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Friday, July 18, 2025

केदारनाथ ज्योतिर्लिंगः पांडवों से नाराज थे भगवान शिव, आखिर क्यों लिया भैंस का रूप?

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कहानी: उत्तराखंड के रुद्रप्रयागराज जिले में स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को लेकर दो कथाएं काफी प्रचलित है। जानते हैं कि आखिर कैसे केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की उतपत्ति हुई?

उत्तराखंड के चार धामों में से एक केदारनाथ ज्योतिर्लिंग कई मायनों से खास हो जाता है। रुद्रप्रयाग जिले में स्थित ये ज्योतिर्लिंग पंच केदार का भी हिस्सा है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ की यात्रा करना हर शिवभक्त का सपना है। ये ज्योतिर्लिंग गौरीकुंड से तकरीबन 16 किमी की दूरी पर है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से आध्यात्मिक शांति, हर तरह का सुख और मोक्ष मिलता है। इस भव्य और दिव्य ज्योतिर्लिंग की कहानी भी काफी दिलचस्प है। इसकी कहानी के साथ-साथ ही टिकट से लेकर दर्शन और आरती टाइमिंग से जुड़ी जानकारी नीचे है…

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा पांडवों से जुड़ी है। कहते हैं कि जब महाभारत का युद्ध खत्म हुआ तो भगवान शिव पांडवों से नाराज हो गए थे। दूसरी तरफ पांडव तमाम लोगों की हत्या के पाप से मुक्ति चाहते थे। इस वजह से वह भगवान शिव के दर्शन करने के लिए परेशान थे और उन्हें ढूंढते हुए कैलाश पर्वत पर चले गए। शिव जी तो नाराज थे और ऐसे में उन्होंने पांडवों को अपने दर्शन नहीं दिए। पांडवों के आते ही वह अदृश्य हो गए। पांडवों ने हार नहीं मानी। शिवजी को ढूंढते-ढूंढते वो लोग केदार तक पहुंच गए।

महादेव ने धारण किया भैंस का रूप

नाराज शिवजी पांडवों को अपने दर्शन नहीं देना चाहते थे और ऐसे में उन्होंने भैंस का रूप ले लिया। वहां मौजूद बाकी पशुओं के बीच वो जा पहुंचे। पांडवों को जब शक हुआ तब भीम ने अपना विशाल रूप लिया और पहाड़ पर अपने पैर फैला दिए। वहां मौजूद सारे पशु एक-एक करके भीम के पैर के नीचे से निकलने, लगे लेकिन एक भैंस वहीं धरती में लीन होने लगा। ये देखते ही भीम ने तुरंत उसकी पीठ वाला हिस्सा पकड़ लिया। जिस वजह से शिवजी पूरी तरह से धरती में नहीं समा पाए और पीठ वाला हिस्सा बाहर ही रह गया। देखते ही देखते ये हिस्सा पिंड में बदल गया।

भगवान ने शिव ने किया पांडवों को माफ

तुरंत बाद ही शिवजी पांडवों के सामने स्वंय प्रकट हुए। इस दौरान सभी पांडव काफी परेशान नजर आए। शिवजी का दिल पिघल गया और उन्होंने वहीं पर पांडवों को सभी पाप से मुक्त कर दिया। मान्यता यही है कि पीठ वाला हिस्सा जो पिंड में बदला वहीं बाद में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग बन गया।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को लेकर मशहूर है दूसरी कथा

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को लेकर एक दूसरी कथा भी काफी प्रचलित है। पुराणों के मुताबिक महातपस्वी श्री नर और नारायण ने कई साल तक एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी ताकि शिवजी खुश हो जाए। उनकी भक्ति को देखकर शिवजी प्रसन्न हुए और अपने दर्शन दिए। जब शिवजी ने उनसे वरदान मांगने को कहा तब उन लोगों ने शिवजी को अपने स्वरूप में वहीं पर स्थापित होने के लिए कहा। शिवजी ने उनकी बात मानी और वहीं पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में दर्शन-आरती का समय और टिकट

बता दें कि ठंड के दिनों में मौसम प्रतिकूल होता है तो ऐसे में 6 महीने केदारनाथ बंद होता है। हर साल मई में इस ज्योतिर्लिंग के पट 6 महीने के लिए खुलते हैं। सुबह यहां पर 4 बजे महाअभिषेक आरती होती है। इसके बाद शाम 7 बजे के आसपास शयन आरती की जाती है। दर्शन का समय सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक है। वहीं दोपहर में 3 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक मंदिर बंद होता है। टिकट की बात की जाए तो आप इसे आधिकारिक वेबसाइट से खरीद सकते हैं। नहीं तो आप इसे सीधा मंदिर के पास बने काउंटर से भी खरीद सकते हैं। वैसे तो दर्शन के लिए कोई टिकट नहीं है लेकिन वीपाआईपी और शीघ्रदर्शन के लिए टिकट है जोकि भीड़ और मौसम के अनुसार 1100 से 5100 रुपये तक पहुंच जाता है।

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