। साक्षरता दर 67% से अधिक हो चुकी है, और महिला शिक्षा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
पर्यटन ने भी नया इतिहास रचा। 2024 में 18 लाख पर्यटकों ने घाटी का रुख किया। श्रीनगर में जी20 पर्यटन कार्य समूह की बैठक ने वैश्विक मंच पर इसकी शान बढ़ाई।
कश्मीर के लोग: प्रेरणा की कहानियाँ
जम्मू-कश्मीर के लोग भी अपनी प्रतिभा से चमक रहे हैं। श्रीनगर के ज़हूर अहमद मीर को 2024 में नवीकरणीय ऊर्जा के लिए सम्मान मिला। बारामूला के ओलंपियन स्कीयर आरिफ खान और कुपवाड़ा के उद्यमी फिरदौस अहमद, जो किसानों को टिकाऊ खेती सिखा रहे हैं, इस क्षेत्र की नई ऊर्जा का प्रतीक हैं।
पीओजेके और पीओजीबी: उपेक्षा और दमन
इसके उलट, पीओजेके और पीओजीबी में स्थिति दयनीय है। बुनियादी ढाँचे का अभाव, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और स्थानीय लोगों पर दमन ने इन क्षेत्रों को विकास से कोसों दूर रखा है।
नियंत्रण रेखा की सच्चाई
कारगिल युद्ध भले ही 1999 में खत्म हुआ, लेकिन नियंत्रण रेखा के दोनों ओर का फर्क आज भी भारत की प्रगति और पाकिस्तान की नाकामी को उजागर करता है। जम्मू और कश्मीर की कहानी साहस, संकल्प और समृद्धि की है, जो न केवल युद्ध के मैदान में, बल्कि विकास के हर क्षेत्र में विजय का परचम लहरा रही है।