वाराणसी, 14 जुलाई 2025: काशी की पावन धरती पर सावन के पहले सोमवार को एक ऐसी परंपरा निभाई गई, जो न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि इतिहास और भक्ति का संगम भी है। बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में 50 हजार यादव बंधुओं ने भोलेनाथ का जलाभिषेक कर एक बार फिर अपनी अटूट श्रद्धा का परिचय दिया। डमरू की गूंज, भक्ति में डूबे भक्त, और कंधों पर बड़े-बड़े कलशों के साथ यह अद्भुत दृश्य काशी की गलियों में देखने लायक था। यह परंपरा, जो 1932 से चली आ रही है, आज भी उतनी ही जीवंत और प्रेरणादायक है।
भक्ति और अनुशासन का अनोखा संगम
सुबह 8 बजे केदारघाट से शुरू हुई इस भव्य कलश यात्रा में यादव बंधु शिव भक्ति में लीन होकर आगे बढ़े। कुछ भक्तों ने विभिन्न रूप धारण किए, जो इस यात्रा को और भी रंगीन बना रहे थे। प्रशासन की अपील का सम्मान करते हुए भक्तों ने दौड़ने से परहेज किया और अनुशासित ढंग से मंदिर की ओर बढ़े। मंदिर परिसर में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए केवल 21 यादव बंधुओं को गर्भगृह में जलाभिषेक की अनुमति दी गई, जबकि बाकी ने बाहर से ही बाबा विश्वनाथ को जल अर्पित किया।
परंपरागत मार्ग और नया बदलाव
चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के अध्यक्ष लालजी यादव के नेतृत्व में यह यात्रा पारंपरिक मार्गों से गुजरी। केदारघाट से शुरू होकर गौरी केदारेश्वर मंदिर, तिलभांडेश्वर महादेव, बड़ी शीतला मंदिर, और अहिलेश्वर महादेव के दर्शन करते हुए यह यात्रा बाबा विश्वनाथ मंदिर पहुंची। इस बार ललिता घाट पर निर्माण कार्य के कारण जल मणिकर्णिका घाट से लिया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर में जलाभिषेक के बाद भक्तों ने महामृत्युंजय महादेव, त्रिलोचन महादेव, ओंकालेश्वर, और लाट भैरव के दर्शन कर अपनी यात्रा को पूर्ण किया।
1932 से चली आ रही परंपरा
इस परंपरा की जड़ें 1932 में उस समय की हैं, जब देश सूखे और अकाल की चपेट में था। चंद्रवंशी गोप सेवा समिति के अध्यक्ष लालजी यादव बताते हैं कि उस समय एक साधु ने सलाह दी थी कि यदि यादव समुदाय काशी में बाबा विश्वनाथ और अन्य शिवालयों में जलाभिषेक करे, तो इस संकट से मुक्ति मिल सकती है। इसके बाद यादव बंधुओं ने एकजुट होकर सावन के पहले सोमवार को भोलेनाथ का जलाभिषेक किया, और काशी को अकाल से राहत मिली। तभी से यह परंपरा हर साल सावन के पहले सोमवार को निभाई जाती है, जिसमें हजारों यादव बंधु कंधों पर कलश लेकर भोलेनाथ की भक्ति में लीन हो जाते हैं।
भक्ति का जीवंत उत्सव
यह जलाभिषेक केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामुदायिक एकता और भक्ति का प्रतीक है। काशी की गलियों में गूंजते डमरू, भक्तों के जयकारे, और शिव मंदिरों में अर्पित जल की धारा इस बात का प्रमाण है कि आस्था समय के साथ और भी मजबूत होती जाती है। यह परंपरा न केवल यादव समुदाय की एकता को दर्शाती है, बल्कि बाबा विश्वनाथ के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा को भी उजागर करती है।
सावन के इस पावन मौके पर काशी विश्वनाथ मंदिर में उमड़ी यह भीड़ और भक्ति का उत्सव हर किसी के लिए प्रेरणादायक है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि आस्था और एकजुटता से हर संकट को हराया जा सकता है। भोलेनाथ की कृपा से यह यात्रा हर साल और भी भव्य होती रहे, ऐसी कामना है। हर हर महादेव!