देहरादून, 17 जुलाई 2025: उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक विरासत के लिए जाना जाने वाला राज्य, अब शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी नई मिसाल कायम कर रहा है। हाल ही में, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया: अब राज्य के सभी स्कूलों में प्रार्थना सभाओं के दौरान भगवद् गीता के श्लोकों का पाठ अनिवार्य होगा। यह कदम न केवल शिक्षा में भारतीय संस्कृति की गहरी छाप छोड़ेगा, बल्कि युवा पीढ़ी को नैतिकता और जीवन मूल्यों का पाठ भी पढ़ाएगा।
गीता पाठ: नैतिकता की ओर एक कदम
मुख्यमंत्री धामी का कहना है कि भगवद् गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है, जो आत्म-अनुशासन, नैतिकता और समाज के प्रति जिम्मेदारी सिखाता है। “गीता के श्लोकों में वह ज्ञान है, जो हमारे बच्चों को बेहतर इंसान और जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रेरणा देगा,” उन्होंने कहा। इस निर्णय का उद्देश्य भारतीय दर्शन और संस्कृति को युवाओं तक पहुंचाना है, न कि किसी एक धर्म को बढ़ावा देना।
यह नियम सरकारी और निजी दोनों स्कूलों पर लागू होगा। शिक्षा विभाग जल्द ही इसके लिए दिशा-निर्देश जारी करेगा। गीता के श्लोकों का पाठ न केवल छात्रों के चरित्र निर्माण में सहायक होगा, बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति की गहरी समझ भी प्रदान करेगा। हालांकि, इस कदम को लेकर समाज में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे संस्कृति को बढ़ावा देने वाला कदम मान रहे हैं, तो कुछ इसका विरोध कर रहे हैं। सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह निर्णय सभी धर्मों का सम्मान करते हुए, केवल शिक्षा के उद्देश्य से लिया गया है।
यूसीसी: समानता की नई पहल
उत्तराखंड ने न केवल शिक्षा, बल्कि सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी एक बड़ा कदम उठाया है। 27 जनवरी, 2025 को, उत्तराखंड स्वतंत्र भारत का पहला राज्य बन गया, जिसने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू की। मुख्यमंत्री धामी ने इस अवसर पर UCC का आधिकारिक पोर्टल भी लॉन्च किया। यह कानून विवाह, तलाक, गोद लेना, उत्तराधिकार और लिव-इन रिलेशनशिप जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करता है, ताकि सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित किए जा सकें।
UCC के तहत बहुविवाह और एकतरफा तलाक पर रोक लगाई गई है, साथ ही बेटियों और बेटों को संपत्ति में समान अधिकार दिए गए हैं। यह कानून लिंग, जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उत्तराखंड सरकार का मानना है कि यह पहल एक सामंजस्यपूर्ण और समावेशी समाज की नींव रखेगी।
एक नई दिशा की ओर
गीता पाठ का अनिवार्यकरण और UCC का लागू होना, उत्तराखंड की उस सोच को दर्शाता है, जो संस्कृति और समानता को एक साथ लेकर चलना चाहती है। एक ओर जहां गीता का ज्ञान युवाओं को नैतिकता और संस्कृति से जोड़ेगा, वहीं UCC सामाजिक समानता और न्याय को बढ़ावा देगा। ये कदम न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा बन सकते हैं।
उत्तराखंड का यह प्रयास न सिर्फ शिक्षा और सामाजिक ढांचे को मजबूत करेगा, बल्कि यह भी दिखाएगा कि परंपरा और प्रगति एक साथ चल सकते हैं। यह देखना रोचक होगा कि ये पहल भविष्य में समाज और शिक्षा पर किस तरह का प्रभाव डालती हैं।